Thursday, January 26, 2012

बस इसीलिये , देश महान , --


बस इसीलिये , देश महान ,

देने को तो दे दूं
आज के दिन की शुभकामनाएं , पर ,
साथ जुड़ी हैं अनेक विडम्बनाएं ,


आफिस बाजार सब बंद हैं ,
चारों और लहरा रहे तिरंगे झंडे ,
पर , कैसे भूलूँ , कुछ दिन पहले ,
किसानों पर लेंको में बरसे डंडे ,


दौड़ा रहे युवा मोटरसाईकिल
लगाए तिरंगे झंडे ,
किसको कुचलेंगे ,
कौन दबेगा , कौन मरेगा ,
इसका हिसाब कौन करेगा ,
इस गणतंत्र पर तो कोई बता दे ,
कौन लाया वो संस्कृति देश में ,
जिसने इनको बनाया गुंडे ,


न दो शुभकामनाएं ,
न मनाओ उत्सव गणतंत्र का ,
क्या भूल गये दो दिन पहले ,
कहा था प्रधानमंत्री ने ,
चल रहा है , पर्व राष्ट्रीय शर्म का ,


12 बज गये ,
झंडा ऊपर लटका है ,
लहराता नहीं , बंधा हुआ ,
क्योंकि , नेता जी का बेड़ा ,
अभी कहीं और अटका है ,


यह तंत्र नहीं हर गण का ,
तुम मनाओ उत्सव , और ,
करो (?) गुणगान ,
मेरे घर के बाजू में ,
नगर निगम के मजदूर आज भी ,
लगे हैं बनाने नाली , मुझे लगता ,
बस इसीलिये , देश महान ,

Wednesday, January 25, 2012

देखो , जंगल में आखेट चल रहा है --


देखो , जंगल में आखेट चल रहा है

मैंने कभी सुलह का रास्ता नहीं ढूंढा
सही था लड़ लिया ,
जीता तो जीता ,
हारा तो हारा ,पर,
मैंने कभी सुलह का रास्ता नहीं ढूंढा |
मेरे सीने में दहक रही है , जो आग
तुम्हारे चेहरे में पानी नहीं ,
तुम्हारी फितरत में रवानी नहीं ,
तुम इसे क्या बुझाओगे ,
मेरे सीने में दहक रही है , जो आग |
जो खुद खड़े हैं भूल भुलैय्या में
वो रास्ता क्या बतायेंगे ,
उन्हें क्या पता
मंजिल का पता ,
जो खुद खड़े हैं भूल भुलैय्या में |
देखो , जंगल में आखेट चल रहा है ,
शेर चीते तो बचे नहीं ,
शिकार इंसान हो रहा है ,
शिकारी भी इंसान है ,
देखो , जंगल में आखेट चल रहा है |
बादस्तूर अपनी दस्तूरी लीजिए ,
मजलूमों का भरोसा न टूटे , इसलिये ,
बस , व्यवस्था को गालियाँ न दीजिए ,
क्रान्ति की बात न कीजिये ,
बादस्तूर अपनी दस्तूरी लीजिए |
अरुण  कान्त शुक्ला -

Sunday, January 15, 2012

यूं ही --


यूं ही --

यूं क्यूं ,
मुँह छिपाकर आते जाते हैं ,
जब कन्नी काटकर निकलना हो मुश्किल
बस मुस्करा कर निकल जाईये ,
यूं ही,
कहा होगा कबीर ने
निंदक नियरे राखिये ,
सच हर दौर में हाशिए पर रहा ,
यूं ही ,
जम्हूरियत जम्हूरियत करते नहीं थकते
मुल्क के सियासत दां ,
खून चूसने की ये मशीन अच्छी है ,
यूं ही ,
नहीं छोड़ा होगा नर्गिस ने रोना
अपनी बेनूरी पर ,
तुमसे उसकी मुलाक़ात जरुर हुई होगी ,
यूं ही ,
मोहब्बतें कामयाब नहीं होतीं  ,
फ़साने लाख बनने के बाद
जिंदगी एक अफसाना बनती है ,
अरुण कान्त शुक्ला -