Friday, June 13, 2014

इरादों की बारिश में दो लक्ष्य और उनके पीछे का सच..




राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चली बहस का जवाब देते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने समापन भाषण में वायदों से बचते हुए इरादों की जो बारिश की है, उसने देश के एक बहुत बड़े तबके को लुभाया है इसमें कोई शक नहीं कि सोलहवीं लोकसभा का आगाज़ ही नए अंदाज़ में नहीं हुआ है बल्कि इसमें राष्ट्रपति के अभिभाषण और उस पर चली बहस तथा प्रधानमंत्री के समापन भाषण का अंदाज़ भी नया था सोलहवीं लोकसभा के गठन लिए हुए चुनावों के परिणाम सभी राजनीतिक दलों के चैहरों पर साफ़-साफ़ पढ़ाई में आ रहे थे कांग्रेस सहित किसी भी राजनीतिक दल के पास सरकार पर चलाने के लिए कोई तीर नहीं थे तो दूसरी तरफ भाजपा सहित एनडीए के तमाम घटकों के पास अपने इरादों को रखने और यूपीए-2 की नाकामियाबियों के ऊपर तंज कसने के अलावा और कुछ नहीं था इसका नतीजा यह हुआ कि न केवल राष्ट्रपति का पूरा अभिभाषण और उसके समर्थन में दिए गए सत्तारूढ़ पक्ष के लोगों के भाषण, विपक्ष के भाषण तथा प्रधानमंत्री का समापन भाषण सभी चुनाव के दौरान दिए गए भाषणों जैसे लग रहे थे

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चुनाव के दौरान अपने भाषण कुछ इस अंदाज़ में दिए थे मानो वो देश के प्रधानमंत्री बन चुके हैं उनका यह अंदाज़ प्रधानमंत्री बनने के बाद एक कदम और आगे बढ़ता लगा है और उन्होंने राष्ट्रपति के अभिभाषण पर हुई बहस का जवाब कुछ इस अंदाज़ में दिया कि न केवल वे सबसे बेहतर राजनीतिज्ञ हैं बल्कि प्रधानमंत्री के रूप में भी उनसे बेहतर कोई दूसरा ऐसा अभी तक नहीं हुआ है बिना शक यह कहा जा सकता है कि प्रधानमंत्री  मोदी ने एक मंजे और चतुर राजनेता की तरह खुद को न केवल प्रस्तुत किया है बल्कि सोलहवी लोकसभा के अन्दर मौजूद राजनीतिज्ञों की भीड़ से स्वयं को अलग करते हुए अपनी उच्चता को प्रदर्शित करने की भी पूर्ण चेष्टा की है और जैसा कि मैंने ऊपर भी कहा है देशवासियों के एक बड़े तबके को ये चेष्टा भायी भी है

जिन्होंने भी पांच राज्यों के विधानसभा तथा उसके बाद हुए लोकसभा के चुनावों के दौरान मोदी के भाषणों को ध्यान से सुना होगा तथा उनकी विषयवस्तु उन्हें याद होगी तो उन्हें प्रधानमंत्री के राष्ट्रपति के अभिभाषण पर दिए गए जबाब में सिर्फ इसके कुछ भी नया नहीं मिला होगा कि उन्होंने इरादों की बारिश और सपनों के भारत का बखान करने के बीच दो ऐसे लक्ष्यों की घोषणा की है, जो मांग करते हैं कि उन्हें पांच साल नहीं कम से कम दस साल तक केंद्र में बने रहने का मौक़ा चाहिए उनके जबाब में भाईयो-बहनों से लेकर किसानों और मजदूरों की खुशहाली के सपनों का  वर्णन सब कुछ था| यदि कुछ मिसिंग था तो वह सोनिया जीईईई/माँ-बेटेएएए और भईयाआआआ का लंबा आलाप था, जो उनके चुनावी भाषणों का पेटेंट था और काफी तालियाँ बटोरता था बहरहाल, राष्ट्रपति के अभिभाषण में चतुराई पूर्वक न तो पांच साल के लिए कोई लक्ष्य तय किये गए और न ही किसी भी इरादे की पूर्ती के लिए कोई समय सीमा तय की गयी है यूपीए-2 की 100 दिनों में मंहगाई कम करने के वायदे की बहुत धज्जियां उड़ी थीं पर मोदी जी ने ऐसा कोई भी अवसर अपने आलोचकों को नहीं दिया है

