Saturday, August 18, 2012


परमाणु ऊर्जाः तितलियाँ बोल रही हैं..इससे बचो!!!

जी हाँ, तितलियाँ बोल रही हैं कि न केवल जापान सरकार बल्कि न्यूक्लियर एनर्जी से अरबों खरबों रुपयों का मुनाफ़ा कमाने वाले उद्योगपति, उनकी रहनुमा अमेरिका, फ्रांस, आस्ट्रेलिया और रूस की सरकारें, चेरनोबिल से लेकर फुकुशिमा तक दुर्घटना के बाद होने वाले रेडिएशन के बारे में न केवल झूठ बोलती रही हैं, बल्कि वे हर हथकंडा अपनाकर उन खबरों को दुनिया के बाकी  लोगों तक पहुँचने से रोकती भी हैं, ताकि न्यूक्लियर एनर्जी के बारे में विश्व स्तर पर कोई बड़ा प्रतिरोध या असंतोष न खड़ा  हो सके मानव के ऊपर रेडिएशन के दुष्प्रभाव के बारे में जहां लंबे समय के बाद पता चलता है, वहीं तितलियाँ इस दुष्प्रभाव के संकेत बहुत जल्दी दे देती हैं यही कुछ जापान में पिछले वर्ष मार्च में आई सुनामी के बाद फुकुशिमा प्लांट से हो रहे रेडिएशन के वहाँ के रहने वालों के ऊपर पड़ने वाले प्रभावों के बारे में हो रहा है  

जापानी सरकार ने हादसे के 6 माह बाद ही सितम्बर,2011 में फुकुशिमा और उसके आसपास के इलाके में रिहाईश के लिए लगाए गए प्रतिबंधों को इस बिना पर उठा लिया था कि अब वहाँ रेडिएशन का स्तर नुकसान पहुंचाने के स्तर से नीचे आ गया है, अर्थात सामान्य हो गया है आज हजारों परिवार उन क्षेत्रों में रह रहे हैं, विशेषकर फुकुशिमा के उत्तर पश्चिमी इलाके में, जहां वातावरण अभी भी बहुत ज्यादा प्रदूषित है अब जापान के वैज्ञानिक बता रहे हैं कि उन्हें वहाँ विकलांगता से प्रभावित तितलियाँ मिल रही हैं उन्होंने स्थानीय तितलियों के पांवों, परों, कोशिकाओं और आँखों में विकृतियों को बढ़ता हुआ पाया है यहाँ ध्यान देने की बात यह है कि मानव के ऊपर रेडिएशन के प्रभाव के अध्यन के लिए तितलियों को अच्छा माध्यम माना जाता है क्योंकि तितलियों में रेडिएशन के खिलाफ प्रतिरोध क्षमता अधिक होती है नेचर पब्लिकेशन समूह के ऑन लाइन जर्नल में प्रकाशित शोध के अनुसार फुकुशिमा के आसपास के इलाके से तितलियों के जो नमूने उन्होंने एकत्रित किये, उसमें से 10 प्रतिशत नमूनों में उन्हें ये विकृतियाँ मिलीं, जो अनुवांशिक हो सकती हैं  फुकुशिमा के न्यूक्लियर प्लांट के दुर्घटनाग्रस्त होने के बाद वहाँ के रहवासियों के ऊपर रेडिएशन के प्रभाव के ऊपर अनेक अध्यन हुए हैं, उनमें इस शोध को महत्वपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि यह शोध उन सारी रिपोर्टों और दावों के ऊपर उंगली उठाता है, जिनमें कहा गया है कि अभी तक रेडिएशन के दुष्प्रभाव का एक भी मामला वहाँ रिपोर्ट नहीं हुआ है

न्यूक्लियर प्लांटों के लिए हमेशा ऐसी ही जगह का चुनाव करना पड़ता है, जहां पानी अधिक मात्रा में और आसानी से प्राप्त किया जा सके| रेडिएशन को रोकने तथा मशीनों को ठंडा रखने के लिए ये आवश्यक है ऐसे स्थान समुद्र के नजदीक ही मिलेंगे| समुद्र के नजदीक और भूकंप की संभावना वाले स्थानों पर न्यूक्लियर प्लांट मानवता के लिए कितनी दुश्वारी वाले हो सकते हैं, यह हम फुकुशिमा में देख चुके हैं ये खतरा अब तो और बढ़ गया है, जब पृथ्वी के तापमान में हो रही वृद्धि और पर्यावरण के लगातार दूषित होने के परिणामस्वरूप सुनामी, भूकंप और पृथ्वी पर के तूफ़ान आये दिन की घटना बन रहे हैं पृथ्वी पर का कोई भी समुद्र सुनामियों और समुद्री तूफानों से बचा नहीं है

