Saturday, December 6, 2014

भारत इजराईल से हथियार खरीदना बंद करे, गोवा-घोषणापत्र



भारत इजराईल से हथियार खरीदना बंद करे, गोवा-घोषणापत्र

पंजिम में 28-29 नवम्बर,2014 को “फ़िलीस्तीनी आवाम के साथ एकजुटता” व्यक्त करने संपन्न हुए दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मलेन की मांग-

अखिल भारतीय शान्ति और एकजुटता संगठन (All India Peace and Solidarity Organization) तथा इसकी गोवा इकाई के तत्वाधान में “फ़िलीस्तीनी आवाम के साथ एकजुटता” व्यक्त करने के लिए पंजिम(गोवा) में 28-29 नवम्बर, 2014 को आयोजित सम्मलेन के अंतिम दिन पंजिम के मेनेंज़ेस ब्रगान्ज़ा संस्थान के सभागृह में संपन्न हुए खुले सत्र में सर्वसम्मति से पारित घोषणापत्र में 21 देशों तथा भारत के कोने कोने से आये प्रतिनिधियों ने एकस्वर में भारत सरकार से मांग की कि भारत सरकार इजराईल के साथ अपनी सैन्य जुगलबंदी की नीति पर पुनर्विचार करे तथा इजराईल से सैन्य हथियार खरीदना तुरंत बंद करे|

छत्तीसगढ़ से उपरोक्त सम्मलेन में प्रतिनिधी के तौर पर अखिल भारतीय शान्ति और एकजुटता संगठन(एप्सो) के उपाध्यक्ष ललित सुरजन, छत्तीसगढ़ एप्सो के कार्यकारिणी सदस्य अरुण कान्त शुक्ला तथा सदस्य महेंद्र मिश्रा शामिल हुए| महेंद्र मिश्रा रेलवे बोर्ड के पूर्व सदस्य हैं और उन्होंने अरब-इजराईल संघर्ष पर ‘फिलीस्तीन और अरब-इसराईल संघर्ष’ पुस्तक भी लिखी है| सम्मलेन की विशेषता थी कि दो दिवसीय सम्मलेन और गोवा के अंतर्राष्ट्रीय केंद्र (International Centre) पर 26 नवम्बर,2014 से आयोजित विश्व शान्ति परिषद की कार्यकारिणी की चार दिवसीय बैठक का खुला सत्र एक साथ 29 नवम्बर को मेनेंज़ेस ब्रगान्ज़ा संस्थान के सभागृह में संपन्न हुआ|

 

विश्व शान्ति परिषद की कार्यकारिणी की बैठक में शामिल होने के लिए भारत के अलावा इजराईल सहित 27 देशों, ब्राजील, ग्रीस, अंगोला, सेनेगल, क्यूबा, टर्की, फिलीपींस, वियतनाम, अमेरिका, पेलेस्टाईन, रशिया, लेबनान, साईप्रस, बंगलादेश, ब्रिटेन, ईरान, डेनमार्क, डोमिनिकम रिपब्लिक, दक्षिण अफ्रिका, वेनेजुएला, पुर्तगाल, श्रीलंका, कांगो, मेक्सिको, नेपाल, लाओस के प्रतिनिधी गोवा आये थे|

 

