Monday, April 22, 2013

जे के लक्ष्मी सीमेंट में आगजनी.. धुंए के पीछे का सच..



जे के लक्ष्मी सीमेंट में आगजनी..
धुंए के पीछे का सच..

आसमान को छूती इमारतों में चैन की नींद की गारंटी लेने वाली जे के लक्ष्मी सीमेंट के दुर्ग जिले के मलपुरीखुर्द के निर्माणाधीन कारखाने में 4 अप्रेल की शाम को हुई आगजनी ने ग्रामवासियों की रात की नींद के साथ साथ दिन का चैन भी छीन लिया हैउद्योग समूहों की सेवा में तत्परता के साथ तैयार खड़ी रहने वाली राज्य सरकार की पोलिस ने आनन फानन में 1200 की जनसंख्या वाले ग्राम मलपुरीखुर्द में रात को दबिश देकर 80 से ज्यादा लोगों को जो जैसा मिला, वैसे ही दबोच लिया ग्राम वासियों ने पोलिस की इस एकतरफा कार्रवाई के खिलाफ 12 किलोमीटर दूर स्थित नंदनी थाने का घेराव कर दिया गाँव वालों का कहना है की पोलिस ने उनके साथ जानवरों से भी बदतर सलूक किया है पुलिसिया आतंक इतना था की पुलिसवाले लोगों के घरों के दरवाजे तोड़कर भीतर घुसे और लोगों को उठा कर ले गए

खेत, खलिहान,चैन छीन ले गया जे के लक्ष्मी प्लांट

1200 की आबादी वाले ग्राम मलपुरीखुर्द के लोग यूं तो पिछ्ले लगभग 48 दिनों से उन किसानों के परिवार वालों को नौकरी देने की मांग को लेकर आन्दोलन कर रहे थे, जिनकी जमीनें प्लांट में गईं हैं, पर, जेके प्रबंधन से पूरे गाँव और आसपास के लोगों के विवाद की एक और बड़ी वजह गाँव के मुख्य पहुँच मार्ग पर प्लांट के द्वारा अवैध कब्जा किये जाने को लेकर थी गाँव का रास्ता बंद होने से सभी ग्रामवासी विरोध में थे यह मार्ग मलपुरी वासियों को मात्र 4 किलोमीटर की दूरी तय करने पर गिरहोला, अहिवारा, बेरला, पहुंचा देता था, लेकिन इस कच्चे मार्ग पर प्लांट के द्वारा कब्जा करने से ग्रामीणों को 4 के बजाय 7/8 किलोमीटर का रास्ता तय करना पड़ रहा है गाँव के बुजुर्ग महिला कुमारी बाई तथा और लोगों ने बताया की न केवल मलपुरीखुर्द बल्कि आसपास के गाँव के निवासी भी जे के लक्ष्मी प्रबंधन की इस मनमानी से खासे कष्ट में हैं इनका कहना था की प्लांट आने से विकास की बात तो मंजूर की जा सकती है लेकिन प्लांट प्रबंधन की मनमानी और राज्य सरकार की प्रबंधन की तरफदारी के चलते उनके खेत, जमीन, और शांती सभी उनसे छीन ली गयी है

कर्मचारी नहीं गुंडे पाल रखे हैं प्रबंधन ने

प्लांट में अभी उत्पादन शुरू नहीं हुआ है सिविल और फेब्रीकेशन का काम दो ठेका कंपनियां   जीडीसीएल और हाजी बाबा कंपनियां कर रही हैंकंपनी के पूर्णकालिक निदेशक शैलेन्द्र चौकसे ने कंपनी की तरफ से सफाई पेश करने के लिए रायपुर में बुलाई प्रेस कांफ्रेंस में बताया की कंपनी में कार्यरत 1200 कर्मचारियों में से 800 बाहरी तथा 400 स्थानीय हैं ग्रामवासियों के अनुसार कंपनी के अधिकारी झूठ बोल रहे हैं, स्थानीय लोग कंपनी की बताई हुई संख्या से बहुत कम हैं गाँव के एक और अन्य बुजुर्ग 80 वर्षीय झंगलु का कहना है कि प्रबंधन ने कर्मचारी नहीं गुंडे पाल रखे हैं जो आये दिन गाँव में पहुंचते हैं और आतंक मचाते हैं अब उन्हें उनके खेतों और उनकी जमीनों तक पहुँचने से रोका जा रहा है जहां देखो तार के घेरे लगाकर प्लांट के गार्ड बिठा दिए गए हैं ग्रामवासी इस बात से रुष्ट हैं की कंपनी के वरिष्ठ अधिकारी उनके गाँव मलपुरीखुर्द का नाम लेकर आगजनी का आरोप लगा रहे हैं उनका कहना है की वे कंपनी की ज्यादतियों से सबसे अधिक प्रभावित हैं, इसलिए आंदोलन करते हैं उन्हें रास्ते से हटाने के लिए कंपनी शासन के साथ मिलकर यह षड्यंत्र कर रही है

