Tuesday, July 17, 2012

मनमोहनसिंह पूडल तो हैं, पर किसके?


मनमोहनसिंह पूडल तो हैं, पर किसके?


ब्रिटिश अखबार द इंडिपेंडेंट ने प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह को काँग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का पूडल ठहराकर जाने अनजाने भाजपा और संघ परिवार को मदद पहुंचाने का काम किया है। यह वो आरोप है, जिसे भाजपा या संघ परिवार प्रधानमंत्री पर 2004 से लगातार लगाता रहा है। सोनिया गांधी का विदेशी मूल का मुद्दा इस बहाने कूटनीतिक तरीके से ज़िंदा रखने में उनको मदद मिलती है, जो उनकी साम्प्रदायिक राजनीति को सूट करता है। यही कारण है कि जब टाईम ने उनको अंडरएचीवर बताया तो भाजपा बहुत खुश हो गयी और अब जब द इंडिपेंडेंट ने उनको पूगल, पपेट या अंडर एचीवर, वह जो कुछ भी हो, बताया तो वह फिर खुश हो गयी।      

प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह की छवि अपने प्रधानमंत्रित्व काल के दूसरे दौर में और विशेषकर पिछले दो वर्षों में ऐसे राजनीतिक नेता की बन गयी है जो न केवल राजनीतिक तौर पर अपरिपक्व, असफल, और अनिर्णायक है बल्कि पूरी सरकार और कांग्रेस में आलोचना के लिए एक साफ्ट टारगेट के रूप में अपने आलोचकों के लिए हमेशा उपलब्ध भी है। 1991 से 1995 के मध्य नरसिम्हाराव सरकार में वित्तमंत्री रहते हुए, जब भारत की अर्थव्यवस्था के दरवाजे उन्होंने विदेशी पूंजी के लिए खोले थे और वर्ल्डबैंक, आईएमएफ और उस समय के गाट और आज के विश्व व्यापार संगठन के निर्देशों पर सामाजिक उद्देश्यों के उपर खर्चों में कटौती, सार्वजनिक क्षेत्रों को निजी हाथों में बेचने तथा देशी विदेशी पूंजी को सरकार से अबाध और अपार सहायता देने की जो मुहीम उन्होंने चलाई थी, उसके चलते जितनी आलोचना उनकी हुई थी, आज हो रही आलोचना उसके सामने मात्रात्मक रूप से बहुत कम है पर प्रकृति (गुणात्मक रूप में) में निकृष्ट और स्तरहीन होने के चलते अधिक चुभने वाली है, इसलिए ज्यादा लग रही है।

आलोचना की निकृष्टता में ही वह राज छिपा है, जो न केवल आलोचना करने वालों के मंसूबों को बल्कि भारत में उस आलोचना की हाँ में हाँ मिलाने वालों और उस पर खुश होने वालों के मंसूबों के राज खोलता है। आलोचना का स्तर आज निकृष्ट इसलिए है कि वह मनमोहनसिंह के उन मित्रों के द्वारा की जा रही है, जिनके कहने पर प्रधानमंत्री ने 1991 से 1995 के मध्य भूमंडलीकरण और उदारवाद की नीतियों को भारत में लागू किया था आज जब मनमोहनसिंह बचे हुए आर्थिक सुधारों को लागू नहीं कर पा रहे हैं तो उनके मित्र मित्रता को ताक पर रखकर उनकी आलोचना में जुट गए हैं

भारत में आज जो विपक्ष नजर आ रहा है, उसे हम दो भागों में बाँट सकते हैं पहला, वामपंथी विपक्ष, जो 1991 से ही भूमंडलीकरण और उदारवाद की नीतियों के खिलाफ मोर्चा खोले हुए है इसका विरोध सैद्धांतिक है और वह मानता है कि भ्रष्टचार, आर्थिक मंदी, महंगाई आदि पूंजीवाद की ढांचागत मुश्किलें हैं, और इसी आधार पर सरकार के कदमों का विरोध वह करता है दूसरा, भाजपाई विपक्ष, जिसे चलना उसी रास्ते पर है, जिस पर मनमोहनसिंह ने वित्तमंत्री रहते हुए देश को डाला है, उसका विरोध सत्ता में बैठी पार्टी की राजनीति, उसके प्रोग्राम और उसकी नीतियों या गरीबी, भुखमरी, मजदूरों की कारखानों में लूट आदि जैसे सब से बुनियादी मसलों या पूंजीवाद की ढाचांगत कमजोरियों से नहीं है वह बहुत सुविधाजनक तरीके से सारा विरोध सत्ता में मौजूद पार्टी और उसके कुछ व्यक्तियों के खिलाफ खड़ा करके व्यवस्था को जैसे का तैसा बनाए रखने की नीति पर चलती है यही कारण है कि 1998 से 2004 के मध्य सत्ता में रहने के बावजूद भाजपा देश की सामाजिक और आर्थिक नीतियों में कोई भी बदलाव तो ला ही नहीं पाई, उलटे देश को साम्प्रदायिकता की आंच में और तपना पड़ा

