अखिल भारतीय शांति एवं एकजुटता समिति के पुडुचेरी में 5एवं6 अक्टोबर को संपन्न हुए राष्ट्रीय सम्मेलन पर एक दृष्टिपात..
चौदह साल की एक लड़की अफगानी तालिबान की गोलियों का
शिकार होकर अस्पताल में जीवन और मृत्यु के बीच झूल रही है। उसे अफगानी तालिबान मार
देना चाहते है, क्योंकि वो लड़की तालबानी आतंकियों के लिए आतंक बन चुकी है। क्योंकि
वो स्वयं तो पढ़ना ही चाहती है, वो चाहती है कि उसकी जैसी अनेक लड़कियां भी पढ़े
लिखें और आधुनिक सभ्य समाज का हिस्सा बनें। वो औरतों के ऊपर किये जाने वाले जुल्मों
और लगाई जाने वाली अन्यायपूर्ण बंदिशों का विरोध करती है। उसका कुसूर यह भी है कि
उसने ये सब उस उम्र में किया है, जब बच्चे समझना भी शुरू नहीं कर पाते हैं। उसका
कुसूर यह भी है कि वो डरी नहीं, उसने उनके फरमानों को मानने से इनकार कर दिया। वो
बच्ची उस दौर में निडर हो गई, जब व्यस्क भी निडर होने से डरते हैं। वो आतंकियों के
आतंकी मंसूबों के लिए आतंक बन चुकी थी। उन्होंने उसे गोली मार दी| उस छोटी लड़की का
ज़िंदा रहना उनके ज़िंदा रहने पर खतरा बन चुका था। उन्होंने उसे गोली
मार दी।
यह एक संयोग है कि यह सब तब घटा जब मैं अखिल भारतीय
शांति और एकजुटता समिति के सम्मलेन से वापस लौटा और 9 अक्टोबर को मैंने नेटीजनों
के बीच अपनी उपस्थित डालते हुए लिखा कि पुंडुचेरी में 5एवं6 अक्टोबर को संपन्न हुए
सम्मलेन का सार जल्द ही मैं नेट पर डालूँगा। 9अक्टोबर की शाम को जब मैं रिपोर्ट
तैयार करने बैठा, मलाला को गोली मार दी गई थी। वह सवाल जो सम्मलेन के दोनों दिन
मुझे मथता रहा और जो पूर्व में भी जब मैं ट्रेड युनियन में काम करता था, अनेकों
बार मुँह बाए सामने खडा होते रहा, एक बार फिर मुँह बाए सामने खड़ा था कि दुनिया में
रहने वाले लोगों में से शतप्रतिशत के लगभग ये चाहते हैं कि सभी ओर शान्ति बनी रहे|
युद्ध न हों। कोई भूख से न मरे। समाज में समानता हो और सभी सम्मान के साथ सर उठाकर
जी सकें| वे लोग संख्या में कितने कम हैं, दुनिया की आबादी की तुलना में मुठ्ठी भर
भी न होंगे, जो युद्ध चाहते हैं। जो ये चाहते हैं कि समाज में असमानता बनी रहे। जो
दौलत को अपने कब्जे में करके, धरती, जमीन, हवा और आसमान पर कब्जा करके, धरती की
आधी से अधिक आबादी को भूख से मरने के लिए छोड़कर, अपने लिए धरती पर ही स्वर्ग का
निर्माण कर लेते हैं। पर, वे आबाद हैं क्योंकि वो दुनिया के आवाम को, देशों को एक
दूसरे से लड़ाने में कामयाब हैं। वे आबाद हैं क्योंकि वे लोगों को जाती, धर्म,
नस्ल, भाषा, सरहदों, के नाम पर एक दूसरे से लड़ाने में कामयाब हैं। वे कामयाब हैं
क्योंकि दुनिया के आवाम के 90% लोगों के ज़िंदा रहने के साधन उनके कब्जे में हैं।
वे कारखानों के मालिक हैं। वे खदानों के मालिक हैं।सरकारें उनकी हैं। वे ही