पर, आश्चर्यजनक रूप से देशवासियों को कोई भी राहत या फायदा पहुंचाने के लिए किसी भी तरह का वायदा या लक्ष्य तय करने से परहेज करने वाली सरकार ने दो लक्ष्य जोरशोर के साथ तय किये हैं पहला है; वर्ष 2022 तक देश में सभी परिवारों को पक्का घर देने का लक्ष्य| एक ऐसा घर, जिसमें 24 घंटे बिजली, पानी और शौचालय की व्यवस्था होगी इस लक्ष्य के लिए जो समयावधि तय की गयी है, वह गौर करने लायक है मोदी सरकार देश के हर परिवार को उसका घर देने का सपना पूरा करने के लिए 2022 तक का समय चाहती है 2022 में देश में आजादी की 75वीं वर्षगांठ मनाई जायेगी और मोदी सरकार का वर्तमान कार्यकाल तीन साल पहले याने 2019 में समाप्त होने वाला है याने, 2019 में होने वाले लोकसभा चुनावों के लिए अभी से दावेदारी सुनिश्चित करने के लिए उठाया गया कदम अब यदि हर परिवार को घर चाहिए तो 2019 में मोदी सरकार को दोबारा लाना ही होगा

बहुत से लोगों ने इस बात पर काफी गौर किया कि अचानक अपने जबाबी भाषण में प्रधानमंत्री को गांधी, सोनिया नहीं मोहनदास करमचंद गांधी, बहुत याद आये और एकबारगी तो प्रधानमंत्री के भाषण के दौरान ऐसा लगा कि मानो अब सरकार जो कुछ भी करने वाली है, वह सब महात्मा गांधी से ही प्रेरणा लेकर करेगी लेकिन जब मोदी जी ने सरकार का दूसरा लक्ष्य सामने रखा तो सरकार का गांधी प्रेम का रहस्य सामने आ गया यह दूसरा लक्ष्य है; “स्वच्छ भारत मिशन” मोदी जी ने कहा कि वे चाहते हैं कि गांधी जी की 150वीं जयन्ती पर गांधी को श्रद्धांजली के रूप में एक बेहतरीन कचरा प्रबंधन वाला और साफ़-सुथरा, कूड़ा-करकट से मुक्त भारत का निर्माण करके दिया जाए ई/बायो/प्लास्टिक के कचरे के ढेरों से परेशान देशवासियों को यह विचार निश्चित रूप से बहुत भाएगा यद्यपि इसमें नया कुछ भी नहीं है सिवाय इसके प्रस्तुतीकरण के यूपीए-2 ने 2010 में इस योजना की रूपरेखा बनाई थी और इसके लिए बड़े शहरों में रहने वालों पर अलग से कचरा टेक्स लगाने की भी तैयारी थी दरअसल, वर्तमान में रिसाईक्लिंग का काम जिस पैमाने पर होना चाहिये, नहीं  हो रहा है,  जो हो रहा है,  वह अनौपचारिक और असंगठित क्षेत्र में है,  जो  प्रदूषण के मानकों का ख्याल नहीं रखते सरकार ई-कचरे के निपटान को प्रदूषण का एक मानक बनाकर निजि क्षेत्र के जरिये संगठित करना चाहती है  केंद्र की योजना के अनुसार इसमें केंद्र व राज्य सरकार मिलकर 50 प्रतिशत फंड मुहैया  करायेंगी, शेष 50 प्रतिशत निजि उद्धमी लगायेगा यह 50 प्रतिशत राशी 2010 में करीब 3000 करोड बैठती थी, जिसे कचरा टेक्स के रूप में यूपीए-2 सरकार वसूलना चाह्ती थी ‘स्वच्छ भारत मिशन’ का लक्ष्य एक तीर से दो शिकार जैसा है पहला कि लोगों से कचरा टेक्स वसूलने का रास्ता बनाना और दूसरा महात्मा गांधी की 150वीं जयन्ती का लक्ष्य तय करके, जो 2019 में ही पड़ेगी, 2019 के लोकसभा के चुनावों के लिए एक प्रचार का हथियार तैयार करना याने, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विजन में आज से ही 2019 के लोकसभा चुनाव हैं  

वरना क्या कारण है कि राष्ट्रपति के अभिभाषण पर अपने जबाब में आधार कार्ड, खाद्य, ईधन और उर्वरकों पर सबसीडी जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर मौन रहकर प्रधानमंत्री ने लंबी अवधि वाले दो लक्ष्यों पर विस्तार में जाना पसंद किया

अरुण कान्त शुक्ला
12 जून, 2014                                   

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