यही कारण है कि जब टाईम या द इंडिपेंडेंट मनमोहनसिंह को कम सफल, सोनिया की कठपुतली या  पूडल कहते हैं तो भाजपा के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है देश का गौरव या गर्व करने की उसकी सारी बातें हवा हो जाती हैं पर, वही भाजपा, जब ओबामा भारत को आर्थिक सुधारों को तेज करने की हिदायत देते हैं तो मुखर हो जाती है क्यों, क्योंकि, मनमोहन को टारगेट करके टाईम या द इंडिपेंडेंट का हमला उसकी राजनीति को सूट करता है, लेकिन ओबामा की बात उसकी देश प्रेम की छवि पर डायरेक्ट चोट करती है, जो उसके लिए राजनीतिक रूप से नुकसानदायक है उस समय भी वह आर्थिक सुधारों के लिए डाले जा रहे दबाव का विरोध नहीं करती, बल्कि, यह कहती है कि ऐसा तभी होगा, जब भारत ऐसा चाहेगा

मनमोहनसिंह , राष्ट्र के रक्षक हैं या सोनिया गांधी के पूडल हैं? या, मनमोहनसिंह, अभी तक के सबसे ज्यादा लाचार, असमर्थ और रिमोट कंट्रोल से याने सोनिया गांधी के निर्देशों पर चलने वाले प्रधानमंत्री हैं या उनमें त्वरित और विवेकपूर्ण निर्णय लेने की क्षमता नहीं है। ये वे आरोप हैं, जो भूमंडलीकरण और उदारवाद के समर्थक उनके विरोधी तब से लगा रहे हैं, जबसे मनमोहनसिंह प्रधानमंत्री बने हैं। आज वही आरोप एक समय मनमोहनसिंह के कसीदे पढ़ने वाली मेगजीन टाईम, मनामोहनसिंह की पीठ थपथपाने वाले ओबामा और द इंडिपेंडेंट लगा रहा है। मकसद एक ही है, भारत की अर्थव्यवस्था को जितनी जल्दी हो देशी विदेशी कॉरपोरेट के हवाले कर दो। अमेरिका और यूरोप को भारत वासियों की कीमत पर अपनी हालत सुधारने दो याने आर्थिक सुधार भारत में करो और हालत उनकी सुधरे| ऐसे ही आरोप भारत के कॉरपोरेट भी लगा रहे हैं।  मनमोहनसिंह वो सब करना चाहते हैं, लेकिन देश की राजनीतिक परिस्थितियाँ उनके अनुकूल नहीं हैं। भाजपा, जिसे सत्ता में अगर आयी तो वही सब करना है, विरोध में इसलिए है कि उसे 2014 का आम चुनाव नजर आ रहा है। एक असफल प्रधानमंत्री और बदनाम यूपीए उसे मुफीद बैठते हैं। मनमोहन सिंह को सोनिया गांधी का पूडल कहने का मतलब है कि वो ज्यादा संगीन सच्चाई, जो देश के लोगों के सामने आना चाहिये, उसे दबाना।          

