किसी गाँव में रहने वाला एक छोटा लड़का अपने दोस्तों के साथ गंगा नदी के पार मेला देखने गया। शाम को वापस लौटते समय जब सभी दोस्त नदी किनारे पहुंचे तो लड़के ने नावके किराये के लिए जेब में हाथ डाला। जेब में एक पाई भी नहीं थी। लड़का वहीं ठहर गया। उसने अपने दोस्तों से कहा कि वह और थोड़ी देर मेला देखेगा। वह नहीं चाहता था किउसे अपने दोस्तों से नाव का किराया लेना पड़े। उसका स्वाभिमान उसे इसकी अनुमति नहीं दे रहा था।
उसके दोस्त नाव में बैठकर नदी पार चले गए। जब उनकी नाव आँखों से ओझल हो गई तब लड़के ने अपने कपड़े उतारकर उन्हें सर पर लपेट लिया और नदी में उतर गया। उस समय नदी उफान पर थी। बड़े-से-बड़ा तैराक भी आधे मील चौड़े पाट को पार करने की हिम्मत नहीं कर सकता था। पास खड़े मल्लाहों ने भी लड़के को रोकने की कोशिश की। उस लड़के ने किसी की न सुनी और किसीभी खतरे की परवाह न करते हुए वह नदी में तैरने लगा। पानी का बहाव तेज़ था और नदी भी काफी गहरी थी। रास्ते में एक नाव वाले ने उसे अपनी नाव में सवार होने के लिए कहा लेकिन वह लड़का रुका नहीं, तैरता गया। कुछ देर बाद वह सकुशल दूसरी ओर पहुँच गया।
उस लड़के का नाम था ‘लालबहादुर शास्त्री’।
शास्त्री जी के बारे में यह कहानी मैं अपनी 16/17 साल की उम्र से सुनता आ रहा हूँ |
शास्त्री जी की तैर कर नदी पार करने की घटना , उनके प्रधानमंत्री बनाने के बाद कई तरह से कही जाती थी| उस समय कहा गया था कि पैसे नहीं होने के कारण , वो स्कूल नदी तैर कर जाया करते थे| प्रधानमंत्री बन्ने के बाद इसका खंडन उन्होंने भी किया था और उनके घरवालों ने भी | उस समय नदी में तैरना साधारण बात थी और बच्चे ऐसे दुस्साहस बिना आवश्यकता भी किया करते थे| शास्त्री जी की माली हालत कभी इतनी खराब नहीं थी| यह सच है कि वे सीधे ,सरल और अति ईमानदार थे| वे अच्छे राजनीतिज्ञ थे, पर कूटनीतिज्ञ नहीं| कहा जाए तो उन्होंने प्रत्येक रविवार को शाम के खाने को छोड़ने के लिए कहकर और जय जवान जय किसान का नारा देकर , उस समय के नौजवानों में त्याग और जोश दोनों को भर दिया था| वो शायद, भारत के उन नेताओं में से हैं, जो देश की परिस्थितियों को बखूबी समझते थे और तदनुसार न केवल आचरण करते थे , एक मिसाल भी रखते थे| भारत आज जिन स्थितियों से दो चार हो रहा है , उसे वही त्याग की जरुरत है| दुःख इसका है कि देश वासियों( आम लोगों) से अपील की जायेगी तो वे तैयार भी हो जायेंगे, लेकिन भारत का संपन्न तबका तब भी नानुकुर किया था और आज तो वो विद्रोह पर खडा है| उसे हर हालत में ऐशोआराम चाहिये , चाहे उसके कीमत भारत के आम आदमी को असमय मृत्यु के रूप में क्यों न चुकानी पड़े| मैंने यह इसलिए लिखा, क्योंकि व्यक्ति को काल्पनिक कथाओं के आधार पर मूल्यांकन करने से बेहतर है, उसके कार्य, सोच और आचरण के आधार पर मूल्यांकित किया जाए| तैर कर जाने वाली जैसी कई कहानियां तो शहर के छुटभैय्ये नेता भी अपने बारे में प्रचारित करते रहते हैं| हमें सही मूल्यांकन करना चाहिये|
देश के जवानों के साथ देश के आम लोग खड़े हैं, यह बताने के लिए एक समय का भोजन छोड़ा जाए, आज यह कहने का साहस देश के किसी भी नेता में नहीं होगा.. लाल बहादुर में यह था| लालबहादुर उस साहस का नाम है|
शास्त्री जी के बारे में यह कहानी मैं अपनी 16/17 साल की उम्र से सुनता आ रहा हूँ |
शास्त्री जी की तैर कर नदी पार करने की घटना , उनके प्रधानमंत्री बनाने के बाद कई तरह से कही जाती थी| उस समय कहा गया था कि पैसे नहीं होने के कारण , वो स्कूल नदी तैर कर जाया करते थे| प्रधानमंत्री बन्ने के बाद इसका खंडन उन्होंने भी किया था और उनके घरवालों ने भी | उस समय नदी में तैरना साधारण बात थी और बच्चे ऐसे दुस्साहस बिना आवश्यकता भी किया करते थे| शास्त्री जी की माली हालत कभी इतनी खराब नहीं थी| यह सच है कि वे सीधे ,सरल और अति ईमानदार थे| वे अच्छे राजनीतिज्ञ थे, पर कूटनीतिज्ञ नहीं| कहा जाए तो उन्होंने प्रत्येक रविवार को शाम के खाने को छोड़ने के लिए कहकर और जय जवान जय किसान का नारा देकर , उस समय के नौजवानों में त्याग और जोश दोनों को भर दिया था| वो शायद, भारत के उन नेताओं में से हैं, जो देश की परिस्थितियों को बखूबी समझते थे और तदनुसार न केवल आचरण करते थे , एक मिसाल भी रखते थे| भारत आज जिन स्थितियों से दो चार हो रहा है , उसे वही त्याग की जरुरत है| दुःख इसका है कि देश वासियों( आम लोगों) से अपील की जायेगी तो वे तैयार भी हो जायेंगे, लेकिन भारत का संपन्न तबका तब भी नानुकुर किया था और आज तो वो विद्रोह पर खडा है| उसे हर हालत में ऐशोआराम चाहिये , चाहे उसके कीमत भारत के आम आदमी को असमय मृत्यु के रूप में क्यों न चुकानी पड़े| मैंने यह इसलिए लिखा, क्योंकि व्यक्ति को काल्पनिक कथाओं के आधार पर मूल्यांकन करने से बेहतर है, उसके कार्य, सोच और आचरण के आधार पर मूल्यांकित किया जाए| तैर कर जाने वाली जैसी कई कहानियां तो शहर के छुटभैय्ये नेता भी अपने बारे में प्रचारित करते रहते हैं| हमें सही मूल्यांकन करना चाहिये|
देश के जवानों के साथ देश के आम लोग खड़े हैं, यह बताने के लिए एक समय का भोजन छोड़ा जाए, आज यह कहने का साहस देश के किसी भी नेता में नहीं होगा.. लाल बहादुर में यह था| लालबहादुर उस साहस का नाम है|
No comments:
Post a Comment