Sunday, April 1, 2012

सच और झूठ –


वर्ष 2009 में साप्ताहिक इतवारी के 47वें अंक में छपी मेरी कविता .....

सच और झूठ –


सच
बहुत कमजोर होता है
मेरी तरह
और झूठ
बहुत ताकतवर


सच
मरता है हर क्षण
और झूठ
रोज आसमान छूता है
तुम्हारी तरह



सच
हमेशा रहता है अकेला
मेरी तरह
और झूठ  
घिरा चमचों से
तुम्हारी तरह


सच
कागज़ की नाव है
बच्चे
जिसे चलाते है बारीश में
और झूठ
समंदर में खड़ा बेड़ा


सच
राहगीर के पैरों का दर्द है
और झूठ
वाकर पर चलने का
सुखद अहसास


सच
नहीं दिखता सच की तरह
और झूठ
इतराता है
अपने झूठे सच पर


सच को देखना
जानना है झूठ को
और
झूठ को जानना
नहीं है सच को जानना


सच
तो केवल मैं हूँ
और झूठ
तुम हो  
झूठे ! मक्कार !   

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