धुंए के पीछे छुपा सच

जे के लक्ष्मी प्रबंधन का आरोप है कि 4 अप्रेल की शाम को कारखाने में आग ग्राम मलपुरीखुर्द के ग्रामीणों ने ही लगाई पर, अनेक ऐसे सवाल हैं, जिनके जबाब धुंए के पीछे के सच को बाहर ला देंगे और जिनका जबाब देने से जे के लक्ष्मी प्रबंधन, राज्य सरकार, प्रशासन और पोलिस सभी कतरा रहे हैं

पहला सवाल

क्या एक गाँव मलपुरीखुर्द के ग्रामीण, लगभग 200, जिनमें 50 के करीब महिलाएं भी शामिल हैं, कारखाने में मौजूद 1200 कर्मचारियों, सुरक्षा गार्डों और कंपनी के बाऊंसरों की मौजूदगी में पेट्रोल बम और जरीकेनों में केरोसीन लेकर इतना बड़ा हमला कर सकते हैं?

दूसरा सवाल

कि, आन्दोलन लगभग पिछले 48 दिनों से चल रहा था और यदि मलपुरीखुर्द के ग्रामीण ही, कंपनी के पूर्णकालिक निदेशक शैलेन्द्र चौकसे के कथनानुसार, इस अग्निकांड के लिए जिम्मेदार हैं तो उनकी तैय्यारी की खबर कंपनी, शासन, अधिकारयों और पोलिस को कैसे नहीं लगी?

तीसरा सवाल

कंपनी के एचआर हेड मेजर डी पी मान के अनुसार मलपुरी खुर्द के ग्रामीणों ने 200 लोगों को नौकरी देने की मांग को मनवाने के लिए कारखाने के अन्दर की लगभग 80 एकड़ जमीन पर पिछले दो माह से कब्जा करके रखा था यही वह क्षेत्र है, जहां आगजनी हुई मेजर मान के बयान से तीसरा अहं सवाल खड़ा होता है कि छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से मात्र 22 किलोमीटर और कारखाने के पास स्थित थाने से मात्र 5 किलोमीटर की दूरी पर किसी प्राईवेट कारखाने की सीमा के भीतर 80 एकड़ के क्षेत्र पर एक गाँव के कुछ ग्रामीण दो माह से कब्जा जमाये हों, जिससे सिविल और फ्रेबिक्स की ठेका कंपनी काम नहीं कर पा रही हों, और कंपनी प्रबंधन इसकी शिकायत पुलिस में या राज्य सरकार से न करे, क्या यह संभव है?

चौथा सवाल

आगजनी की घटना के ठीक तीन दिन पहले प्लांट में एक दुर्घटना हुई, जिसमें एक 19 वर्षीय किशोर कर्मचारी की मृत्यु हुई और दो अन्य गंभीर रूप से घायल हुएतब भी, कंपनी प्रबंधन ने मलपुरीखुर्द के ग्रामीणों पर प्लांट के भीतर घुसने और कार्यालय के सामने खड़ी कार, जेसीबी हाईवा और अन्य वाहनों के कांच तोड़ने के आरोप लगाए थे पर, पूरे मामले में प्रशांत  ठाकुर, एएसपी, दुर्ग सिटी का कहना था कि मर्ग कायम कर जांच शुरू कर दी गयी है तोड़फोड़ के संबंध में किसी तरह की शिकायत नहीं मिली हैशिकायत मिलाने पर कार्रवाई की जायेगी तब चौथा सवाल यह है कि क्या 1 अप्रेल को कंपनी द्वारा मीडिया में तोड़फोड़ की बात फैलाना, पर पोलिस को शिकायत नहीं करना, 4 अप्रेल को हुई आगजनी की पूर्व तैय्यारी तो नहीं थी?

सीमेंट एम्पलाईज यूनियन के प्रदेश सचिव दुष्यंत तिवारी का इस विषय में कहना है कि किसानों के द्वारा नौकरी माँगने अथवा मुआवजा बढ़ाने  की मांग करने पर निजी कंपनियां अधिकारियों के साथ मिलीभगत करके इस तरह की घटनाओं को अंजाम देती हैं ताकि किसानों का आन्दोलन समाप्त हो जाए और वे अपनी मूल मांगों से हटकर पोलिस और अदालत के चक्करों से बचने में भिड़ जायें दुष्यंत तिवारी ने कहा की ऐसा ही लगभग दो वर्ष पूर्व लेंको से जमीन का मुआवजा और नौकरी की मांग करने वाले किसानों के साथ किया गया था और अब वही कहानी जे के लक्ष्मी में दोहराई जा रही है पेट्रोल बम और जरीकेन में केरोसीन कंपनी की मिलीभगत से प्लांट की गई स्टोरी है दुष्यंत तिवारी ने कहा की छत्तीसगढ़ में सीमेंट के कारखानों में 80 फीसदी कर्मचारी ठेके पर हैं और निरंतर होते मशीनीकरण से उनको मिलने वाले काम में लगातार कटौती हो रही है छत्तीसगढ़ के सीमेंट उद्योग में मजदूरों का ठेका लेने वाले अधिकाँश ठेकेदार या तो भाजपा या कांग्रेस के साथ संबंध रखने वाले दबंग हैं, जिन पर राज्य सरकार का वरद हस्त बना रहता है| सीमेंट कंपनियां कार्टेल बनाकर सीमेंट के दाम मनमाने तरीके से बढ़ाती हैं, पर, ठेका मजदूरों का भविष्य निधी का पैसा तक नियमित रूप से नहीं जमा कराती हैं इन सारे मामलों में राज्य सरकार मूक दर्शक बनी रहती है

किसानों को धोखा देकर खरीदीं जमीनें

कंपनी की तरफ से सफाई देने के लिए बुलाई गयी प्रेस कांफ्रेंस में कंपनी के पूर्णकालिक निदेशक शैलेन्द्र चौकसे ने कहा कि जे के लक्ष्मी ने छत्तीसगढ़ में किसी भी किसान से कोई  जमीन नहीं खरीदी है और न ही जे के लक्ष्मी को राज्य सरकार ने जमीन अधिग्रहित करके दी है, इसलिए कंपनी की किसी को नौकरी देने की कोई जिम्मेदारी नहीं है तब कंपनी ने जमीन किस से खरीदी?
जे के लक्ष्मी ने कारखाने के लिए लगभग पूरी जमीन 475 एकड़ हरियाणा के एक ही व्यक्ति पदमसिंह से खरीदी हैकंपनी ने छत्तीसगढ़ में जमीन खरीदना 2010-11 में शुरू किया एक वर्ष पूर्व हरियाणा के अनेक लोगों के नाम से मलपुरी खुर्द की सारी जमीन खरीद ली गयी थी, जिसे बेचने की पॉवर ऑफ़ अटार्नी पदमसिंह के पास थी, जिससे जे के लक्ष्मी ने पूरी जमीन खरीदी ऐसा ही सेमरिया, नंदनीखुंदनी, घिकुड़ीया, खासाडीह, पिटौरा, गिरहोला ग्रामों की जमीन के साथ हुआसबसे अधिक जमीन मलपुरीखुर्द के किसानों की कारखाने में गयी है जमीनों का सौदा करते समय किसानों को बताया गया था कि इन जमीनों में गन्ने की खेती की जायेगी यदि हरियाणा के एक व्यक्ति ने एक वर्ष पूर्व दुर्ग जिले में जमीनें खरीदीं  और फिर कंपनी को बेचीं, इस बात को इस तथ्य के साथ जोड़कर देखा जाए कि जे के लक्ष्मी ने एक कारखाना हाल ही में हरियाणा के झज्जर में भी डाला है तो तस्वीर साफ़ हो जाती है

