Tuesday, February 22, 2011

क्या कांग्रेस शीतकालीन सत्र के खर्चे की भरपाई करेगी ?


क्या कांग्रेस शीतकालीन सत्र के खर्चे की भरपाई करेगी ? --


आखिरकार , वही हुआ , जो बोफोर्स तोप सौदे के मामले की जांच जेपीसी से कराये जाने की माँग के समय हुआ था या फिर हर्षद मेहता मामले में या तहलका रक्षा सौदे के मामले में जेपीसी की माँग को लेकर हुआ था | संसद के दोनों सदनों के शीतकालीन सत्र को बर्बाद करने और देशवासियों की गाढ़ी कमाई से वसूले गए टेक्सों से लगभग एक सौ पचास करोड़ रुपये बर्बाद करने के बाद , बजट सत्र के दूसरे दिन मंगलवार को प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह ने सदन के शुरू होते ही घोषणा की कि सरकार ने 2-जी स्पैक्ट्रम आवंटन के मामले में जांच करने के लिये जेपीसी गठन का फैसला लिया है | ठीक यही , बोफोर्स , हर्षद मेहता और तहलका कांड के समय हुआ था , जब क्रमशः लगभग 19,14 और 16 दिनों तक संसद का काम ठप्प रहा था और बाद में तात्कालीन सरकारों ने पहले दो मामलों में जेपीसी तथा तहलका के मामले में जांच कमीशन गठन की माँग स्वीकार की थी | जेपीसी का गठन कांग्रेसनीत यूपीए-2 सरकार क्यों नहीं करना चाहती थी और जेपीसी की माँग के पीछे सच्चाई को सामने लाने के अलावा विपक्ष के और क्या छिपे हुए राजनैतिक मंसूबे होंगे , इस सब पहलुओं पर काफी चर्चा हो चुकी है और काफी कुछ लिखा भी जा चुका है | इस सबसे इतर प्रश्न यह है कि उस राजनैतिक दल या दलों के खिलाफ क्या विधायी कार्यवाही हो , जो यह जानते हुए भी कि गलती उनकी या उनके पक्ष की है , अपने राजनैतिक हितों की पूर्ती अथवा रक्षा के लिये लोकतांत्रिक व्यवस्था की कार्यशाला (संसद) को ठप्प होने देते हैं या ठप्प करते हैं | ये , वो राजनैतिक दल भी हो सकते हैं , जिनकी सरकार हो या फिर विपक्षी राजनैतिक दल भी | जब वे संसद की कार्रवाई को ठप्प करते है , तो न केवल सरकारी खजाने का पैसा जाया होता है बल्कि उस अंतराल में राष्ट्र के नागरिको को  लोकतांत्रिक अधिकार भी नकार दिए जाते हैं | इसीलिये , लोकतांत्रिक व्यवस्था में  संसद के काम का ठप्प होना एक ऐसा गंभीर कदम है , जिसकी नौबत आने पर सरकार और विपक्ष दोनों से लोकतंत्र के प्रति निष्ठा की उम्मीद देशवासी करते हैं | नवउदारवाद की नीतियों पर चल पड़ने के बाद जिन राजनीतिक परिस्थितियों का निर्माण देश में हुआ है और राजनैतिक मानदंडों का जिस तरह ह्रास हुआ है , उसमें संसद की कार्रवाई केवल अपने दल के स्वार्थों की पूर्ती के लिये रोक देना भी एक सामान्य घटना बन कर रह गई है | इसे रोकने का एकमात्र तरीका है कि ऐसा एक विधान बने , जिसमें लोकतांत्रिक व्यवस्था और मर्यादाओं की अवेहलना करने पर राजनैतिक दलों की जिम्मेदारी और दंड तय करने का प्रावधान हो | राजनैतिक दल चाहें तो यह काम सर्वोच्च न्यायालय को भी सौंपा जा सकता है | 


