बंसीलाल आज भी अंधा है..
बंसीलाल
आज भी अंधा है और गंगाराम आज भी लंगड़ा| आप सोचेंगे कि यह अचानक बंसीलाल और गंगाराम
कहाँ से आ गए? दरअसल ये कहीं से आये नहीं हैं, मेरे अन्दर ही थे स्मृतियों में| आज
प्रदेश के मुख्यमंत्री ने अचानक उस स्मृति को कुरेद कर ताजा कर दिया| कल उत्सव
धर्मी प्रदेश छत्तीसगढ़ में एक और उत्सव राज्य स्तरीय शाला प्रवेश उत्सव मनाया गया|
पिछले कुछ वर्षों से यह एक नया उत्सव है, जो प्रदेश में मनाया जाता है| यह उत्सव
पूरे प्रदेश में 16 जून से लेकर 30 जून तक चलेगा| कल रायपुर में, माना बस्ती में
आयोजित ‘राज्य स्तरीय शाला प्रवेश उत्सव’ का शुभारंभ करते हुए प्रदेश के मुखिया
मुख्यमंत्री रमन सिंह ने अपने पहले स्कूली दिन को कुछ इस तरह याद किया;
“स्कूल का पहला दिन 63 साल बाद भी याद
है| मैं उस नेत्रहीन व्यक्ति जिसका नाम गुडनाईट था, को कभी नहीं भूलूंगा, जब पहली
बार उनके कंधे पर बैठकर स्कूल गया| वे छुट्टी होने तक स्कूल के बाहर बैठे रहते थे|
उनके हाथ में एक छड़ी होती थी| कभी स्कूल जाने के लिए आनाकानी करता तो वे छड़ी
दिखाकर डराते किन्तु जब वह छड़ी मेरे हाथ लगती तो मैं भी बड़ों की तरह डांटता|”
उनके
भाषण के इस हिस्से पर किसी भी तरह का कमेन्ट करने के बजाय मैं केवल अपने पाठकों से
यह भर कहना चाहूंगा कि रमन सिंह 7 दिसम्बर 2003 से छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री हैं और
नेट तथा अन्यत्र बिखरी पड़ी जानकारियों के अनुसार उनका जन्म 15 अक्टूबर, 1952 को हुआ था। उनकी स्कूली शिक्षा
छुईखदान, कवर्धा और राजनांदगांव
में हुई एवं उनके पिता कवर्धा के एक सफल और सदाशयी एडवोकेट थे| और, जिस दिन वे
भाषण दे रहे थे, 16 जून, 2015 को उनकी आयु 62वर्ष, 8माह, 1दिन थी| जिन दिनों वे
स्कूल में भर्ती हुए होंगे, नर्सरी, केजी-1, केजी-2 का रिवाज नहीं था| सामान्यत:
बच्चे पांच वर्ष की आयु में माँ-पिता अथवा किसी अन्य के द्वारा स्कूल ले जाए जाते
थे| पर, पैदा होने के तुरंत बाद स्कूल में भरती करने का कोई रिवाज तो कतई नहीं था|
पैदा होने के बाद तुरंत स्कूल में भरती किये जाने का कोई उदाहरण पौराणिक ग्रन्थों
में है या नहीं, मुझे नहीं मालूम| बहरहाल, इस बात को मैं यहीं छोड़ता हूँ, क्योंकि
मुझे तो आपको बंसीलाल के बारे में बताना है, जो आज भी अंधा है और गंगाराम, जो आज
भी लंगड़ा है| इनकी याद मेरी स्मृति में मुख्यमंत्री के भाषण के उपर उद्धृत अंश से
आई|
जब मैं लगभग 56-57 में पहली अथवा दूसरी कक्षा में था तो हिन्दी की
किताब में एक पाठ था| पाठ कुछ इस तरह था;
“बंसीलाल अंधा था| गंगाराम लंगड़ा था| दोनों मेले जाना चाहते थे|
बंसीलाल ने गंगाराम को कंधे पर बिठाल लिया| गंगाराम रास्ता बताता जाता था और
बंसीलाल चलता जाता था| इस तरह दोनों मेले पहुँच गए|” (पंक्तियाँ स्मृति के आधार
पर)
मुझे याद नहीं कि मेरे शिक्षक ने उपरोक्त कहानी से क्या शिक्षा
मिलती है बताया था? मुझे स्कूल जाने का पहला दिन भी याद नहीं है| पर, एक सवाल मुझे
हमेशा परेशान करता रहा| मेले का सारा आनंद तो दृश्यों में है| गंगाराम देखकर मेले
का आनंद ले सकता है| पर, वो चल नहीं सकता| बंसीलाल अंधा था, वह देखकर मेले का आनंद
नहीं ले सकता था| फिर, बंसीलाल गंगाराम को कंधे पर बिठालकर मेले क्यों ले गया? जरुर