निजी उद्योग समूहों का यह पुराना हथकंडा है कि वे पहले गुपचुप तरीके से सर्वे कराकर कारखाने के लिए स्थल का चुनाव करते हैं और फिर दलालों के मार्फ़त ओने पोने दामों में सौदा करके जमीनें खरीद लेते हैं इतना ही नहीं ग्रामवासियों का यह भी कहना है कि कंपनी ने 35 एकड़ सरकारी घास जमीन और आम रास्ते पर भी कब्जा कर लिया है

छत्तीसगढ़ विशेष जनसुरक्षा अधिनियम का एक और दुरुपयोग

छत्तीसगढ़ सरकार जब 2005 में छत्तीसगढ़ विशेष जनसुरक्षा अधिनियम लेकर आई थी, तब राज्य के जनवादी आन्दोलन ने उसका खासा विरोध किया था कि सरकार इसका प्रयोग किसानों, मजदूरों और जनवादी आन्दोलनों को दबाने के लिए करेगीसमय ने इसे प्रमाणित भी किया है विनायक सेन, फ्री लांस पत्रकार टी गंगाधरन, आरटीआई एक्टिविस्ट और किसानों की जमीन के जबरिया अधिग्रहण के खिलाफ लड़ने वाले रायगढ़ के रमेश अग्रवाल जैसे लोगों के ऊपर इस अधिनियम का प्रयोग हुआ हैअब राज्य सरकार ने जे के लक्ष्मी में नौकरी माँगने वाले किसानों के अगुआ वीरेन्द्र कुर्रे को न केवल आनन् फानन में गिरफ्तार किया, उसके ऊपर छत्तीसगढ़ विशेष जनसुरक्षा अधिनियम भी लगा दिया है पोलिस का यह भी कहना है कि उसके घर से माओवादी साहित्य बरामद हुआ हैयाने, या तो उद्योग समूहों, राज्य सरकार और उसके अधिकारियों की लूट खसोट, अन्याय, अत्याचार और शोषण के सामने नतमस्तक रहो, नहीं तो माओवादी बनाकर जेल में सड़ने के लिए तैयार रहो

इस पूरे मामले में राज्य सरकार का रवैय्या प्रदेश के किसानों को सांत्वना देने वाला भी नहीं है| राज्य सरकार नए उद्योगों के लिए लगातार एमओयू करते जा रही है| राज्य की औद्योगिक नीति में उद्योगपतियों के लिए सब कुछ है और उनके प्रत्येक हित का ध्यान रखा गया है, लेकिन बेरोजगारों के लिए कोई नीति नहीं हैउद्योग समूह कारखाने लगाने के लिए किसानों और आदिवासियों को धोखे में रखकर जमीनें खरीद रहे हैं जनसुनवाई के नाम पर पोलिस और उद्योग समूहों के दादा (पाले हुए गुंडे) किसानों को डराते धमकाते हैं| अधिग्रहित जमीन से ज्यादा जमीन, सरकारी हो या किसानों की, अवैध रूप से कब्जा की जा रही है सामुदायिक उपयोग की जमीनों और गाँवों को आपस में जोड़ने वाले रास्तों पर कब्जा किया जा रहा है विरोध होने पर राज्य सरकार तथा पूरा 
प्रशासन उद्योग समूहों के पक्ष में लाठी गोली लेकर किसानों के ऊपर पिल पड़ता है

हाल ही में राईट्स एंड रिसोर्सेज एनिशिएटिव और सोसाईटी फॉर प्रमोशन ऑफ़ वेस्टलेंड डेवलपमेंट ने कान खड़े करने वाली रिपोर्ट दी है कि छत्तीसगढ़ में कृषि, वनभूमी तथा सामुदायिक उपयोग की जमीन पर खदान और उद्योग लगाने के कारण प्रदेश के 27 में से 12 जिलों में हालात खूनी संघर्ष की हद तक जा सकते हैं भाजपा की राज्य सरकार को आदिवासियों और किसानों के हितों की लगातार उपेक्षा और उनके आन्दोलनों को दबाने का दुष्परिणाम छै माह बाद होने वाले विधानसभा चुनावों में अवश्य भुगतना पड़ेगा, इसमें कोई  संदेह नहीं है                                                             
अरुण कान्त शुक्ला
19,अप्रेल,2013           