इतिहास मात्र घटनाओं का अभिलेख नहीं होता बल्कि घटनाओं के परिणामों की विवेचना और समालोचना का रिकार्ड भी होता है। जब कभी मनमोहनसिंह के ऊपर लगने वाले इन आरोपों की विवेचना होगी, तब इतिहास में यह भी दर्ज होगा कि भारत में मनमोहनसिंह ने वर्ष 1991 में नवउदारवाद की जिन नीतियों के रास्ते पर देश को डाला, उसके बाद आने वाली सभी सरकारें, उन्हीं नीतियों पर चलीं, जो अमेरिका परस्त थीं और जिन पर चलकर देश की जनसंख्या का एक छोटा हिस्सा तो संपन्न हुआ लेकिन बहुसंख्यक हिस्सा बदहाली और भुखमरी को प्राप्त हुआ। इतिहास में यह भी दर्ज होगा कि 1991 के बाद के दो दशकों में भारत में शायद ही कोई ऐसा राजनीतिक दल रहा हो, जो सत्ता में न आया हो या जिसने सत्ता में मौजूद दलों को समर्थन न दिया हो। इसलिए जब भी मनमोहनसिंह के ऊपर सोनियानिष्ठ होने के आरोप लगाए जाते हैं तो असली उद्देश्य मनमोहनसिंह के अमेरिका परस्त या वर्ल्ड बेंक परस्त चेहरे को छिपाना ही होता है। क्योंकि, उन्हें लगता है कि यदि कल वे सत्ता में आये तो उन्हें उसी रास्ते पर चलना है, इसलिए भूमंडलीकरण और उदारवाद को बदनाम करने से अच्छा है, व्यक्तियों को बदनाम करो। यदि मनमोहनसिंह पूडल हैं तो सोनिया के नहीं अमेरिका, वर्ल्ड बैंक और आईएमएफ के पूडल हैं और पिछले दो दशकों में सत्ता का सुख प्राप्त कर चुके सभी दल इनके पूडल रह चुके हैं, यहाँ तक कि देश का मीडिया भी, विशेषकर टीव्ही मीडिया और बड़े अंग्रेजी दां अखबार भी इनके पूडल हैं|

अरुण कान्त शुक्ला 
18'जुलाई'2012 

   

Monday, July 16, 2012

हमारे किस काम की ये दुनिया -




हमारे किस काम की ये दुनिया,

इतनी बेचारगी, लाचारी और जिल्लत की ये दुनिया,
इंसानियत पे होती हावी हैवानियत की ये दुनिया,
आदमी की कोख से पैदा हुए भेड़ियों की ये दुनिया,
कपडे पहने, कपड़ों में नंगे घूमते सफेदपोशों की ये दुनिया,
झूठों,फरेबियों और मक्कारों के ईशारे पर नाचती ये दुनिया,
क्यों न इस दुनिया में आग लगा दें,
हमारे किस काम की ये दुनिया।।


कूड़े के ढेर पे खाना ढूंढते बच्चों की ये दुनिया,
कुत्तों को गोदी बिठालकर खाना खिलातीं मेमों की ये दुनिया,
अपनी जमीन से अलग होकर आत्महत्या करते किसानों की ये दुनिया,
अपना जमीर बेचकर राज करते सत्तानशीनों की ये दुनिया,
फुटपाथों, दुकानों के पटियों, प्लेटफार्म पर लाशों जैसे सोते लोगों की ये दुनिया,
क्यों न इस दुनिया में आग लगा दें,
हमारे किस काम की ये दुनिया।।
 

गरीबों से निवाले छीनकर महल तानने वालों की ये दुनिया,
अमरीका के तलवे चाटने वाले सियासतदाओं की ये दुनिया,
वर्ल्ड बैंक, आईएमएफ और डबल्यूटीओ की बनाई ये दुनिया,
दुनिया की आधी आबादी के लिए कब्र बनी ये दुनिया,
भूख की लपटों में आदमी को ज़िंदा जलाने वालों की ये दुनिया,      
क्यों न इस दुनिया में आग लगा दें,
हमारे किस काम की ये दुनिया।।

औरतों के जिस्म को नोचने वालों की ये दुनिया,
बच्चों को भूखे मारने वालों की ये दुनिया,
दुनिया को बनाने वालों का खून पीने वालों की ये दुनिया,
दुनिया को बनाने वालों को बेवकूफ बनाने वालों की ये दुनिया,
धर्म के नाम पर लूट मचाने वाले बाबाओं की ये दुनिया,
क्यों न इस दुनिया में आग लगा दें,
हमारे किस काम की ये दुनिया।।


