Tuesday, August 25, 2015

कब हो ही सोनहा बिहान ..


जब मुझे पता चला कि राज्य शासन के जनसम्पर्क विभाग ने रायपुर के टाउन हाल में एक छाया चित्र प्रदर्शनी ‘सोनहा बिहान’ आयोजित की है और स्वतंत्रता दिवस की संध्या मुख्यमंत्री इसका शुभारंभ करेंगे तो यकायक मुझे तीन साढ़े तीन दशक पूर्व के लोककला मंच सोनहा बिहान और कारी का स्मरण हो आया| मूलत: नाट्य मंच किन्तु गीत संगीत से सरोबार “सोनहा बिहान” तथा ‘कारी’ छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक धरती पर डा. नरेंद्र देव वर्मा, दाऊ महासिंह चन्द्राकर तथा रामचन्द्र देशमुख की देन थे, जिनसे इस धरती को अनेक लब्ध प्रतिष्ठित कलाकार प्राप्त हुए| ‘सोनहा बिहान’ में दाऊ मुरली चंद्राकर जी के द्वारा लिखे गीतों ने अपने ज़माने में काफी धूम मचाई है| लोक कला मंच होने के बावजूद ‘सोनहा बिहान’ की प्रस्तुतियों और गीतों में छत्तीसगढ़ के ग्राम्य अंचल के लोगों की व्यथा-कथा असाधारण रूप से झलकती थी| जब मैंने अपने मित्र टीकाराम वर्मा से जनसम्पर्क विभाग की इस छाया-चित्र प्रदर्शनी के उदघाटन समारोह में साथ चलने कहा तो उन्होंने तुरंत अपने मोबाईल में लोड दाऊ मुरली चंद्राकर का गीत सुनाया| गीत का एक पद ही आपको ‘सोनहा बिहान’ से परिचित करा देगा;














गाँव सुखी तब देश सुखी हे
बात बात में लोग दुखी हे
कतको कमाथन पुर नई आवे
जांगर थकगे मन दुबरावे
सुख दुःख में मिल उठ बैठनले के हमर निशान 

जांगर टांठ करे बर परहीतब हो ही सोनहा बिहान

खैर, ‘सोनहा बिहान’ के बारे में अनावश्यक रूप से मष्तिष्क में एक कल्पना लेकर हम दोनों टाऊन हाल पहुंचे| चूंकि, उदघाटन के लिए मुख्यमंत्री को आना था, आवश्यक खाना तलाशी के बाद हाल में पहुँचते ही पहला ध्यान सामने फ्लेक्स शीट पर बनाए गए पोस्टर ‘मन की बात’ पर गया और दिमाग में पहला ख्याल ही यह आया कि यह छाया चित्र प्रदर्शनी नहीं, पोस्टर प्रदर्शनी है, जिसमें छाया चित्रों को कंप्यूटर की सहायता से फ्लेक्स शीट पर उतारा गया है| उसी पोस्टर ने यह भी जता दिया कि पूरे आयोजन का कला नामक शब्द से कोई वास्ता नहीं है| अपने स्वागत भाषण में जनसंपर्क विभाग के सचिव और आयुक्त ने यह भी बता दिया कि इन पोस्टर्स में पहली बार विभाग ने एलईडी बेक लाईट का प्रयोग किया है, जिससे पोस्टर्स के रंग और उभर कर आते हैं| यदि, आप कुछ देर के लिए पोस्टर्स की विषयवस्तु एक तरफ कर दें तो आजकल इस एलईडी बेक लाईट का प्रयोग करते हुए और भी भव्य और सुन्दर पोस्टर्स मॉल तथा मॉल के सिनेकाम्पलेक्स में नजर आते हैं|

छाया चित्रांकन की यदि बात की जाए तो आज भी डिजिटल कैमरे के माध्यम से बहुत ही संवेदनशील और खूबसूरत फोटोग्राफी की जा रही है| पर, अब उस छायांकन को और भी बड़ा  रूप डिजिटल प्रिंटिंग के द्वारा दिया जा सकता है| पर, तब उसकी मूल कला नष्ट हो जाती है| छायाकार की फोटो की खूबसूरती कैमरे से ज्यादा उसके विषयवस्तु के चयन और उन कोणों पर निर्भर होती है, जिनका इस्तेमाल छायाकार करता है|  फ्लेक्स शीट जो पोली विनायल क्लोराईड (PVC) या पोलीथिन (PE) की होती है, पर किसी भी विषय को छाया चित्रों सहित चार तयशुदा रंगों या उनके संयुक्त संयोजन से डिजिटल प्रिंटिंग के द्वारा छापा जा सकता है| अधिकतर इस पद्धति का उपयोग सड़क के किनारे लगने वाले विज्ञापनों (होर्डिंग्स), पाताकाओं (बेनर) या प्रचार पोस्टर्स बनाने के लिए किया जाता है| इसका ग्राफिक्स का एक कोर्स होता है और यह स्वरोजगार का साधन हो सकता है| यह और अलग बात है कि आज इस काम को करने वाले भी काम के अभाव में बेरोजगार जैसे ही घूम रहे हैं, क्योंकि, यह व्यवसाय अब पूरी तरह बड़े प्रिंटर्स के कब्जे में चला गया है| हर विकास के साथ जैसी कहानी जुडी रहती है, फ्लेक्स प्रिंटिंग के साथ भी है, इस पद्धति ने कई लोगों को आधुनिक रोजगार दिया तो सैकड़ों हाथ से पोस्टर्स, बेनर बनाने वाले पेशेवर लोगों का रोजगार छीना भी है|      