जापान की सरकार और फुकुशिमा से जुड़े अधिकारी पूरे एक वर्ष तक लोगों को गुमराह करने वाले बयान देते रहे लेकिन, फिर उन्हें स्वीकार करना पड़ा कि 2011 की सुनामी के समाप्त होने के बाद, फुकुशिमा के चारों रिएक्टर भारी मात्रा में विकरण युक्त पानी से भरे हुए हैं, जिसमें से लगभग 12 टन वातावरण में लीक भी हो चुका है इस स्वीकारोक्ति के छै माह पहले वही सरकार उन इलाकों को रिहाईश के लायक बता चुकी थी सरकारें किसी भी देश की हों, जब सवाल पूंजीपतियों के मुनाफे और मानव जीवन के बीच झूलता है, तब उन्हें पूंजीपतियों के मुनाफे के खातिर, मानव जीवन को नुकसान पहुंचाने की कीमत पर भी पूंजीपतियों के पक्ष में झूठ बोलने में कोई हिचक नहीं होती है आज जब जापान में तितलियों पर रेडिएशन के प्रभाव के बारे में रिपोर्ट को मैंने पढ़ा, तो तुरंत ही कुंडाकुलम न्यूक्लियर प्लांट मेरे मष्तिष्क में कौंधा जो भूकंपी जोन में है और फुकुशिमा की तरह ही खतरों की जद में भी है  

कुंडाकुलम में न्यूक्लियर प्लांट का विरोध करने वाले अनेक संगठनों ने भारत सरकार को कुंडाकुलम के ऊपर रिपोर्ट दी है और यह अन्यथा भी साधारण जानकारी की बात है कि जहां न्यूक्लियर प्लांट लगाया जा रहा है, वह इलाका लाईम स्टोन बेल्ट है वहाँ कुछ समय पूर्व तक लाईम स्टोन की खदानें काम कर रही थीं न्यूक्लियर प्लांट के लिए अधिग्रहित पूरा इलाका समुदे तट उस हिस्से के बहुत नजदीक है, जहां कुछ समय पूर्व ही सुनामी का आक्रमण हुआ था इसी इलाके में धरती के नीचे भूकंपीय गतिविधियां भी कुछ समय रिकार्ड की गईं थीं केन्द्र और राज्य की सरकारें आश्वासन दे रही हैं कि सुरक्षा के समस्त उपाय किये गए हैं खतरे और चिंता की कोई बात नहीं है पर, देश के किसी भी कोने में, किसी को भी, सरकारों के इन आश्वासनों पर कोई भी कोई भी भरोसा हो सकता है क्या? इसका एक ही उत्तर हो सकता है, कदापि नहीं! क्योंकि उठाये गए किसी भी प्रश्न का न तो केन्द्र सरकार और न ही राज्य सरकार कोई संतोषजनक जबाब देने में समर्थ है बल्कि, फरवरी,2012 में देश के प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह ने यह कहकर सबको हंसने के लिए मजबूर कर दिया कि देश में अमरीका से फंडित एनजीओ राष्ट्र के विकास में बाधा खड़ी कर रहे है परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम में इनके कारण बाधा पहुँच रही है प्रधानमंत्री ने कहा कि कि अमरीका आधारित ये एनजीओ भारत की ऊर्जा शक्ति में कोई विकास हो, ये नहीं चाहते  

मनमोहनसिंह जी को 1991 से लेकर अभी तक वित्तमंत्री या प्रधानमंत्री के रूप में हमने अभी तक जितना देखा है, उससे तो उनका आकलन यही बनाता है कि वो चाहे जीएम क्राप का मामला हो या परमाणु ऊर्जा का, प्रत्येक कदम पर प्रधानमंत्री की रुची और प्राथमिकता में अमेरिका और यूरोपीयन कंपनियों के हित ही रहे हैं उन्हें इस बात की चिंता कभी नहीं रही कि इन टेकनालाजियों का क्या दुष्प्रभाव देशवासियों और देश के पर्यावरण पर पड़ेगा फरवरी,2012 में भी जब वो न्यूक्लियर प्लांट के विरोध में शामिल एनजीओ को धमाका रहे थे, तब भी उनके दिमाग में रूस की कंपनी एमेस्त्रोएक्स्पोर्ट के हित ही घूम रहे होंगे