इतनी बेचारगी , लाचारी और जिल्लत की ये दुनिया,
इंसानियत पे होती हावी हैवानियत की ये दुनिया,
आदमियत जिसमें हो रही शर्मसार, है ये वो दुनिया,
पैसा जिसमें करता इंसानियत से व्यभिचार, ऐसी ये दुनिया,
सलीब जिसमें पुण्य चढ़ा, खिलखिलाता है पाप, ऐसी ये दुनिया,       
क्यों न इस दुनिया में आग लगा दें,
हमारे किस काम की ये दुनिया,
क्यों न इस दुनिया में आग लगा दें,
हमारे किस काम की ये दुनिया।।

अरुण  कान्त शुक्ला-
     
 
  
         

Thursday, July 12, 2012

बस यही व्यापार चल रहा है -


बस यही व्यापार चल रहा है

गगन से लेकर धरा तक,
धरा से लेकर गगन तक,
यही व्यापार चल रहा है,
आदमी आदमी को छल रहा है,
यही व्यापार चल रहा है,
बस यही व्यापार चल रहा है||  

अब दुश्मन की जरुरत है कहाँ,
जब दोस्त दोस्त से लड़ रहा है,
रुपये का व्यापार इस कदर हावी है,
आदमी आदमीयत को भी छल रहा है,
यही व्यापार चल रहा है,
बस यही व्यापार चल रहा है||  


रिश्ते रुपये, पैसे, कौड़ी, में बदल गए,
पेशे अब कोई पवित्र नहीं रहे,
किताबें अब दोस्त नहीं,
उनका एक एक हर्फ़ अब छल रहा है,
यही व्यापार चल रहा है,
बस यही व्यापार चल रहा है||

राजा को नहीं प्रजा से प्यार,
काजी की है इन्साफ से रार,
खुदा है हाजी का व्यापार,
जो जहां है बस छल रहा है,
यही व्यापार चल रहा है,
बस यही व्यापार चल रहा है||

अरुण कान्त शुक्ला  
     
   
    

Monday, July 9, 2012

आरटीआई कार्यकर्ता रमेश अगवाल पर जानलेवा हमला -


 आरटीआई  कार्यकर्ता रमेश अग्रवाल पर जानलेवा हमला –

जिंदल सहित रायगढ़ जिले के अनेक उद्योग समूहों की आँख की किरकिरी बने आरटीआई कार्यकर्ता रमेश अग्रवाल पर शनिवार दोपहर गोली चलाने वाले दोनों युवकों का पोलिस अभी तक कोई सुराग नहीं लगा पाई है रमेश अग्रवाल पर यह हमला तब हुआ, जब वो रायगढ़ में इतवारी बाजार स्थित सत्यम सायबर कैफे के अपने कार्यालय में बैठे थे

रमेश अग्रवाल ने आरटीआई के माध्यम से सूचनाएं एकत्रित करके रायगढ़ और आसपास के क्षेत्रों में लगने वाले पॉवर प्लांटों के द्वारा पर्यावरण सुरक्षा के मानकों की अनदेखी करने के खिलाफ लंबे समय से कानूनी और सीधी लड़ाई छेड़ रखी है उनके संगठन जनचेतना के साथ अनेक कार्यकर्ता तो जुड़े ही हैं, ग्रामीण क्षेत्रों से भी उन्हें व्यापक जनसमर्थन प्राप्त है रविवार, 8जून को रायगढ़ में सर्वदलीय मंच की ओर से रमेश अग्रवाल के ऊपर हुए कातिलाना हमले के विरोध में एक दिन का बंद रखा गया और रामनिवास टाकीज चौक पर आमसभा का आयोजन किया गया

