गड़करी जी के बड़े बोल
बड़बोलापन कभी कभी स्वयं को ही कितना नुकसान पहुंचा सकता है, इसकी एक मिसाल आज सड़क मंत्री गड़करी जी ने पेश की| प्रणव मुखर्जी के द्वारा आरएसएस के समारोह में शामिल होने के निमंत्रण को स्वीकार करने पर कांग्रेस के द्वारा किये गए विरोध के खिलाफ वे प्रेस कांफ्रेंस ले रहे थे| प्रेस कांफ्रेंस में उन्होंने कहा कि जब लोग शराब दूकान जा सकते हैं, बार जा सकते हैं, लेडीज बार जा सकते हैं और वो क्या होता है मुम्बई में उस बार जा सकते हैं तो आरएसएस में जाने पर सवाल क्यों? शब्द करीब करीब ऐसे ही थे| अब इसे क्या कहेंगे? वैसे मैं भाजपा के छुटभैय्या नेता जब अनर्गल कहते हैं तो उसे कोई तवज्जो नहीं देता, पर, जब बात आरएसएस से निकले गड़करी जैसे खांटी नेता ने कही हो तो ध्यान देना जरुरी है| एक तरफ तो आरएसएस के पदाधिकारी और भाजपा के नेता आरएसएस को गैर राजनीतिक निखालिस सांस्कृतिक संगठन बताने में धरती आकाश एक किये पड़े रहते हैं और दूसरी तरफ गड़करी जी उसके समारोह में पूर्व राष्ट्पति के जाने की तुलना किसी साधारण आदमी के शराब दूकान जाने या बार जाने से कर रहे हैं| इसे जुबान का फिसलना भी नहीं कह सकते| मैं भाषा के आधार पर उसकी आलोचना नहीं कर रहा हूँ| यह वह वैचारिक आधार है, जो उन्हें वहां से मिला है| नशा सिर्फ शराब या जुएँ का नहीं होता, नशा विचार का भी होता है और वह अगर गलत हो तो वैसे ही व्यक्ति को स्वयं को और समाज को बर्बाद करता है, जैसे शराब या किसी अन्य चीज का नशा| भाजपा हो या संघ , दोनों के ही उच्च स्तरीय नेता अकसर स्वयं को अत्याधिक समझदार और वाकपटु दिखाने की लालसा में ऐसे कमेन्ट करते रहते हैं| गड़करी किसका अपमान कर रहे थे , पूर्व राष्ट्रपति की या संघ का, यह तो वे ही बेहतर बता पायेंगे, किन्तु इससे उस मिट्टी का पता चलता है, जिसमें खेलकर वो यहाँ तक पहुंचे हैं| मुझे गड़करी जी से यह उम्मीद नहीं थी, पर सत्य यही है कि जब जब इनसे ऐसी उम्मीद लगाई जायेगी, आपको निराशा ही हाथ लगेगी|
बड़बोलापन कभी कभी स्वयं को ही कितना नुकसान पहुंचा सकता है, इसकी एक मिसाल आज सड़क मंत्री गड़करी जी ने पेश की| प्रणव मुखर्जी के द्वारा आरएसएस के समारोह में शामिल होने के निमंत्रण को स्वीकार करने पर कांग्रेस के द्वारा किये गए विरोध के खिलाफ वे प्रेस कांफ्रेंस ले रहे थे| प्रेस कांफ्रेंस में उन्होंने कहा कि जब लोग शराब दूकान जा सकते हैं, बार जा सकते हैं, लेडीज बार जा सकते हैं और वो क्या होता है मुम्बई में उस बार जा सकते हैं तो आरएसएस में जाने पर सवाल क्यों? शब्द करीब करीब ऐसे ही थे| अब इसे क्या कहेंगे? वैसे मैं भाजपा के छुटभैय्या नेता जब अनर्गल कहते हैं तो उसे कोई तवज्जो नहीं देता, पर, जब बात आरएसएस से निकले गड़करी जैसे खांटी नेता ने कही हो तो ध्यान देना जरुरी है| एक तरफ तो आरएसएस के पदाधिकारी और भाजपा के नेता आरएसएस को गैर राजनीतिक निखालिस सांस्कृतिक संगठन बताने में धरती आकाश एक किये पड़े रहते हैं और दूसरी तरफ गड़करी जी उसके समारोह में पूर्व राष्ट्पति के जाने की तुलना किसी साधारण आदमी के शराब दूकान जाने या बार जाने से कर रहे हैं| इसे जुबान का फिसलना भी नहीं कह सकते| मैं भाषा के आधार पर उसकी आलोचना नहीं कर रहा हूँ| यह वह वैचारिक आधार है, जो उन्हें वहां से मिला है| नशा सिर्फ शराब या जुएँ का नहीं होता, नशा विचार का भी होता है और वह अगर गलत हो तो वैसे ही व्यक्ति को स्वयं को और समाज को बर्बाद करता है, जैसे शराब या किसी अन्य चीज का नशा| भाजपा हो या संघ , दोनों के ही उच्च स्तरीय नेता अकसर स्वयं को अत्याधिक समझदार और वाकपटु दिखाने की लालसा में ऐसे कमेन्ट करते रहते हैं| गड़करी किसका अपमान कर रहे थे , पूर्व राष्ट्रपति की या संघ का, यह तो वे ही बेहतर बता पायेंगे, किन्तु इससे उस मिट्टी का पता चलता है, जिसमें खेलकर वो यहाँ तक पहुंचे हैं| मुझे गड़करी जी से यह उम्मीद नहीं थी, पर सत्य यही है कि जब जब इनसे ऐसी उम्मीद लगाई जायेगी, आपको निराशा ही हाथ लगेगी|
अरुण कान्त शुक्ला
29/5/2018
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