भारत में यूपीए प्रथम के कार्यकाल में अमेरिका के साथ किये गए न्यूक्लियर समझौते को लेकर लेफ्ट के साथ हुए टकराव और फिर लेफ्ट के समर्थन वापस लेने के बाद यूपीए ने किस तरह से विश्वास मत जीता, उसका व्यापक प्रचार होने के बावजूद भी सच्चाई यही है कि न्यूक्लियर विरोधी आन्दोलन अपनी प्रारंभिक अवस्था में बुद्धिजीवियों के कुछ हिस्सों तक ही सीमित रहा और इसका आधार भी मुख्यतः शहरी ही रहा लेकिन, आज परिस्थिति में व्यापक परिवर्तन आ चुका है आज यह आंदोलन व्यापक रूप धारण कर चुका है और इसमें वे सब स्थानीय लोग पूरी तरह जुड़ चुके हैं; जो प्लांट लगने के कारण विस्थापित हो रहे हैं; अपनी आजीविका खो रहे हैं और जिन्हें अपने रहवासी वातावरण से च्युत होना पड़ रहा है और सबसे बड़ी बात कि वो सब भी जो जानलेवा और विनाशकारी रेडिएशन के खतरे की जद में आयेंगे, आंदोलन के साथ जुड़े हैं याने, यदि साररूप में कहा जाए तो आज न्यूक्लियर विरोधी आन्दोलन प्रभावित क्षेत्र के लोगों की जीविका और जीवनयापन से जुड़ा संघर्ष है

जैतापुर, हरिपुर और कुंडाकुलम में चल रहे आन्दोलनों को, विकास विरोधी मानने के बजाय, नवउदारवाद के अंतर्गत न्यूक्लियर बिजली के भीमकाय कार्पोरेशनस की मानवभक्षी, अंधी, मुनाफे की हवस के खिलाफ चलाये जाने वाले संघर्ष के रूप में देखा जाना चाहिए, जिसमें हमारे देश का शासक वर्ग देश के लोगों के साथ होने के बजाय भीमकाय विदेशी न्यूक्लियर कार्पोरेशंस के साथ है और उसने उन कार्पोरेशंस के हितों की रक्षा करने के लिए देशवासियों के बड़े हिस्से के खिलाफ युद्ध छेड़ रखा है यह बात मैं इसलिए कह रहा हूँ कि नवउदारवादी, जीडीपी ग्रोथ को ही विकास का पैमाना मानने वाले, विकास का जब उत्पीड़ित देशवासी विरोध करते हैं तो उनके ऐसे विरोध को केंद्र और राज्य की सरकारें राष्ट्र विरोधी गतिविधि मानकर उनके ऊपर सेक्शन 121 लगातीं हैं, जिसका अर्थ होता है राज्य के खिलाफ युद्ध छेड़ना, या युद्ध छेड़ने का प्रयास करना, या युद्ध छेड़ने के लिए उकसाना या भड़काना अभी जुलाई माह के मध्य में जैतापुर प्लांट के खिलाफ चल रहे संघर्ष के समर्थन में गठित राष्ट्रीय एकता कमेटी ने जैतापुर के सभी छै रिएक्टरों और प्लांट की खामियों के बारे में अनेक कमियां बताईं और इस मुद्दे को संसद में उठाने का निर्णय लिया  अब इसे आप क्या कहेंगे कि जिस मुद्दे को संसद में उठाया जा सकता है, उसे सड़क पर उठाने से जनता के ऊपर राज्य विरोधी या राज्य द्रोह कि धारा लगती है  दरअसल, नवउदारवादी विकास की लौ में बह रहीं देश की सरकारों के किसी भी कार्य को उठाकर आप देख लीजिए, आप पायेंगे कि केंद्र हो या राज्य, दोनों की सरकारों ने बहुसंख्यक देशवासियों के स्वास्थय, सुरक्षा, जीविका और जीवनयापन के खिलाफ युद्ध छेड़ रखा है  

जर्मनी की सरकार 2022 तक अपने सभी परमाणु ऊर्जा कार्यक्रमों को समाप्त करने का निर्णय कर चुकी है इटली और स्विजरलैंड ने परमाणु ऊर्जा कार्यक्रमों पर आगे काम नहीं करने का निर्णय लिया है परमाणु ऊर्जा का विकल्प साफ़, स्वच्छ और प्रदूषण रहित ऊर्जा के रूप में हवा, सोलर, जैव ऊर्जा, पानी और बायो ऊर्जा के रूप में मौजूद है प्रश्न, इसे बुद्धिमत्तापूर्वक और सावधानी के साथ इस्तेमाल करने का है एक उचित ग्रिड प्रणाली और विद्युत ऊर्जा के व्यर्थ उपयोग पर पाबंदी से इसे समाधान के रूप में आजमाया जा सकता है और हमारे समक्ष कोई अन्य विकल्प नहीं है हमें इसी समाधान पर आगे बढ़ना होगा, यदि हमें मानव प्रजाति को भविष्य में विकलांग पैदा नहीं करना है तोकम से कम, हमसे,  ये तितलियाँ तो यही बोल रही हैं कि परमाणु ऊर्जा, इससे बचो!!!                                    

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