ज्ञातव्य है कि पिछले वर्ष 18जून को भारत सरकार के पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने जिंदल के द्वारा बिना पर्यावरण क्लीयरेंस के शुरू किये गये पॉवर प्लांट के निर्माण कार्य को रुकवा दिया था और छत्तीसगढ़ प्रदेश सरकार के पर्यावरण विभाग को कार्यावाही करने का निर्देश दिया था छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिला के तमनार ब्लाक में निर्माण किये जा रहे मेसर्स जिंदल पॉवर लिमिटेड के पॉवर प्लांट के खिलाफ यह कार्यवाही रमेश अग्रवाल और उनके जनसंगठन जनचेतना की शिकायत पर ही हुई थी उसके बाद जिंदल समूह ने बौखलाकर रमेश अग्रवाल के खिलाफ 5 करोड़ रुपये माँगने और जिंदल के अधिकारियों को जान से मारने की धमकी देने के आरोप लगाकर रिपोर्ट लिखाई थी ऐसी ही शिकायतें जनचेतना के कार्यकर्ता राजेश त्रिपाठी और आदिवासी किसान मजदूर एकता संगठन के हरिहर पटेल के खिलाफ भी की गईं थीं पर, रमेश अग्रवाल के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करने के बाद पैदा हुए जनदबाव के चलते बाकी दोनों के खिलाफ पोलिस ने पर्याप्त सबूत नहीं होने की बात कहकर एफआईआर दर्ज करने से मना कर दिया था पर, जिंदल के दबाव के चलते रमेश अग्रवाल को 28मई को पोलिस ने गैर जमानतीय धाराएं लगाकर गिरफ्तार किया था पोलिस की क्रूरता इस हद तक थी कि जब रमेश अग्रवाल को तबियत खराब होने की वजह से अस्पताल में भारती किया गया तो वहाँ उन्हें हथकड़ियों में जकड़ कर रखा गया था  रमेश अग्रवाल को जमानत तीन माह बाद सर्वोच्च न्यायालय से मिली थी 

आज रमेश अग्रवाल को रायगढ़ से राजधानी रायपुर के अस्पताल में शिफ्ट किया गया है रमेश अग्रवाल ने रायगढ़ में मीडिया से बात करते हुए उन पर हमले के लिए उद्योगपतियों को जिम्मेदार बताया है रमेश अग्रवाल के उपर अभी हुए हमले को उद्योग समूहों के साथ चल रही अदावट के साथ ही जोड़कर देखा जा रहा है छत्तीसगढ़ में रायगढ़ जिला सर्वाधिक प्रदूषित है और पूरे जिले में कांग्रेस के सांसद नवीन जिंदल के मालिकाना के अनेक उद्योग, कोयला खानें, भयानक प्रदूषण फैलाने वाले स्पंज आयरन प्लांट और पॉवर प्लांट हैं इस उद्योग समूह के उपर जमीनें दबाने तथा प्लांट से निकली राखड़ को गाँव की जमीनों पर फेंकने के आरोप आम हैं लगभग 5वर्ष पूर्व ऐसी ही एक राखड़ के पहाड़ के बारीश में फ़ैल जाने से पूरा गाँव और खेत उसमें दब गये थे और अनेक लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था

प्रदेश के अंदर, विशेषकर रायगढ़ क्षेत्र में, जिंदल उद्योग समूह का उन लोगों को डराने, धमकाने और हताश करने का लंबा इतिहास है, जो इसकी योजनाओं का विरोध करते हैं या उनमें सुधार की मांग करते हैं अभी कुछ वर्ष पूर्व ही इस समूह ने प्रदेश के जाने माने स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रामकुमार अग्रवाल के खिलाफ देश में अनेक जगह मानहानी के मुकदमे दायर करके उन्हें 80 वर्ष की आयु में बहुत तंग किया था क्योंकि वे रायगढ़ में लगाने वाले जिंदल के स्पंज आयरन प्लांट का विरोध कर रहे थे

अग्रवाल हमला होने के एक दिन पूर्व शुक्रवार को भी धरमजयगढ़ के नवापारा में टीएनआर की जनसुनवाई के विरोध में हो रहे प्रदर्शन में शामिल हुए थे और कंपनी के खिलाफ कोर्ट जाने की तैय्यारी में थे ज्ञातव्य है कि राज्य सरकार ने अनेक छोटी बड़ी कंपनियों के साथ पॉवर प्लांट, स्पंज आयरन कारखाने, लगाने के MOU करके रखे है और ये कंपनियां किसानों से ओने पोने दाम पर जमीनों का सौदा करना चाहती हैं जनसुनवाई के नाम पर पोलिस की मौजूदगी में मनमाने निर्णय लिए जाते हैं और विरोध होने पर किसानों के खिलाफ लाठी गोली का इस्तेमाल करके जनसुनवाई को मालिकों के पक्ष में मोड़ा जाता है

अरुण कान्त शुक्ला