Thursday, April 4, 2013

मुख्यमंत्री स्वास्थ्य बीमा योजना--हंटिंग विद दी हाऊंड्स एंड रनिंग विद दी हेयर्स



मुख्यमंत्री स्वास्थ्य बीमा योजना
हंटिंग विद दी हाऊंड्स एंड रनिंग विद दी हेयर्स

आज के दौर की सरकारों पर, चाहे वह केंद्र की सरकार हो या किसी राज्य की अंग्रेजी की उपरोक्त कहावत हंटिंग विद दी हाऊंड्स एंड रनिंग विद दी हेयर्स(शिकारी कुत्तों के साथ शिकार करना और खरगोशों के साथ दौड़ना) एकदम सटीक बैठती है इसी का एक नमूना आज हम छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री स्वास्थ्य बीमा योजना को लेकर राज्य सरकार और चिकित्सा क्षेत्र के दिग्गजों के बीच मचे घमासान के रूप में देख रहे हैं प्रदेश में यह चुनावी वर्ष है अतएव भाजपा की रमन सरकार के लिए उसकी मुख्यमंत्री स्वास्थ्य बीमा योजना रनिंग विद दी हेयर्स याने खरगोशों के साथ दौड़ने के माफिक ही है खरगोशों के साथ दौड़ने का मतलब है, वोट बटोरने के लिए आम प्रदेशवासी के साथ होने का ढोंग करना लेकिन, पिछले 12 वर्षों में न केवल भाजपा सरकार ने बल्कि उसके पूर्व तीन वर्ष तक शासन में रही कांग्रेस सरकार ने भी जिस तरह सार्वजनिक चिकित्सा क्षेत्र की उपेक्षा करके चिकित्सा के क्षेत्र में बड़े नैगमों और मंझोले तथा छोटे निजी खिलाड़ियों को तवज्जो दी है, उसी का परिणाम है कि चिकित्सा क्षेत्र के वे ही खिलाड़ी आज सरकार पर आँखे तरेर रहे हैं

राज्य के लोगों के स्वास्थ्य और चिकित्सा की देखभाल के मामले में राज्य सरकार का बर्ताव प्रदेशवासियों के साथ शिकारी कुत्तों के साथ शिकार करने याने चिकित्सा क्षेत्र के निजी खिलाड़ियों के साथ मिलकर प्रदेशवासियों का शोषण करने का ही रहा है चिकित्सा क्षेत्र के नैगमों और मंझोले तथा छोटे खिलाड़ियों को जहाँ पिछले 12 वर्षों में राज्य सरकारों ने शहरी तथा ग्रामीण क्षेत्रों में दो एकड़ तथा पांच एकड़ जमीन एक रुपये टोकन कीमत पर सुपर स्पेशलिटी हास्पिटल और निजी नर्सिंग होम शुरू करने के लिए उपलब्ध करायी   है वहीं, सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा के अपने उत्तरदायित्व से इस तरह पल्ला झाड़ा है कि राज्य में लगभग 201 सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों की आवश्यकता के एवज में केवल 136 केंद्र ही हैं और उनमें से भी सौ से उपर का खुद का  कोई भवन नहीं है यही हाल प्राथमिक और उपस्वास्थ्य केन्द्रों का है लगभग 29% प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र या तो भवन विहीन हैं या किराए के घरों में चलाये जाते हैं 38% उपस्वास्थ्य केंद्र भवन विहीन हैं जहां तक मानव संसाधन उपलब्ध कराने की बात है, जिसकी जिम्मेदारी राज्य सरकार की है, राज्य के सरकारी अस्पतालों में ही डॉक्टरों के 12सौ से ज्यादा पद खाली पड़े हैं

