गर्भाशय निकालने के धंधे में चार डाक्टरों का
पंजीयन निलंबित-
10 और डॉक्टरों को नोटिस,
9 नर्सिंग होम का राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना अनुबंध रद्द,
ब्लेक लिस्टेड,
निजी अस्पतालों में हड़कंप,
राज्य
शासन ने केंसर का भय दिखाकर गर्भाशय निकालने के मामले में रायपुर के चार डाक्टरों
का पंजीयन छत्तीसगढ़ मेडिकल काउन्सिल से निलंबित कर दिया है। फिलहाल वे देश में कहीं भी मेडिकल
प्रेक्टिस नहीं कर पायेंगे। केंसर का भय दिखाकर गर्भाशय निकालने के
प्रकरण में फंसे डॉक्टरों का निलंबन छत्तीसगढ़ मेडिकल काउन्सिल एक्ट की धारा 17 के
तहत किया गया है। यह
धारा डॉक्टरी पेशे में अनैतिक कृत्य के आरोप में दोषी पाए जाने के बाद की जाती है। स्वास्थ्य विभाग के संचालक डॉ.
कमलप्रीत सिंह ने गुरूवार देर रात राजधानी रायपुर के आशीर्वाद इन फर्टिलिटी
एंडोस्कोपी सेंटर डंगनिया की डॉ. नलिनी मढ़रिया, कर्मा हास्पिटल तेलीबांधा के
संचालक डॉ. धीरेन्द्र साव, जैन हास्पिटल देवेंद्रनगर के डॉ. नितिन जैन और सिटी
हास्पिटल न्यू राजेन्द्र नगर की डॉ. मोहनी इदनानी के पंजीयन निलंबित करने के आदेश
दिए। डॉ. सिंह ने
बताया कि स्वास्थ्य विभाग ने इन सभी के खिलाफ बिना कारण छोटी उम्र की महिलाओं के
गर्भाशय निकालने के आरोप में कार्रवाई की है।
शुक्रवार,
22,जून’2012 को जिन दस और डॉक्टरों को नोटिस जारी किये गये हैं, उनमें राजधानी के
अलावा अभनपुर और नवापारा राजिम के डॉक्टर शामिल हैं। रायपुर जिले के जिन निजी डॉक्टरों को
नोटिस जारी किया गया है, उसमें भक्त माता कर्मा हास्पिटल राजिम व सेवा सदन
हास्पिटल अभनपुर के डॉ. पंकज जायसवाल, स्वामी नारायण हास्पिटल पचपेड़ी नाका डॉ.
ज्योति दुबे, लाईफ लाइन नर्सिंग होम शैलेन्द्र नगर के डॉ. जी.पी.एस सरना, मिस कौर
अस्पताल नवापारा राजिम की डॉ. गुरमीत कौर, विद्या सागर नर्सिंग होम नवापारा की डॉ.
नीना जैन, सोनी मल्टी स्पेशिलिटी अभनपुर के डॉ. प्रज्जवल सोनी, महामाया नर्सिंग
होम अभनपुर की डॉ.नीतू जैन, सोनी एंड कौर नर्सिंग होम राजिम की डॉ. प्रज्जवल सोनी
और गुरमीत कौर एवं हरी अस्पताल अभनपुर के डॉ. एस.एल.तिवारी शामिल हैं। स्वास्थ्य विभाग के अनुसार इन सभी से
26 जून को पूछताछ की जायेगी| स्वास्थ्य विभाग ने बताया कि डॉक्टरों को नोटिस हाथो
हाथ दिए जाने का प्रबंध किया गया ताकि बाद में कोई डॉक्टर यह न कह सके कि उसे
नोटिस नहीं मिला है।
फिलहाल
स्वास्थ्य विभाग ने एक और कड़ा कदम उठाते हर राजधानी रायपुर, अभनपुर और राजिम के 9
नर्सिंग होम को ब्लेक लिस्टेड करते हुए उनका राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना का
अनुबंध रद्द कर दिया है। जिन नर्सिंग होम को ब्लेक लिस्ट करके उनका राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना का
अनुबंध रद्द किया गया है, उनमें राजधानी के देवेन्द्र नगर स्थित जैन हास्पिटल,
आशीर्वाद इन फर्टिलिटी इंडो स्कोपि सेंटर डंगनिया, माता रानी सेवा सदन राजिम, सोनी
मल्टी स्पेशिलिटी सेंटर अभनपुर का योजना से संलग्नीकरण खत्म किया है तो अंचल
नरसिंग होम महावीर नगर, स्वामी नारायण हास्पिटल पचपेड़ी नाका और छत्तीसगढ़ हास्पिटल
राजिम के राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना में शामिल होने के आवेदन निरस्त किये गये
हैं। ये सभी ब्लेक
लिस्ट कर दिए गये हैं।
मैंने,
अपनी पिछली पोस्ट “छत्तीसगढ़ में केंसर का भय दिखाकर
गर्भाशय निकालने का धंधा” में बताया था कि राजधानी के कुछ
प्रतिष्ठित चिकित्सों और चिकित्सा व्यवसाय से जुड़े लोगों तथा कुछ भुक्त भोगियों का
कहना है कि राज्य के शहरी क्षेत्र में तो स्त्रियों के गर्भाशय निकालने का यह धंधा
पिछले काफी सालों से जमकर चल रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में इसका विस्तार