बहरहाल, जनसंपर्क विभाग की इस ‘सोनहा बिहान’ छाया चित्र प्रदर्शनी में सोनहा बिहान शब्द का इस्तेमाल कला के लिए नहीं राजनीतिक शब्दावली में किया गया था| जैसा कि स्वयं मुख्यमंत्री ने उदघाटन करते हुए कहा भी कि यह फोटो प्रदर्शनी  सोने की तरह दमकते और विकास के पथ पर अग्रसर छत्तीसगढ़ की उज्जवल छवि प्रस्तुत करती है| प्रदर्शनी में भूतपूर्व राष्ट्रपति मिसाईल मेन अब्दुल कलाम तथा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रधानमंत्री के रूप में पहली  छत्तीसगढ़ यात्रा के चित्रों और उद्धरणों को तथा राज्य सरकार की विकास योजनाओं को पोस्टर्स के माध्यम से प्रदर्शित किया गया है| यह सामयिक भी था, कुछ दिन पूर्व ही पूर्व राष्ट्रपति का निधन हुआ था और कुछ समय पूर्व ही केंद्र में मोदी सरकार ने एक वर्ष पूर्ण किया था|  पिछले दो दशकों से भारत की राजनीति एक ऐसे दौर से गुजर रही है, जिसमें कर्म, सेवा, तथा शोषितों के उत्थान के लिए अदम्य भावना के स्थान पर आत्मकेंद्रित आत्मतुष्टता तथा आत्म मुग्धता की राजनीति को केन्द्रीय स्थान प्राप्त है| यह प्रदर्शनी भी इस भाव से अछूती नहीं थी| मन की बात पोस्टर में स्कूल के बच्चों के साथ प्रधानमंत्री की तस्वीर हो या सुशासन के साथ राज्य के मुख्यमंत्री का पोस्टर, खेती किसानी में आगे बढ़ता छत्तीसगढ़ का पोस्टर हो या स्वास्थ्य सुविधाओं के साथ आधुनिक चिकित्सा शिक्षा के विस्तार का पोस्टर, या महिला सशक्तिकरण से सशक्त होते समाज का पोस्टर हो, सभी आपको आभास कराते हैं कि सब कुछ बढ़िया है और बेहतर है| आप भूल जाईये कि सुदूर बस्तर में सैकड़ों स्कूल रोज नहीं खुलते, कि स्कूल भवनों में सीआरपीएफ़ और बीएसएफ के जवान रुकते हैं , इसलिए माओवादी उन स्कूलों को ध्वस्त कर चुके हैं| आप किससे पूछेंगे कि क्यों प्रदेश में 86% बेटियाँ ऐसी हैं जो पढ़ाई को बीच में ही छोड़ चुकी हैं| आपका यह सवाल आपके मन में ही रहेगा कि बढ़ती स्वास्थ्य सुविधाएं किसे कहें? स्मार्ट कार्ड से पैसा कमाने के लिए जबरिया गर्भाशय निकालने को, नसबंदी शिविरों में लापरवाही से हुई मौतों को, या मोतियाबिंद के आपरेशन में अंधे होने वाले मामलों को या निजी अस्पतालों में हो रही लूट और धांधली को? महिला सशक्तिकरण के पोस्टर देखते हुए आपको यह कोई नहीं बताएगा कि आज भी प्रदेश की 52% महिलाओं का प्रसव अस्पताल में नहीं होता है| सुशासन, वह तो रोज आप चेन खींचने, ठगी करने, हत्याओं के रूप में देखते हैं| भारत में ट्रेन के अपहरण की अकेली घटना हमारे प्रदेश में हुई है| मीना खालको या अन्य ढेरों के बलात्कार और मार दिए जाने की बात आप अपने मन में रखिये|


स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर उन्होंने आपको आमंत्रित किया है, उनके मन की बात देखने के लिए, वही सोनहा बिहान है! पर, हमारे टीकाराम जी कहाँ मानने वाले थे, बाहर निकले और प्रवेश द्वार पर सजाकर लिखे गए “सोनहा बिहान’ को देखा और फिर मुझसे बोले, तेंहा मौला एक बात बता, कब हो ही सोनहा बिहान? मैंने उनकी तरफ देखा और गुनगुना दिया;

जांगर टांठ करे बर परही, तब हो ही सोनहा बिहान

अरुण कान्त शुक्ला

21 अगस्त 2015 

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