28 नवम्बर को सम्मलेन का उदघाटन करते हुए सीपीआई के महासचिव व सांसद डी राजा ने कहा कि भारत अपने स्वतंत्रता की लड़ाई के समय से ही फिलिस्तीनी लोगों की अपने स्वयं के राज्य और स्वतंत्रता की लड़ाई का समर्थक रहा है| उन्होंने कहा कि हमारी आजादी के लड़ाई के दौरान ही महात्मा गांधी ने कहा था कि ‘फिलीस्तीन ठीक उसी तरह अरब लोगों का है जिस तरह इंग्लैंड इंगलिश लोगों का या फ्रांस फ्रेंच लोगों का| यहूदियों को अरब लोगों पर थोपना अमानवीय और गलत है| इसमें कोई शक नहीं कि यह मानवता के खिलाफ अपराध होगा कि अरबों को विस्थापित करके फिलीस्तीन का कुछ भाग या पूरा फिलीस्तीन यहूदियों को मिले|’ उन्होंने कहा कि भारत के लोगों की पुरानी परंपरा है कि वे स्वतंत्रता, सार्वभौमिकता के लिए संघर्ष करने वाले देशों के साथ हमेशा एकजुटता रखते हैं| उन्होंने वियतनाम, क्यूबा, नेपाल के उदाहरण देते हुए बताया कि किस तरह भारत सरकार के तय रुख के अलावा भारत के लोगों ने इन देशों के लिए धन, कपड़े, दवाईयां एकत्रित करके भेजे थे| उन्होंने आशा व्यक्त किये कि यह सम्मलेन विश्व में सन्देश लेकर जाएगा कि इजराईल फिलीस्तीन को फिलीस्तीनियों के लिए खाली करे| सीपीआई(एम) के पोलित ब्यूरो सदस्य तथा सांसद सीताराम येचुरी ने उदघाटन सत्र को संबोधित करते हुए कहा कि फ़िलीस्तीनी लोगों के संघर्ष को बल देना और उसके साथ एकजुटता रखना स्वयं भारत के लोगों के हितों की लड़ाई को मजबूत करने का काम है| उन्होंने कहा कि अमेरिका हर दिन के साथ मध्य एशिया पर अपने प्रभाव और नियंत्रण को बढाने की कोशिशों में लगा हुआ है ताकि उस क्षेत्र के आर्थिक स्त्रोतों पर वह अपना नियंत्रण बढ़ा सके| उदघाटन सत्र को विश्व शान्ति परिषद की अध्यक्ष सोकोरो गोम्स, कार्यकारी सचिव इराक्लिस त्सव्दारिदिस, प्रवीर पुरकायस्थ, ने भी संबोधित किया| अंत में प्रसिद्द लेखिका गीता हरिहरन ने इजराईल-फ़िलीस्तीनी संघर्ष पर अपना रुख रखते हुए एक पेपर रखा और कहा कि हमें इजराईल के उत्पादों का बहिष्कार करने का आवाहन देना चाहिए|

 

सम्मलेन के दूसरे चरण में टर्की, रूस, वियतनाम, श्रीलंका, नेपाल, साईप्रस, ब्रिटेन, यूएस, लेबनान, फिलीस्तीन, पुर्तगाल, क्यूबा, ग्रीस, सहित अन्य अनेक देशों के प्रतिनिधियों के अलावा भारत के विभिन्न राज्यों से आये प्रतिनिधियों और सीटू, एटक, एआईएसएफ के संगठनों के प्रतिनिधियों ने अपने विचार रखे| छत्तीसगढ़ के प्रतिनिधी मंडल के सदस्य महेंद्र मिश्रा ने कहा कि आज लगभग 40 लाख फ़िलीस्तीनी अपने देश से दूर विस्थापित का जीवन जी रहे हैं और यदि वे अपने देश वापस आते हैं तो 1967 का सीमांकन भी उन्हें कम पड़ेगा, इसलिए अब इजराईल सहित पूरे क्षेत्र को फिलीस्तीन ही बनाने की मांग होनी चाहिए, जहाँ फ़िलीस्तीनी भी रहें और यहूदी भी|

 

29 नवम्बर,2014 को संपन्न हुए खुले सत्र के पहले विश्व शान्ति परिषद की कार्यकारिणी बैठक के स्थल इंटरनेशनल सेंटर से फ़िलीस्तीनी आवाम के साथ एकजुटता प्रदर्शित करते हुए कर्मचारियों,मजदूरों,छात्रों और आम जनता के जागरुक हिस्सों की एक भव्य रैली निकली जो प्रमुख मार्गों से होते हुए पणजी के आजाद मैदान पहुँची, जहां शहीद स्मारक पर माल्यार्पण के बाद मेन्जेस ब्रगान्ज़ा सभागृह में खुला सत्र प्रारंभ हुआ| खुले सत्र में कामरेड क्रिस्टोफर फोंसेका, सचिव एप्सो गोवा ईकाई, के स्वागत भाषण के बाद अध्यक्ष एडुँर्दो फलेरियो, सीपीएम के सांसद सीताराम येचुरी, सीपीआई के सांसद डी राजा, विश्व शान्ति परिषद के कार्यकारी सचिव कार्यकारी सचिव इराक्लिस त्सव्दारिदिस के अलावा अमेरिका, पुर्तगाल, साऊथ अफ्रिका, फिलीस्तीनके प्रतिनिधियों ने संबोधित किया|


