Wednesday, January 26, 2011

स्वाधीनता दिवस और गणतंत्र दिवस के मायने –

स्वाधीनता दिवस और गणतंत्र दिवस के मायने –

स्वतन्त्र भारत के इतिहास में यह पहली बार हुआ है कि भाजपा के साम्प्रदायिक मंसूबों (फिलहाल तिरंगा प्रेम) से निपटने में केंद्र की और वह भी कांग्रेसनीत सरकार ने साहस और दृढ़ता का परिचय दिया है | यदि इसी दृढ़ता का परिचय 1992 में बाबरी मस्जिद को गिराए जाते समय दिया गया होता तो देश को बाद में मुम्बई और गुजरात जैसे नरसंहारों को नहीं देखना पड़ता | अब सुषमा स्वराज और अरुण जेटली के इस रुदन का कोई अर्थ नहीं है कि जब पूरा देश कौम का इतना बड़ा जलसा मना रहा था तो देश के दोनों सदनों के विपक्ष के नेता हिरासत में थे | एक देश के लिये स्वतंत्रता दिवस और संप्रभुता दिवस के मायने क्या होते हैं , यह चिंतन तो उन्हें एकता यात्रा में शामिल होने से पहले कर लेना चाहिये था | जहाँ तक जनता के द्वारा जबाब माँगने का सवाल है , भाजपा निश्चिन्त रहे , जनता कोई भी जबाब किसी से भी नहीं माँगने वाली , क्योंकि , वैसे भी , जनता के सामने रोजगार , महंगाई , भ्रष्टाचार , क़ानून व्यवस्था , दैनिक जीवन में असुरक्षा , जैसे , अपनी जीवन यापन की चिंता को लेकर ही इतने सवाल हैं , और जिनके लिये भाजपा भी बराबर की जिम्मेदार है , कि वह श्रीनगर के लाल चौक पर झंडा फहराने जैसे खोखले भावुक नारे में अब बहने वाली नहीं है |


श्रीनगर के लाल चौक पर झंडा फहराने की जिद के पीछे भाजपा के दो प्रमुख तर्क हैं | पहला कि जम्मू कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है , इसलिए देश से प्यार करने वाले प्रत्येक भारतीय को श्रीनगर के लाल चौक पर झंडा फहराने का अधिकार है | भाजपा से बहुत आसानी से यह पूछा जा सकता है कि उसकी मातृ संस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नागपुर मुख्यालय में वर्ष 2003 तक कभी भी झंडा नहीं फहराया गया तो क्या इसका मतलब यह निकाला जाए कि वर्ष 2003 तक आरएसएस या भाजपा को राष्ट्रप्रेम के मायने नहीं पता थे ? वर्ष 2004 में भी आरएसएस ने यह काम लगभग मजबूरी में ही किया था क्योंकि भाजपा की उस समय की आँख का तारा नेत्री कर्नाटक के हुबली में झंडा फहराने की यात्रा पर निकली थीं और संघ मुख्यालय कड़ी आलोचनाओं के घेरे में आ गया था | तो क्या इसका अर्थ यह लगाया जाए कि अभी उमड़ रहा यह राष्ट्रप्रेम दिखावा है ? नहीं ऐसा कोई भी अर्थ निकालना गलत होगा | यह सीधे सीधे असंतोष और अलगाववाद को बढ़ावा देगा | ठीक यही बात भाजपा को समझना होगी कि हमारे देश की भूमी का प्रत्येक इंच देश का अभिन्न हिस्सा है और ठीक उसी तरह श्रीनगर का लाल चौक भी देश का अभिन्न हिस्सा है , फिर उसी जगह झंडा फहराने की मुहीम क्यों ? जबकि लाल चौक पर परम्परागत ढंग से कभी भी झंडा नहीं फहराया जाता रहा है | सिवाय , उस एक बार के जब 1992 में भाजपा के नए नए अध्यक्ष बने मुरली मनोहर जोशी ने इसी तरह की यात्रा निकाली थी और पूरी तरह से सरकारी संरक्षण में , सुरक्षा के भारी इंतजामों के बीच मुठ्ठी भर स्वयंसेवकों के साथ जिसमें नरेंद्र मोदी भी शामिल थे , झंडा फहराया था | सभी इसे जानते हैं कि वह भाजपा की अंदरूनी प्रतिस्पर्धा थी और मुरली मनोहर जोशी ने पूर्व अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी से प्रतिस्पर्धा में वैसा किया था , जिनकी कुप्रसिद्ध रथयात्रा ने देश में साम्प्रदायिक दंगों का जलजला फैलाया था और बाद में बाबरी मस्जिद के ध्वंस का रास्ता तैयार किया था | जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने बिलकुल ठीक कहा कि जब आपने पिछले 19 वर्षों में लाल चौक का रुख नहीं किया , यहाँ तक कि जब एनडीएनीत सरकार थी , तब भी नहीं , तो अब क्यों ? अब , जब घाटी में शांती बहाल हो रही है , तब उसमें विघ्न डालकर , असंतोष और अलगाववाद को अवसर प्रदान कराकर तुच्छ राजनीतिक फ़ायदा उठाने के प्रयास को केंद्र सरकार ने ठीक ही पूरा नहीं होने दिया , जो काम वह 1992 में नहीं कर पायी थी और देशवासियों को उसकी कीमत जानें कुरबान करके चुकानी पड़ीं थी |