पिछले कुछ वर्षों में हुआ है, जहां छोटे डाक्टर, निजी नर्सिंग होम के दलाल और कुछ
मामलों में मितानिनें भी इसमें शामिल हैं। अब स्वास्थ्य विभाग की जांच के बाद जो
तथ्य सामने आये हैं, उनका सबसे शर्मनाक पहलू यह है कि ग्रामीण क्षेत्रों में इस
धंधे का विस्तार पिछले लगभग तीन वर्षों में ही सबसे अधिक हुआ है, याने राज्य में
राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के लागू होने के बाद। केंसर का भय दिखाकर गर्भाशय
निकालने के अधिकाँश ऑपरेशन राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत किये गये हैं।
स्वास्थ्य विभाग के द्वारा एकत्रित जानकारी के अनुसार राज्य के विभिन्न नर्सिंग
होम में पिछले ढाई साल में सात हजार से ज्यादा ऑपरेशन राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा
योजना के तहत किये गये हैं। इसके लिए शासन के माध्यम से इंश्योरेंस कंपनी ने 7 करोड़
75 लाख का भुगतान किया। जांच में यह भी पता चला कि नर्सिंग होमों को विभिन्न मदों
के लिए जितना भुगतान किया गया है, उसका 70% केवल गर्भाशय की सर्जरी के लिए दिया गया। राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना प्रदेश में
अक्टोबर’2009 से लागू हुई। इसके तहत गरीबी रेखा से नीचे आने वाले परिवारों ने
स्मार्ट कार्ड के माध्यम से ऑपरेशन के खर्च का भुगतान किया है। याने, जो योजना
गरीबों को सहायता पहुंचाने और जरूरी स्वास्थ्य रक्षा के लिए लाई गई थी, वो समाज के
इस सबसे ज्यादा सम्मानित समझे जाने वाले तबके के हाथों में पड़कर गरीबों का ही खून
चूसने वाली योजना में तब्दील हो गई। कुछ विशेषज्ञों का ऐसा कहना है कि कम उम्र में
गर्भाशय निकालने से हारमोन का संतुलन शरीर में बिगड़ जाता है और समय से पहले बुढ़ापा
आने के साथ साथ अन्य दूसरी समस्याएँ भी खड़ी हो जाती हैं। पर, जब डॉक्टरी पढ़ने के
बाद ली जाने वाली पाखंडी शपथ को पाखंडी ही साबित करते हुए अपने ज्ञान को उपभोक्ता
सामग्री बनाकर, बेचकर, मुनाफ़ा कमाने का भूत सिर पर चढ़ जाए तो इंसानियत, सेवा और भलमनसाहत
जैसी बातें ओछी लगने लगती हैं। और जैसा कि मैंने प्रथम बार इस विषय पर रिपोर्टिंग
करते हुए कहा था, तब, सर्जन, सर्जन नहीं रहता, दर्जी हो जाता है और रोगी रोगी नहीं
रहता कपड़ा हो जाता है, जिसे काटकर, सिलकर, सीखे हुए पेशे से ज्यादा से ज्यादा पैसा
कमाया जा सकता है।
जांच में खुलासे के बाद से निजी अस्पतालों में हड़कंप मचा है
और वो अपने को किसी भी तरह से बचाने के प्रयास में लगे हैं। कुछ अस्पताल के संचालक
स्वास्थ्य विभाग के चक्कर भी लगा रहे हैं। राज्य शासन के अभी तक के रुख और
स्वास्थ्य विभाग के द्वारा की गई कार्रवाई को देखते हुए ऐसा लगता है कि इस मामले
में कोई ढिलाई नहीं बरती जायेगी। विशेषकर, अब इस मामले को मीडिया में भी तवज्जो
मिलने के बाद पूरे मामले को ऐसे ही दबाना संभव नहीं दिखता है। स्वास्थ्य विभाग से
छनकर आने वाली खबरों के अनुसार लगभग 200 अस्पतालों की सूची बनाई जा रही है। इन
अस्पतालों को जल्द ही नोटिस जारी करके पूछताछ के लिए बुलाया जायेगा। कहा जा रहा है
कि इन अस्पतालों में भी जबरिया गर्भाशय निकालने की शिकायते हैं। स्वास्थ्य विभाग
की टीम फिलहाल दौरे करके मरीजों से पूछताछ
कर रही है और उसी आधार पर आगे की कार्रवाई करने की योजना बना रही है। इस
पूरे मामले में चिकित्सा जगत की बड़ी बड़ी हस्तियों के चपेटे में आने के आसार के
चलते सभी तरफ से राजनीतिक दबाव बनने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
जानकार लोगों का कहना है कि गर्भाशय के ऑपरेशन तो केवल एक बानगी है। छत्तीसगढ़ में,
चाहे वो कैसे भी ऑपरेशन हों, 70% ऑपरेशन फिजूल ही किये जाते हैं और यह सब कार्टेल
बनाकर किया जाता है।
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