आतंकवादी हैं। वे ही आतंकवादियों को पैदा करते हैं और फिर वे ही उनके खिलाफ लड़ने
के लिए हमसे कहते हैं।
पुडुचेरी के सम्मलेन का निष्कर्ष मलाला युसुफजई की
कहानी कहता है। वो लोग कितने गलत हैं, जो यह कहते और समझते हैं कि केवल युद्ध का न
होना ही शांति का स्थापित होना है। सोवियत रूस के पतन के बाद यह कहा गया कि अब
दुनिया में शांति होगी, पर, हुई क्या? ईराक पर दो बार युद्ध थोपा गया। अफगानिस्तान
में आज भी अमरीकी सेनाएं डटी हुई हैं और मानवता को शर्मसार करने वाले कारनामों को
अंजाम दे रही हैं। पुडुचेरी में शांति के लिए एकजुटता के सवाल पर हुए सम्मेलन में,
जिसका उद्घाटन पुडुचेरी के मुख्यमंत्री एन. रंगासामी ने किया था, बोलते हुए एप्सो
के अध्यक्षों में से एक सीपीएम के पोलित ब्यूरो सदस्य सीताराम येचुरी ने कहा था कि
दुनिया के कुछ देश मसलन अफगानिस्तान, सीरिया, ईराक, लीबिया, अमेरिका की रहनुमाई
में पश्चिमी शक्तियों के अवांछित और अवैधानिक घुसपैठ के चलते बेमिसाल अव्यवस्था और
समस्याओं को झेल रहे हैं। ये ताकतें भारत सहित अनेक विकासशील देशों पर अपनी शर्तों
को थोप रही हैं ताकि विकसित देशों के आर्थिक और जैविक हितों की रक्षा हो सके।उन्होंने
कहा कि ये सबसे ज्यादा उपयुक्त समय है, एप्सो को केवल भारत तक सीमित न होकर, अपनी
गतिविधियों को सभी दूसरे देशों तक बढ़ाना चाहिये ताकि साम्राज्यवादी देशों के खिलाफ
एकजुट होकर संघर्ष छेड़ा जा सके।
कोई कह सकता है कि मलाला का पुडुचेरी के सम्मेलन से
क्या सरोकार है? मलाला का पुडुचेरी सम्मेलन के साथ गहरा सरोकार है। पुडुचेरी का
सम्मेलन अमेरिकन साम्राज्यवाद की युद्धोन्मादी नीतियों के खिलाफ है। पुडुचेरी का
सम्मेलन अमरीका की रहनुमाई में जड़ जमाये साम्राज्यवाद और उसके एजेंट विश्व बैंक,
आईएमएफ तथा विश्व व्यापार संगठन जैसी संस्थाओं के खिलाफ है, जिनकी नीतियों और
सलाहों के कारण दुनिया की संपदा का आधा भाग मात्र 2% लोगों के कब्जे में है और
दुनिया की आधी से अधिक आबादी शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, आवास, वस्त्र जैसी मूलभूत
आवश्यकताओं के अभाव में मनुष्य जैसा जीवन जीने से वंचित है। और सबसे बढ़कर पुडुचेरी
का सम्मेलन उस आतंकवाद के खिलाफ है, जिसे साम्राज्यवाद पैदा करता है, जिसे धार्मिक
तत्ववादी और अलगाववादी ताकते पैदा करती हैं, जो अल्पसंख्यकों, स्त्रियों को उनके
अधिकार से वंचित करता है। मलाला उसी आतंकवाद के खिलाफ लड़ी है, जिसे बीसवीं शताब्दी
के अंतिम दो दशकों में अमेरिकन साम्राज्यवाद ने सोवियत रूस के खिलाफ इस्तेमाल करने
के लिए पाला पोसा था। जिसे अमेरिका की खुफिया एजेंसी सीआईए और पाकिस्तान की खुफिया
एजेंसी आईएसआई ने आठवें और नौवें दशक में न केवल हथियार और पैसा मुहैय्या कराया था
