माओवादी किसकी मदद कर रहे हैं?
दंतेवाड़ा
जिले के अरनपुर थाना क्षेत्र के नीलावाया गाँव के नजदीक आज फिर माओवादियों ने
पुलिस की पार्टी पर हमला किया| दो
पुलिस वालों के साथ वहाँ दूरदर्शन के एक केमरामेन की भी मृत्यु गोली लगने से हुई
है| ऐसा बताया गया है कि दूरदर्शन की
यह टीम वहाँ " वोटिंग सुरक्षित है" इस तरह की प्रचार फिल्म बनाने के लिए
गई थी| माओवादियों के इस हमले की जितनी
भी निंदा की जाये कम है| एक
तरफ जहां निजी चैनल उस इलाके में एक सीमा से आगे जाने में कतराते हैं या फिर जाते
ही नहीं,
और यदि गए भी तो सुरक्षा
का पूरा ताम-झाम उनके साथ होता है, ऐसे
में दूरदर्शन की टीम को भेजना मूर्खतापूर्ण निर्णय ही कहा जाएगा|
माओवादी
जिस हथियारबंद संघर्ष के जरिये तथाकथित क्रान्ति का सपना आदिवासियों को दिखाते हैं, उसका कभी भी सफल न होना, दीवाल पर लिखा एक ऐसा सत्य है, जिसे माओवादी पढ़ना नहीं चाहते हैं| जिस देश में अभी तक मजदूर-किसान
के ही एक बड़े तबके को, जो
कुल श्रम शक्ति का लगभग 98% से
अधिक ही होगा, संगठित
नहीं किया जा सका हो| जिस
देश में नौजवानों और छात्रों के संगठन लगभग मृतप्राय: पड़ गए हों और वामपंथी शिक्षा
कुल शिक्षा से तो गायब ही हो, स्वयं
वामपंथ की शैक्षणिक गतिविधियां लगभग शून्य की स्थिति में आ गई हों, वहाँ, शैक्षणिक सुविधाओं से वंचित
आदिवासी समाज को जंगल में क्रान्ति का पाठ पढ़ाकर, बन्दूक थमा कर क्रान्ति का सपना दिखाना एक अपराध से कम
नहीं है|
इस बात में कोई शक नहीं
कि जितनी हिंसा माओवाद के नाम पर राज्य सत्ता स्वयं देश के निरपराध और भोले लोगों
पर करती है और सेना-पुलिस के गठजोड़ ने जो अराजकता, हिंसा,बलात्कार
विशेषकर बस्तर के आदिवासी समाज पर ढा कर रखा है, उसकी तुलना में माओवादी हिंसा कुछ प्रतिशत भी न हो, पर, भारतीय समाज का अधिकाँश हिस्सा आज भी हिंसा को बर्दाश्त
नहीं कर पाता है| राज्य
अपनी हिंसा को क़ानून, शांति
कायम करने के प्रयासों, देशद्रोह, राष्ट्रवाद जैसे नारों के बीच
छुपा जाता है, वहीं, माओवादियों के हर आक्रमण को या
उनके नाम पर प्रायोजित आक्रमण को बढ़ा-चढ़ा दिखाता है, यह हम पिछले लंबे समय से देख रहे हैं|
माओवादियों
को सोचना होगा कि उनकी इन सभी गतिविधियों से आखिर किसकी मदद होती है? आज इस देश के अमन पसंद लोगों के
सामने सबसे बड़ी समस्या एक ऐसी सत्ता से छुटकारे पाने की है, जिसने इस देश की सदियों पुरानी
सहिष्णुता और भाईचारे को नष्ट करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है| जो, खुले आम, आम
जनता के खिलाफ पूंजीपतियों के पक्ष में तनकर खड़ा है और जिसने अपना एकमात्र कार्य
केवल किसी भी प्रकार से विरोधियों को समाप्त करके देश में फासीवाद को स्थापित करना
घोषित करके रखा है| उस
समय माओवादियों के हाथों, आम
लोगों के ऊपर होने वाले ये आक्रमण, चाहे
वे गलती से हों या जानबूझकर किये गए हों, अंतत; उसी सत्ता की मदद करने वाले हैं
जिससे छुटकारा पाने की जद्दोजहद में इस देश के शांतिप्रेमी लोग लगे हैं|
यहाँ, मैं केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण
मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ के उस बयान का जिक्र न करूँ जो उन्होंने घटना के
तुरंत बाद दिया है तो वीरगति प्राप्त दूरदर्शन के उस केमरामेन के साथ बेइंसाफी
होगी, जिसने अपने कर्तव्य का पालन करते
हुए अपनी जिंदगी गंवा दी| हमारे
राज नेता कितने संवेदनहीन हो गए हैं कि इतने दुःख के समय भी मंत्री महोदय चुनाव को
भूले नहीं और तुरंत ही इस घटना को वोट में बदलने की कोशिश में लग गए| उन्होंने कहा कि ‘‘दंतेवाड़ा में डीडी न्यूज की टीम
पर हुए नक्सली हमले की कड़ी निंदा करता हूं। हमारे कैमरामैन अच्युतानंद साहू और
सीआरपीएफ के दो जवानों की मृत्यु से बहुत दुखी हूं। ये उग्रवादी हमारे संकल्प को
कमजोर नहीं कर सकेंगे। हम जीतेंगे।’’ जीत
की यह लालसा बताती है कि कर्तव्यनिष्ठ, कर्मयोगी
और देश की सेवा-साधना में लगे आम लोगों की जान की कितनी कीमत इनकी सोच में है|
अरुण
कान्त शुक्ला
30/10/2018
30/10/2018
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