भारत गैर-अरब देशों में पहला राष्ट्र था जिसने सबसे पहले 1974 में पेलेस्ताईन लिबरेशन आर्मी को मान्यता दी थी और 1988 में फिलीस्तीन को सबसे पहले राज्य के रूप में मान्यता दी थी| भारत ने हमेशा ही वेस्ट बैंक और गाजा पर इजराईली अवैध कब्जे का विरोध किया है| इजराईल के द्वारा की गयी नाकाबंदी के चलते गाजा एक खुली जेल में तब्दील हो गया है और गाजा के लोगों का बाहर की दुनिया से सम्पर्क लगभग समाप्त हो चुका है| वहां आज मानवता को शर्मसार करने वाली घटनाएं हो रही हैं| इजराईल के द्वारा थोपे गए ब्लाकेड के चलते लोग भूखे मरने के लिए मजबूर हैं| इधर भारत सरकार यद्यपि फिलीस्तीन के विरोध में नजर नहीं आती है किन्तु उसका इजराईल के साथ सैन्य जुगलबंदी और हथियार खरीदने के सौदे करते जाना लगातार जारी है| भारत के इजराईल से हथियार खरीदने का सीधा अर्थ है कि भारत अप्रत्यक्ष रूप से इजराईली हथियार उद्योग और इजराईली सेनाओं को सबसीडी मुहैय्या करा रहा है, जो तमाम अंतर्राष्ट्रीय कानूनों और संयुक्त राष्ट्र संघ के निर्देशों को धता बताकर लगातार फिलीस्तीन की जमीन पर कब्जा जमाये हैं| इसलिए अखिल भारतीय शांति और एकजुटता संगठन के 28-29 नवम्बर को फ़िलीस्तीनी लोगों के साथ एकजुटता व्यक्त करने के लिए आयोजित सम्मलेन और विश्व शांति परिषद ने अपने घोषणा-पत्र में भारत सरकार से मांग की है कि;
1.      भारत इजराईल के साथ अपनी सभी तरह की सैनिक जुगलबंदी पर पुनर्विचार करे तथा इजराईल से हथियार खरीदना तुरंत बंद करे|
2.      भारत ऐसे किसी भी कदम का हिस्सा नहीं बने, जिससे इजराईल के द्वारा किये गए अवैध कब्जे को समर्थन मिले| किसी भी हालत में इजराईल के साथ संबंधों को सामान्य बनाने की प्रक्रिया का अर्थ यह न निकले कि भारत इजराईल के द्वारा फिलीस्तीन की जमीन पर किये गए कब्जे का समर्थन करता है|
3.      भारत सरकार को साहस के साथ फिलीस्तीन पर इजराईल के कब्जे को खत्म करने के लिए काम करना चाहिए और फिलीस्तीनियों को उनकी 1967 के पूर्व की जमीन और जेरुशलम राजधानी के रूप में मिले, इसके लिए प्रयास करना चाहिए|
4.      भारत के लोग स्वतंत्रता, लोकतंत्र और शांति को जीवन के आवश्यक सम्मानीय मूल्य मानते हैं| इसलिए घोषणापत्र में भारत के लोगों से भी अपील की गयी है कि वे फ़िलीस्तीनी आवाम के द्वारा स्वतंत्रता, और शान्ति के लिए चलाये जा रहे संघर्षों के साथ अपनी एकजुटता और मजबूत करें|



अरुण कान्त शुक्ला
5/12/14              

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