Saturday, April 28, 2012

सरकारी काम -


सरकारी काम –


मैं दुकान से बाहर निकला तो देखा कि एक हवलदार साहब बड़ी बेसब्री से मेरी बाईक के पास हाथ में चालान की किताब और पेन लिए खड़े हैं | चेहरे से मुर्गा फंसा का संतोष और छोडूंगा नहीं कि दृढ़ता साथ साथ टपकी पड़ी थीं | मेरे गाड़ी के पास पहुंचते ही बोले ये मोटरसाईकिल आपकी है | मेरे हाँ कहने के बाद बोले चालान कटेगा , नो पार्किंग जोन में लगाई है | अभी फाइन दोगे तो दो सौ की रसीद कटेगी , नहीं तो कोर्ट में चालान जायेगा , गाड़ी ट्रेफिक थाने से आकर छुड़ा लेना | अब तक माजरा मेरी समझ में आ गया था | मैं हवलदार से बोला , मैं सरकारी ड्यूटी पर आया हूँ और मेरी बाईक का चालान करके आप सरकारी काम में बाधा पहुंचा रहे हो | बाईक भी सरकार के पैसों से खरीदी गयी है | नियम और क़ानून के हिसाब से इसका चालान नहीं हो सकता | हवलदार भी खासा खांटी था , मेरे हाथ के डिब्बे को देखते हुए बोला , जूते की दुकान से नया जूता पहनकर और पुराना रखवाकर निकल रहे और बोलते हो कि सरकारी काम से ड्यूटी पर हो | हमने कहा कि हवलदार साहब आप दफ्तर में जाकर देखिये मैं ड्यूटी पर हूँ और जूते खरीदना तो सौ फीसदी सरकारी काम है | आपने आज तक बिना जूते या चप्पल पहने किसी को ड्यूटी करते देखा है | आप खुद की ही बात लो तो आपको तो जूते सरकार ही देती है न | जूते ड्यूटी पर ही तो ज्यादा पहने जाते हैं , इसलिए उनको खरीदना भी ड्यूटी के समय ही पड़ता है और जो भी काम ड्यूटी के समय किया जाए , वो सरकारी काम ही होता है | इस बीच में हमने पूरी होशियारी बरतते हुए बाजू के चाय ठेले पर दो कट के लिए बोल दिया था , जो आ भी गईं | हमारा अनुभव रहा है कि ऐसी सिचुएशंस में प्राब्लम से बाहर निकालने में चाय के गिलास की कोई सानी नहीं है | वैसे पहले यह काम एक सिगरेट से भी बहुत अच्छी तरह हो जाता था , पर सुप्रीम कोर्ट की मेहरबानी से वो रास्ता बंद सा हो गया है | हवलदार साहब ने अनिच्छा का बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए चाय का गिलास थामा और कहा कि ऐसा होता नहीं है | आपके अनुसार मैं अभी ड्यूटी पर हूँ और सामने सेलून में जाकर बाल सेट करवाने लगूं या दाड़ी बनवाऊं तो क्या वो सरकारी काम माना जाएगा | हमें मामला सेट होता दिखाई पड़ने लगा | हमने भी एक छोटी चुस्की ली और कहा बिलकुल बाल सेट करवाना या शेविंग बनवाना पूरी तरह सरकारी काम तो है ही बल्कि इसके साथ सरकारी काम करते हुए आप कितने ईमानदार दिखते हैं , उसका रेपुटेशन भी जुड़ा हुआ है | अब हवलदार साहब को पूरा रस आने लगा था , बोले कैसे , बाल कटवाने या दाड़ी बनवाने का ईमानदारी से क्या संबंध ? हमने कहा कि आप किसी का चालान करेंगे , आपकी दाड़ी बढ़ी रहेगी तो सामने वाले को लगेगा कि आपकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है और आप चालान का नाटक करके कुछ उगाही करना चाहते हैं | हवलदार साहब का हाथ फ़ौरन अपनी दाड़ी पर गया , बोले आप बिलकुल ऐसा मत समझो | ईमानदारी में अपन अन्ना से बड़े नहीं तो कम भी नहीं होंगे | हमने कहा कि आप तो उल्टा समझ गये , मैं तो आपको उदाहरण दे रहा था | हवलदार साहब अब कुछ प्रभावित दिख रहे थे | कहने लगे इसका मतलब ये कि यदि मैं अभी अपनी मिसेज को लेकर आऊँ और उसे बाजार कराऊँ तो वो भी सरकारी काम माना जाएगा | हमने बेधड़क कहा , हाँ , आखिर घर में सुख शान्ति रहेगी तभी तो आप मन लगाकर चैन से ड्यूटी कर पायेंगे | अब हवलदार साहब के सामने पूरी स्थिति साफ़ हो गयी थी और उनके ज्ञान चक्षु पूरी तरह जागृत हो चुके थे | वो बोले तभी तो साहब ये बड़े बड़े अधिकारी , नेता , सांसद सभी सरकारी गाड़ियों में परिवार के लोगों के साथ खरीदी करते हैं , नो पार्किंग में गाड़ी लगाते हैं , ताकि सरकारी ड्यूटी चैन से कर सकें | हमने मौक़ा देखा तो कहा कि तो हवलदार साहब अब मैं अपनी गाड़ी उठा कर निकलूँ | हवलदार साहब ने बड़ी प्रशंसा भरी निगाहों से हमारी तरफ देखा और कहा निकलो साहब , निकलो , अब समझ में आया कि कल नो पार्किंग में खड़ी सांसद महोदय कि गाड़ी को क्यों आज बिना जुरमाने खुद विभाग ने उनके घर पहुंचाया |


अरुण कान्त शुक्ला
                              

No comments: