Tuesday, December 16, 2014

पेशावर ही क्यों, इंसानियत के हत्यारे जहां कहीं भी, जिस किसी भी रूप में हों, उनके लिए सिर्फ लानत और धिक्कार..




इस तरह के कायराना और बुजदिली से भरे हमले, कहीं भी कोई भी क्यों न करे, उनकी जितनी भी निंदा की जाए कम है| ये न राजनीति है, न देशप्रेम है और न हकों की लड़ाई है| यह केवल वहशीपन है| यह पागलपन है| यह केवल बीमार उन्मादी हत्यारों का एक जगह एकत्रित हो जाना है| सचाई यह है कि इसमें कोई सिद्धांत नहीं है| सच तो यह है कि इस धरती पर रहने वाले प्राणियों में से, मनुष्यों में से प्रति एक लाख पर एक को भी इससे कोई मतलब नहीं कि वह किस धरती पर रह रहा है| वह किस देश में रह रहा है| देश प्रेम क्या होता है और किसी देश को उसे क्यों प्रेम करना चाहिए? ये तो उसे सिखाया जाता है, उनके द्वारा जो उसकी सहायता से इस धरती पर अपना कब्जा ज़माना चाहते हैं| यदि उसे सिखाया जाता कि धरती के छोटे टुकड़े नहीं , एक छोटे से गाँव नहीं, एक छोटे से शहर नहीं, एक छोटे से देश नहीं, पूरी धरती से प्यार करो, ये धरती किसी एक की नहीं, कुछ की नहीं, सबकी है तो वह पूरी धरती को प्यार करता| यदि उसे सिखाया जाता कि हम मनुष्य रूप और रंग में भिन्न इसलिए दीखते हैं, क्योंकि हम भिन्न भिन्न जलवायु, प्रदेश में रहते हैं, वरना हम एक ही हैं, तो वह एक दूसरे को सहना और साथ रहना भी सीख जाता | क्यों नहीं सीखता, जब वह कुत्ते, बिल्ली पालता है और उनके साथ रहना सीख जाता है| जब वह अपने पालतू के दुःख से दुखी और तकलीफ से पीड़ित हो जाता है तो वह अपने साथ के मनुष्य के दुःख से दुखी और पीड़ा से पीड़ित क्यों नहीं होता? अवश्य होता| पर, जिन्हें इस धरा पर राज करना है, जिन्हें सिर्फ अपने स्वार्थों और सुखों से मतलब है, जिन्हें अपने समान मनुष्यों को ही गुलाम बनाए रखने की आदमखोर इच्छा है, वे उसे छुद्र, छोटे, नारों और भावनाओं में उलझाए रखते हैं और फिर धरती, देश, सम्मान, की लड़ाईयों में निर्दोष, मासूम, मानवता की ह्त्या होती है| धिक्कार है, जमीन, देश, के नाम पर ह्त्या करने वालों और युद्ध करने वालों पर, लानत है, धर्म, जाती, के नाम पर ह्त्या करने वालों पर, लानत है एक मनुष्य को दूसरे मनुष्य का वध करने के लिए उकसाने वालों पर|
अरुण कान्त शुक्ला, 16 दिसंबर, 2014

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