गंगाराम ने बंसीलाल के मन में मेले के लिए लालच जगाया होगा, ताकि वो गंगाराम को
अपने कंधे पर बिठा कर ले जाए| यहाँ बंसीलाल कर्म का प्रतीक है| वो कामगार है|
गंगाराम योजनाकार है| वह अपनी बातों से बंसीलाल को बहला/फुसला सकता है|
जीवन में आती हुई परिपक्वता के साथ धीरे-धीरे कहानी के और भी अर्थ
खुलने लगे| हम सब जो मेहनत करके अपनी रोजी रोटी कमाते हैं, मजदूर/किसान/कर्मचारी बंसीलाल
ही हैं| आँखों वाले बंसीलाल, जिन्हें गंगाराम, राजनेता/उद्योगपति/नौकरशाह हर पांच
साल में ही क्यों, हरदम बहलाते/फुसलाते रहते हैं| हम सब देखते और जानते हुए भी उनके
बहलाने/फुसलाने में आ जाते हैं| वह डराते भी हैं, उनकी सत्ता की छड़ी से, जो हम उनके
हाथों में हर 5 साल में दे देते हैं| गंगाराम आज भी कुछ नहीं करता, सिवाय हमारी
पीठ पर सवारी के मगर हमारी पैदा की हुई दौलत पर उसका अधिकार है| वह कुछ नहीं बनाता
पर हमारी बनाई हुई खूबसूरत दुनिया पर उसका अधिकार है| गंगाराम के सारे
फायदे/ऐश/आराम बंसीलाल के अंधे बने रहने में हैं| गंगाराम बंसीलाल को अंधा बनाए
रखने के लिए सारे जतन करता रहता है|
देश आज राजनीति में ‘मन की बात’ के दौर से गुजर रहा है| मष्तिष्क
मनुष्य के विवेक का संरक्षक है| मनुष्य का विवेक सत्य-असत्य, भले-बुरे, सुख-पीड़ा
के भेद को जानकर मनुष्य के मन पर नियंत्रण रखता है| विवेक अपने-पराये से उपर उठकर
सोचने की सक्षमता देता है| पर, जब बातें मन की होती हैं तो विवेक के नियंत्रण से
मुक्त होती हैं| तब यह सुधि नहीं रहती कि उसी उत्सव के दिन उसी राज्य शासन के
शिक्षा विभाग ने 2918 स्कूलों को ‘युक्तियुक्तकरण’ योजना के तहत बंद करने का आदेश
निकाला है| इन बंद होने वाले स्कूलों के हजारों बच्चे कहाँ जायेंगे? आगे पढ़ेंगे भी
या नहीं? उत्सवधर्मी मन को इन सभी बातों से कोई मतलब नहीं| तब यह याद नहीं आता कि
प्रदेश के लगभग 17000 स्कूलों में शौचालय नहीं है| 8164 स्कूलों में छात्राओं के
लिए शौचालय नहीं हैं| स्कूल शिक्षा सुविधाओं में राष्ट्रीय स्तर पर हमारा स्थान 27वां है| आधे से अधिक स्कूलों में खेल के
मैदान, बाऊंड्रीवाल और करीब करीब 90% स्कूलों में कम्प्यूटरीकृत सुविधाएं नहीं
हैं| क्यों प्रायमरी स्कूल में दाखिला लेने वाले प्रत्येक दस बच्चों में
से बमुश्किल 2 बच्चे हायर सेकेंडरी तक पहुँचते हैं| क्यों स्कूलों में
व्याख्याताओं,
प्राचार्यों तथा प्रधान
पाठकों के हजारों
पद
रिक्त हैं| यह सब मष्तिष्क की बाते हैं| मन तो उत्सवधर्मी है| गंगाराम को तो बस
बंसीलाल के कंधे पर चढ़कर मेले पहुंचना है| बंसीलाल उत्सव के आँखों देखे हाल से
संतुष्ट हो जाता है, यह वह जानता है|
आज से 63 वर्ष पूर्व गुडनाईट ‘रात्री संबोधन’ के रूप में तक प्रचलित
नहीं था| ‘गुडनाईट’ नाम मैंने पहली बार सुना है| 20-25 हजार की आबादी वाले कस्बों
में भी मुश्किल से 10-20 मेट्रिक पास मिलते थे| गुडनाईट का दिन भर स्कूल के सामने
बैठे रहना, उस समय व्याप्त सामंती शोषण का प्रतीक है| वैसे, गुडनाईट के बारे में
तो नहीं मालूम, हाँ बंसीलाल, मुख्यमंत्री के संबोधन
से जिसकी याद आई, आज भी अंधा है और गंगाराम आज भी उसके कंधे पर सवार|
अरुण कान्त शुक्ला
18/6/2015
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