मुख्यमंत्री स्वास्थ्य बीमा योजना में ईलाज की दरों में कमी का कारण बताकर जिन नर्सिंग होम और सुपर स्पेशलिटी हास्पिटलों ने स्मार्ट कार्ड मशीनें वापस कर ईलाज करने से मना किया है, उन अस्पतालों से सरकार राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा के तहत भी ईलाज करने का अधिकार छीन रही है इससे ऐसा लगता है कि राज्य सरकार प्रदेशवासियों को रियायती दरों पर स्वास्थ्य उपलब्ध हो इसके लिए बहुत गंभीर है पर, यह गंभीरता चुनावी वर्ष में खरगोशों(आम आदमी) के साथ खड़े होते दिखने  की कवायद के सिवा कुछ भी नहीं है वरना, राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य योजना में, जोकि केंद्र सरकार की अत्यंत महत्वाकांक्षी योजना है, चिकित्सकों के स्वीकृत 439 पदों में से 370 पद खाली नहीं पड़े होते अम्बेडकर अस्पताल में, जो प्रदेश का सबसे बड़ा मेडिकल कालेज से जुड़ा अस्पताल है, कर्मचारियों के 273 महत्वपूर्ण पद खाली नहीं पड़े होते

वस्तुस्थिति यह है कि प्रदेश के निजी चिकित्सा क्षेत्र में केयर, नारायणा जैसे और स्थानीय भीमकाय कार्टेलों का कब्जा है अंधाधुंध मुनाफ़ा बटोरने की लालच में प्रदेश के इन भीमकाय और मंझोले खिलाड़ियों ने जबरिया गर्भाशय निकालने तथा राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के स्मार्ट कार्डों में गबन जैसे कांडों  को भी अंजाम दिया है इतना ही नहीं राष्ट्रीय बीमा योजना के तहत स्मार्ट कार्ड धारी मरीजों के जिस रोग के इलाज में इन्हें फ़ायदा कम या नहीं दिखाई देता है, उस मरीज को ये बिना ईलाज के भी वापस लौटा देते हैं ये नैगम और बड़े खिलाड़ी इतने ताकतवर हैं कि न तो ये सरकार को कुछ समझते हैं और न ही किसी प्रकार की सरकारी निगरानी की इन्हें कोई परवाह होती है बड़े नैगमों को ऐसा करते देखकर मंझोले और छोटे निजी खिलाड़ी भी उसी रास्ते पर चलने लगते हैं आईएमए इनके गोरखधंधों को छुपाने वाला छाता है, जिसकी आड़ में ये न केवल अपने गोरखधंधे चलाते है बल्कि सरकार को धमकाते भी हैं शनैः शनैः सरकारों की भी राजनैतिक और प्रशासनिक इच्छाशक्ति कमजोर पड़ती जाती है और सरकारें इन पर से अपना नियंत्रण खो देती हैं, जैसा की हम अभी छत्तीसगढ़ में होता देख रहे हैं अमेरिका में 2007 में हुए एक अध्यन में तो यह भी कहा गया है कि अमेरिका के स्वास्थ्य क्षेत्र के कमजोर प्रदर्शन का पूरा पूरा कारण चिकित्सा क्षेत्र में बाजार तंत्र और मुनाफाखोर नैगमों पर भरोसा करना है उसी रिपोर्ट के अंत में अमेरिकी सरकार को यह सलाह भी दी गयी है कि वो दूसरे देशों को चेताये की वो इस रास्ते पर चलने से बाज आयें

इन बड़े खिलाड़ियों को ये उम्मीद थी की मुख्यमंत्री स्वास्थ्य बीमा योजना की राशी लाखों में होगी और इन्हें प्रदेश की गरीब जनता की गाढ़े पसीने की कमाई को हथियाने का आसान तरीका मिल जाएगा पर, 30 हजार की अल्प राशी से इनका दिल टूट गया चुनावी वर्ष में मुख्यमंत्री सिर्फ आम लोगों(खरगोशों)के साथ खड़ा दिखना चाहते थे, इसीलिये राज्योत्सव, कुम्भ, ग्राम और नगर सुराज, नई राजधानी, आईपीएल, तीर्थ यात्रा, पर अरबों रुपये लुटाने वाली सरकार ने प्रदेशवासियों के स्वास्थ्य के लिए मात्र 30 हजार रुपये निकाले पर चिकित्सा क्षेत्र के ये दिग्गज खिलाड़ी चाहते हैं कि राज्य सरकार उनके साथ मिलकर शिकार करे, खरगोशों के साथ दौड़े नहीं

अरुण कान्त शुक्ला
2,अप्रैल,2013