Monday, July 16, 2012

हमारे किस काम की ये दुनिया -




हमारे किस काम की ये दुनिया,

इतनी बेचारगी, लाचारी और जिल्लत की ये दुनिया,
इंसानियत पे होती हावी हैवानियत की ये दुनिया,
आदमी की कोख से पैदा हुए भेड़ियों की ये दुनिया,
कपडे पहने, कपड़ों में नंगे घूमते सफेदपोशों की ये दुनिया,
झूठों,फरेबियों और मक्कारों के ईशारे पर नाचती ये दुनिया,
क्यों न इस दुनिया में आग लगा दें,
हमारे किस काम की ये दुनिया।।


कूड़े के ढेर पे खाना ढूंढते बच्चों की ये दुनिया,
कुत्तों को गोदी बिठालकर खाना खिलातीं मेमों की ये दुनिया,
अपनी जमीन से अलग होकर आत्महत्या करते किसानों की ये दुनिया,
अपना जमीर बेचकर राज करते सत्तानशीनों की ये दुनिया,
फुटपाथों, दुकानों के पटियों, प्लेटफार्म पर लाशों जैसे सोते लोगों की ये दुनिया,
क्यों न इस दुनिया में आग लगा दें,
हमारे किस काम की ये दुनिया।।
 

गरीबों से निवाले छीनकर महल तानने वालों की ये दुनिया,
अमरीका के तलवे चाटने वाले सियासतदाओं की ये दुनिया,
वर्ल्ड बैंक, आईएमएफ और डबल्यूटीओ की बनाई ये दुनिया,
दुनिया की आधी आबादी के लिए कब्र बनी ये दुनिया,
भूख की लपटों में आदमी को ज़िंदा जलाने वालों की ये दुनिया,      
क्यों न इस दुनिया में आग लगा दें,
हमारे किस काम की ये दुनिया।।

औरतों के जिस्म को नोचने वालों की ये दुनिया,
बच्चों को भूखे मारने वालों की ये दुनिया,
दुनिया को बनाने वालों का खून पीने वालों की ये दुनिया,
दुनिया को बनाने वालों को बेवकूफ बनाने वालों की ये दुनिया,
धर्म के नाम पर लूट मचाने वाले बाबाओं की ये दुनिया,
क्यों न इस दुनिया में आग लगा दें,
हमारे किस काम की ये दुनिया।।


इतनी बेचारगी , लाचारी और जिल्लत की ये दुनिया,
इंसानियत पे होती हावी हैवानियत की ये दुनिया,
आदमियत जिसमें हो रही शर्मसार, है ये वो दुनिया,
पैसा जिसमें करता इंसानियत से व्यभिचार, ऐसी ये दुनिया,
सलीब जिसमें पुण्य चढ़ा, खिलखिलाता है पाप, ऐसी ये दुनिया,       
क्यों न इस दुनिया में आग लगा दें,
हमारे किस काम की ये दुनिया,
क्यों न इस दुनिया में आग लगा दें,
हमारे किस काम की ये दुनिया।।

अरुण  कान्त शुक्ला-
     
 
  
         

No comments: