Wednesday, March 18, 2020

पेट्रोल डीजल में एकसाईज़ ड्यूटी बढ़ाना यह तो सरासर पाकेटमारी है


सरकार का प्राथमिक काम नागरिकों की तथा उनके अधिकारों की रक्षा करना होता है। यादी दो नागरिक किसी एग्रीमेंट में जाते हैं और उनमें से कोई एक उसे पूरा नहीं करता अथवा किसी अन्य तरीके से उसका उल्लंघन करता है तो पीड़ित नागरिक के पास यह अधिकार होता है कि वह दोषी के खिलाफ न्यायालय में कार्यवाही की मांग कर सके। सरकार की अनेक नीतियों के साथ भी बिलकुल वही स्थिति होती है। ये नीतियाँ एकतरफा घोषणाएँ नहीं होती हैं बल्कि सरकार की तरफ से नागरिकों के साथ किया गया एक प्रकार का करार ही होती हैं जिन्हें तोड़ना नागरिकों के साथ किए गए करार को तोड़ने के बराबर ही होता है। दरअसल, मैं पेट्रोल और डीजल में एक दिन पहले केंद्र सरकार के द्वारा बढ़ाई गई एकसाईज़ ड्यूटी के बारे में बात कर रहा हूँ।

आप कह सकते हैं कि यह तो कोई पहली बार नहीं हुआ है। यह सच है, यह पहली बार नहीं हुआ है, पर, एक बार नीतिगत निर्णय के रूप में यह तय करने के बाद कि क्रूड आईल की कीमतों को तय करने में सरकार की कोई भूमिका नहीं होगी और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जो भी तेल के भाव होंगे उपभोक्ताओं को उसी के अनुसार भुगतान करना होगा। ये भाव भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर रोज जो भाव होंगे देश में उसी के अनुसार रोज़मर्रा तय किए जाएँगे। याने, सरकार ने स्वयं को उपभोक्ताओं और कंपनियों के बीच से हटा लिया तथा अब ग्राहक या कंपनी को होने वाले मुनाफे-घाटे से उसका कोई संबंध नहीं रहा। अब जबकि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर क्रूड आईल के दाम घटकर 34 डालर प्रति बेरल रह गए हैं तो दामों में यह कमी सीधे सीधे उपभोक्ता के पास पहुंचनी चाहिए थी। पर, सरकार ने तुरंत पेट्रोल और डीजल पर 3/- प्रति लीटर की बढ़ौत्तरी के साथ साथ स्पेशल एक्साईज ड्यूटी तथा रोड सेस में भी बढ़ौत्तरी करके लगभग 6/- से 7/- प्रति लीटर का फायदा जो उपभोक्ता की पाकेट में जाना चाहिये था, अपनी जेब में डाल लिया है। यह पहली बार नहीं है कि ऐसा किया गया है। प्रशासनिक स्तर पर भाव नहीं तय किए जाने की नीति आने के बाद से यह सरकार पेट्रोल डीजल के उपभोक्ताओं के साथ लगातार इस पाकेटमारी को कर रही है। नवंबर 2014 से जनवरी 2016 के बीच 9 बार एक्साईज़ ड्यूटी बढ़ाई गई।

यह कहा जा सकता है कि टेक्स बढ़ाने का अधिकार सरकार के पास है और वह कभी भी इस अधिकार का प्रयोग कर सकती है। इसे पाकेटमारी कहना ठीक नहीं है। मैं इस तरह के तर्क से सहमत हो सकता था, यदि सरकार ने एक्साईज़ ड्यूटी नार्मल तरीके से नार्मल समय में बढ़ाई होती। पर, प्रत्येक समय यह तभी किया गया, जब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर क्रूड के दाम कम हुए और उसका फायदा उपभोक्ता को मिलने वाला था, उसे सरकार ने एक्साईज़ ड्यूटी बढ़ाकर उपभोक्ता के पाकेट में जाने से पहले छीन लिया। यह सरासर पाकेटमारी नहीं तो क्या है?

अरुण कान्त शुक्ला
16 मार्च 2020 

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