 2-जी स्पैक्ट्रम पर जेपीसी की माँग को लेकर शीतकालीन सत्र के नहीं चल पाने की पूरी जिम्मेदारी कांग्रेस की है | जैसा कि प्रधानमंत्री के साथ ए. राजा के पत्रव्यवहार से पूरी तरह स्पष्ट हो चुका है कि प्रधानमंत्री को यह अच्छी तरह मालूम था कि ए.राजा 2-जी स्पैक्ट्रम  आवंटन के मामले में अनियमितता बरत रहे हैं और न केवल पूरे मामले में व्यक्तिगत लाभ उठाने की कोशिशें हैं बल्कि इसे सरकार को होने वाली आय की कीमत पर किया जा रहा है , तब भी प्रधानमंत्री ने इसे रोकने की कोई कोशिश नहीं की | इतना ही नहीं प्रधानमंत्री ने स्वयं कैग को यह कहकर धमकाया कि उसे प्रक्रियागत गलती और घोटाले में अंतर करना आना चाहिये | कांग्रेस के सभी छोटे बड़े नेता उस समय यह प्रचारित करने में जुटे थे कि टेलीकाम मिनिस्ट्री में कुछ भी गलत नहीं हुआ है | कपिल सिब्बल , जिन्होंने राजा के बाद उस मंत्रालय को संभाला तो यहाँ तक कह गए कि कैग को ठीक से हिसाब करना ही नहीं आया और सरकारी खजाने को कोई नुक्सान नहीं पहुंचा है , जिसके लिये उन्हें सुप्रीम कोर्ट तक से झाड़ खानी पड़ी | यूपीए की चेयरपर्सन और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी , महासचिव राहुल गांधी , के साथ पूरी कांग्रेस इस तरह प्रधानमंत्री को पाक साफ़ बताने पर तुल गई मानो यह इतनी बड़ी खूबी हो जिसकी आड़ में लाखों करोड़ का चूना लगता रहे और पूरा देश खामोश रहे क्योंकि प्रधानमंत्री कथित रूप से ईमानदार हैं | यूपीए के गठबंधन में शामिल सभी राजनैतिक दलों ने भी आपराधिक ढंग से चुप्पी साधे रखी | पूरा शीतकालीन सत्र बर्बाद होने के बाद कांग्रेस के सम्मेलन में प्रधानमंत्री ने घोषणा की कि वे लेखा समीती के सम्मुख उपस्थित होने के लिये तैयार हैं | कांग्रेस का यह आपराधिक चरित्र कॉमनवेल्थ खेलों की तैय्यारियों में हुए घपलों के समय भी सामने आया था और आदर्श सोसाइटी में हुई गडबडियों के समय भी देखने को मिला |


आज मनमोहनसिंह कह रहे है कि यह बिलकुल गलत समझ है कि मैं जेपीसी का रास्ता रोके था | मैं किसी भी कमेटी का सामना करने से नहीं डरता ....मैंने हमेशा कहा है कि मेरा आचरण सीजर की पत्नी की तरह होना चाहिये , संदेह से ऊपर | तब प्रधानमंत्री या फिर कांग्रेस बताएगी कि शीतकालीन सत्र को किसलिए कुर्बान किया गया और विपक्ष की जेपीसी की जायज माँग क्यों नहीं मानी गई | आप कुछ भी कहें प्रधानमंत्री जी , पर , सचाई यही है कि आपकी अकर्मण्यता के कारण ही आपकी सरकार का एक मंत्री सरकारी खजाने को 1,76,000 करोड़ रुपये का चूना सरकारी खजाने को लगा पाया तो आपकी और आपकी पार्टी कांग्रेस की जिद के कारण संसद का शीतकालीन सत्र बर्बाद होने के चलते 150 करोड़ रुपये का नुकसान देश को उठाना पड़ा है , जो जनता की गाढ़ी कमाई से चुकाए गए टेक्स का पैसा है | क्या आपकी पार्टी कांग्रेस इसकी भरपाई करेगी ?

अरुण कांत शुक्ला                       

Sunday, February 20, 2011

वो पूरी नज़्म हूँ मैं -


वो पूरी नज्म हूँ मैं -

दिल का दर्द था , बाहर छलक गया ,
अश्कों के सैलाब से ,  एक आंसू ढलक गया ,

सफर पर चले थे हम , अपना सलीब अपने काँधे पर लिये ,
रकीब क्या चढ़ाता सूली , खुद सलीब चढ़ लिये ,

न मोहब्बत कम हुई , न सुरूर कम हुआ ,
उन्होंने रास्ते बदल लिये , हमसे ये न हुआ ,

न शिकवा है , न शिकायत है ,
सैय्याद की बुलबुल से , ये पुरानी अदावट है ,

अब जख्म नहीं होते हरे , नये घाव नहीं लगते ,
राह के च़राग बुझाते हैं अब , वो और बेफ़िक्री से ,

न कवि हूँ  मैं , न शायर हूँ मैं ,
जाहिलों ने पढ़ी अधूरी , वो पूरी नज्म हूँ मैं ,
अरुण कांत शुक्ला -