Sunday, February 20, 2011

वो पूरी नज़्म हूँ मैं -


वो पूरी नज्म हूँ मैं -

दिल का दर्द था , बाहर छलक गया ,
अश्कों के सैलाब से ,  एक आंसू ढलक गया ,

सफर पर चले थे हम , अपना सलीब अपने काँधे पर लिये ,
रकीब क्या चढ़ाता सूली , खुद सलीब चढ़ लिये ,

न मोहब्बत कम हुई , न सुरूर कम हुआ ,
उन्होंने रास्ते बदल लिये , हमसे ये न हुआ ,

न शिकवा है , न शिकायत है ,
सैय्याद की बुलबुल से , ये पुरानी अदावट है ,

अब जख्म नहीं होते हरे , नये घाव नहीं लगते ,
राह के च़राग बुझाते हैं अब , वो और बेफ़िक्री से ,

न कवि हूँ  मैं , न शायर हूँ मैं ,
जाहिलों ने पढ़ी अधूरी , वो पूरी नज्म हूँ मैं ,
अरुण कांत शुक्ला -

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