मैं हमेशा आपकी अहसानमंद रहूंगी..
रामदेव जी,
मुझे अपना परिचय आपको देने की आवश्यकता नहीं है
क्योंकि नौ अगस्त से आज दोपहर तक तो मैं आपकी
ही बंधक थी।
वैसे तो इस देश में मैं जब से आयी हूँ, किसी न किसी की बंधक बने रहना, मेरी नियति
में ही शुमार है।
वैसे अंग्रेजों से मुझे छुड़ाकर लाने के लिए जिन लोगों के आप नाम लेते हैं याने भगत
सिंह, सुखदेव, राजगुरु, चन्द्रशेखर आजाद, रामप्रसाद बिस्मिल, गांधी, नेहरू, लाला
लाजपत राय, आदि, आदि, उनके अलावा भी अन्य कई ढेरों लोगों ने मुझे अंग्रेजों से
छुड़ाकर लाने में अपनी जान की कुर्बानियां दी थीं। उनमें से जो मुझे प्राप्त करने
के प्रयास में शहीद हो गए, उनके दिल में भी कभी ये नहीं रहा कि अंग्रेजों से मुझे
प्राप्त करने के बाद वो मुझे केवल अपनी और अपनी बनाकर रखेंगे। वो सब तो मुझे देश के पूरे लोगों
के लिए प्राप्त करना चाहते थे।
मुझे इस बात का मलाल हमेशा रहा और रहेगा कि वो
जिन्होंने मुझे प्राप्त करने के लिए अपना जीवन न्यौछावर किये, अगर भगतसिंह,
चंद्रशेखर आजाद आदि में से कुछ लोग भी बच जाते तो मुझे पक्का विश्वास है कि वो मुझ
आजादी को भी कुछ और आजाद करवाते, कुछ और आजादी दिलवाते। इस प्यारे प्यारे भारत देश के
खेतों को जोतकर करोड़ों लोगों के पेटों को पालने वाले किसानों के पास जाने, उनके
पास रहने, उनसे प्यार करने की आजादी दिलवाते। वो मुझे कारखानों के उन मजदूरों
के पास जाने की आजादी मुझे दिलवाते, जो रात दिन मेहनत करने के बाद भी न खुद ढंग से
रह पाते हैं और न ही अपने परिवार और अपने बच्चों को वो सब सुख और सुविधा दिला पाते
हैं, जो देश में मेरे आने के बाद, मेरी ही कोख से मैंने जना है और वो भी इन्हीं
किसानों और मजदूरों की बदौलत। वो मुझे इस देश की नारियों के पास जाने देते,
प्यारे प्यारे बच्चों के साथ खेलने देते। यदि मैं उन माओं और बच्चों के साथ होती तो वो कभी
कुपोषण से नहीं मरते।
पर, जो न हो सका, अब उसके लिए क्या रोना? पर, मुझे लाने वालों में से जो लोग बचे, उनमें
से अनेक मुझसे बेइंतहाँ प्यार करने वाले निकले थे। उन्होंने मुझे कभी अपनी बांदी
नहीं समझा और उनमें से कई तो ऐसे सिरफिरे टाईप के मेरे दीवाने थे कि मुझे देश में
सजाधजा कर और इज्जत से रखने के खातिर वो पागलपन की हद तक खुद के जीवन को त्यागमय
और सादा रखते थे।
मैं आज जार जार रोती हूँ, क्योंकि उनमें से अनेक
बेतहाशा अभावों में और कष्टों में मृत्यु को प्राप्त हुए, लेकिन उन्होंने मुझे कभी
भी लजाया नहीं।
पर, आज जो दौर आया है, उसमें तो मैं आज किसी की तो कल किसी की बांदी बनकर रहने को
विवश कर दी जाती हूँ।
मुझे समझ में नहीं आता कि इस देश के लोग हैं तो उन्हीं पुरखों के वारिस, जो पूरे
नब्बे साल लड़कर मुझे बड़े गर्व के साथ देश में लाये। फिर, वे क्यों जब जी चाहे क्यों
मुझे अपनी बंदी बना लेते हैं, क्यों वे मुझसे बांदी जैसा व्यवहार करते हैं। कभी मेरा इस्तेमाल पढ़ने लिखने
वाली लड़कियों को होटलों में, कालेजों में, बागीचों में बेईज्जत करने के लिए किया
जाता है।
कभी दलितों को प्रताड़ित, यहाँ तक कि ज़िंदा जलाने के लिए किया जाता है। कभी मेरा इस्तेमाल धर्म और जाती