एक दूसरा सवाल और उठाया गया है कि क्या श्रीनगर में तिरंगा राष्ट्र का अहित कर सकता है ? यह शब्दों के आडम्बर में जनमानस को उलझाकर राजनीतिक फायदा बटोरने की कोशिश के अलावा और कुछ नहीं है | इस पूरे एपीसोड में भाजपा ने तिरंगे के सम्मान को उलझन में डालने के अलावा और कुछ नहीं किया | जैसे कि सभी देशों के लिये है , भारत और भारतवासियों के लिये भी राष्ट्रीय ध्वज देश की आन और शान का प्रतीक है और इससे राष्ट्र के हित और अहित दोनों का कोई भी संबंध नहीं है | राष्ट्र का हित और अहित तो देश में काम कर रहीं राजनीतिक पार्टियों के सिद्धांतों , नीतियों , व्यवहारों और कार्यों से सधते और बिगड़ते हैं | राष्ट्र के हित और अहित , देशवासियों के हितों और अहितों से इतर और कुछ भी नहीं होते हैं | तिरंगे ने श्रीनगर सहित देश में कहीं भी किसी का भी अहित नहीं किया है , पर शासन में रहे राजनीतिक दलों ने कितना अहित किया है , जिसमें भाजपा भी शामिल है , उसकी बानगी यह है कि बाल मृत्यु दर में भारत का हिस्सा दुनिया में शर्मनाक ढंग से 20 प्रतिशत है | दुनिया के भूखे लोगों में से आधे भारत में हैं | भारत के प्रत्येक 100 में से 46 बच्चे कुपोषण का शिकार हैं | भारत की ग्रामीण जनता का मात्र 15 प्रतिशत और शहरी जनता का सिर्फ 61 प्रतिशत शौचालय का प्रयोग करते हैं | देश के सत्तर प्रतिशत लोग 20 रुपये प्रतिदिन से भी कम पर गुजारा करते हैं और चोरी , घूसखोरी और घोटाले रत्नों के समान राजनीतिक दलों के नेताओं के मुकुटों में जड़े हैं | कॉफिन से लेकर तोप तक , कुछ बचा है ? पिछले दो दशकों में शासन में रही सभी पार्टियां भ्रष्टाचार को आपराधिक ढंग से संरक्षण देती रही हैं , जिसने दुनिया में भारत का खूब मखौल बनाया है , राष्ट्र का उससे बड़ा कोई और क्या अहित हो सकता है |


सभी जानते हैं कि जैसे भारत के दूसरे राज्यों में 15 अगस्त और 26 जनवरी को झंडा फहराया जाता है , वैसे ही जम्मू कश्मीर में भी फहराया जाता है | अगर कश्मीर के लोग लाल चौक पर झंडा फहराना चाहें तो वे उसके लिये स्वतंत्र हैं | राष्ट्रीय ध्वज के इतिहास में जाए बगैर , यह सहज ही सभी को स्वीकार्य है कि हमारा राष्ट्रीय ध्वज अहिंसा और राष्ट्रीय एकता की निशानी है | यही मायने स्वाधीनता और गणतंत्र दिवस के भी हैं | स्वाधीनता दिवस और गणतंत्र दिवस देश की आजादी और सार्वभौमिकता को सूदृढ करने के अवसर हैं , चुनौती देकर , अलगाववाद को हवा देने के नहीं |



 

2 comments:

Anonymous said...

SHUKLA JI,PL VIEW YOURS STRONG COMMENT OF LIC CZIEA AND RDIEA,WE ALL WAITING YOUR OPTION,WE ALL WITH YOU ALWAYES

Anonymous said...

WE LOVE A.K.SHUKLA , FROM-LICIAN