बल्कि दुनिया भर से कट्टरवादी मुस्लिम युवकों को इकठ्ठा करने में भी मदद की थी
ताकि उनका इस्तेमाल सोवियत रूस के खिलाफ किया जा सके। ओसामा-बिन-लादेन ने अमेरिका
और पाकिस्तान की मदद से ही विदेशी मुसलमानों को ट्रेनिंग देने के बड़े बड़े केम्प
चलाये| 1987 तक प्रत्येक वर्ष अमेरिका में बने 65000हजार टन हथियार और गोला-बारूद
तालिबान के पास पहुंचते थे।
मलाला का संघर्ष केवल तालिबान के खिलाफ नहीं था। वह
जाने अनजाने उस साम्राज्यवाद से टकरा रही थी, जो आज भी तालिबान के लिए नरम दिल
रखता है। जैसा कि सीबीएस न्यूज और “60
मिनिट्स” की रिपोर्टर
लारा लोगन ने ओबामा के लिए हाल ही में कहा भी है कि वे तालिबान के लिए नरम रुख
रखते हैं। मलाला पाकिस्तान के जिस हिस्से में रहती थी, 2007 में उस पर तालिबान ने
कब्जा किया था। 2009 में पाकिस्तान उस कब्जे को हटा पाया। इस बीच तालिबान ने
स्कूलों को तोड़ा, महिलाओं के अकेले घर से निकलने पर पाबंदी लगाई गई, उनकी पोशाक और
यहाँ तक उनके हंसने पर भी पाबंदी लगाई गई। मलाला, जो उस समय मात्र 11वर्ष की थी
उसे ये रास नहीं आया। उसने विरोध किया। उसने इन सब बातों को बीबीसी के उर्दू ब्लॉग
पर डाला। वह समझती थी या नहीं! वह जानती थी या नहीं! पर, ये प्रमाण है कि शांति इस
दुनिया में जीने वाले प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है। जैसा कि विश्व शांति परिषद
के प्रथम, संस्थापक अध्यक्ष फ्रेडेरिक जोलिओट क्यूरी ने कहा भी था कि “ शांति सभी का कर्तव्य है” (Peace is everybody’s Business)। मलाला को उसी कर्तव्य के पालन के लिए गोली मारी गई। उसी कर्तव्य के पालन के लिए मलाला को 2011 में
अंतर्राष्ट्रीय बाल शांति पुरूस्कार(International Children’s Peace Prize) के लिए नामांकित किया गया था। 2011 में ही मलाला को पाकिस्तान का पहला राष्ट्रीय युवा
शांति पुरूस्कार(National Youth Peace Prize) मिला था।
पुडुचेरी के सम्मेलन का केन्द्रीय नारा था “आओ एक बेहतर भारत के निर्माण के लिए अपने संघर्षों
को और शक्तिशाली बनायें, ताकि भारत का आवाम एक बेहतर दुनिया के निर्माण में अपना
योगदान दे सके”। मुझे
पूरा विश्वास है कि यदि मलाला के साथ घटित घटना सम्मेलन के समापन के पूर्व हो जाती
तो देश के कोने कोने से आये 300 से ज्यादा प्रतिनिधि, वियतनाम, श्रीलंका, साऊथ
अफ्रिका, नेपाल सहित, अन्य देशों से एप्सो के 7 अक्टोबर को संपन्न हुए
अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में शिरकत करने आये हुए प्रतिनिधि, एकमत से ये प्रस्तावित
करते कि सम्मेलन का केन्द्रीय नारा होना चाहिये “आओ मलाला के सपनों की दुनिया को बनाने एकजुट हों”।
अरुण कान्त शुक्ला 14अक्टोबर’2012
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