के नाम पर एक दूसरे को मारने के लिए किया जाता है। कोई भी इस बात को समझने और मानने
के लिए तैयार नहीं है कि इससे मेरी इज्जत तार तार हो रही है और जिनके दासत्व से
मुझे छुड़ाकर लाया गया, वो मेरी इस स्थिति पर हंस रहे हैं।
अब एक नयी चीज शुरू हुई है, सबको मालूम है कि अंग्रेजों
ने मुझे व्यापारी बनकर ही अपनी दासी बनाया था। आज देश को चलाने वाले सभी
राजनीतिक दल फिर उसी रास्ते पर चल रहे हैं। एक बात तो उन्हें समझनी होगी कि कोई अमरिकी, कोई
अंग्रेज प्रत्यक्ष रूप से देश में आकार राज करे या नहीं, मुझे गुलाम तो बना ही
लेगा, प्रत्यक्ष नहीं तो मानसिक। पर, ये सब बातें, मैं आपसे क्यों कह रही हूँ| आप
भी तो उन्हीं में से हो| आप काले धन की बातें करते हो, भ्रष्टाचार और लोकपाल की बातें
करते हो।
आपसे पहले अन्ना जी के नेतृत्व में कुछ सिविल सोसाईटी के लोगों ने भी भ्रष्टाचार
और लोकपाल की बातें कीं, पर कोई भी ये नहीं कह रहा कि अपना बाजार विदेशियों के
हवाले न करो।
काला धन आने से गरीबी दूर हो जायेगी, चलो मान लिया, पर, जब तक काला धन नहीं आता,
तब तक, अमीरों को सफ़ेद धन से ही हिस्सा देना कम कर दो और गरीबों का हिस्सा बढ़ा दो। मुझे तो अपनी अस्मिता फिर बड़े
खतरे में दिखाई देती है।
हो सकता है मैं अपने देश में ही रहूँ। कोई गुलाम भी न बनाए लेकिन दूसरों के इशारे पर
चलना भी तो गुलामी से कम नहीं है।
पर, मुझे लग रहा है कि मैं विषय से थोड़ा भटक गई हूँ। खत तो आपको ये बताने के लिए लिख
रही थी कि मैं आपकी अहसानमंद हूँ और आपकी गलतियां निकालने लगी। मैं आपकी अहसानमंद इसलिए हूँ कि
वैसे तो आये दिन किसी न किसी के द्वारा बंधक बना लिए जाने की मैं आदी हो चुकी थी,
पर, ऐसा कभी नहीं हुआ था कि येन अपने जन्म दिन के पहले कोई मुझे बंधक बना ले और जब
आपने कहा कि आप प्रधानमंत्री को लाल किले पर झंडा नहीं फहराने देंगे तो मुझे बड़ा
डर लगा। आप तो जानते ही हैं कि ये
झंडा फहराना मेरे लिए केक काटने के समान है। फिर जब
आपने कहा कि जब आप बोलते हो तो सरकार में लोगों की मौतें होती हैं और आप चाहो तो
उनकी अर्थियां निकल जाएँ, तो मैं और भी डर गई। मुझे लगा कि आज से ही ये देश
गुलाम होने जा रहा है।
मुझे आपके अंदर, हिटलर के बेटों से लेकर, ओबामाओं के चेहरे दिखने लगे। पता नहीं, फिर आपको किसने समझाया?
जरुर हिटलर के बेटों और ओबामाओं के चेलों ने ही समझाया होगा। आपने मुझे इस बार के लिए आजाद कर
दिया। मैं इस
देश के लोगों की तरफ से भी आपको धन्यवाद देती हूँ।
इतिहास गवाह है कि केवल मैं ही क्या, मेरी अनेक
बहनें, जो अलग अलग देशों में हैं और मेरे नाम से ही जानी जाती हैं, कभी भी दंभी,
बड़बोले और सनकी ताकतवरों के हाथों में सुरक्षित नहीं रहीं। बहरहाल, मैं तो आपको अभी के लिए
धन्यवाद देना चाहती हूँ कि आपके उपर हिटलर के बेटों और ओबामाओं के चेलों ने सरस्वती
की कृपा बरसाई और मुझे आजादी मिली, इसके लिए मैं आपकी अहसानमंद हूँ।
आपकी कैद से छूटी देश की आजादी
अरुण कान्त शुक्ला
14 अगस्त, 2012
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