Sunday, November 14, 2010

बराक ओबामा जाना पहचाना चेहरा –


 

बराक ओबामा जब मुम्बई के रास्ते भारत आये तो मुझे उनका चेहरा बहुत जाना पहचाना लगा | ऐसा लगा वो इसके पहले भी भारत आ चुके हैं | जबकि ओबामा पहली बार भारत आये थे |

जबसे उनके भारत आने की बात पता चली थी , जेहन में उस व्यक्ति का चेहरा उभरता था , जो अश्वेत होने के बावजूद अमेरिका का प्रेसीडेंट चुना गया था | 47 वर्ष का एक व्यक्ति जो ईराक पर हमले से लेकर , हर उस गलती को ठीक करने की इच्छा रखे था , जो बुश और उसके पहले के जमाने में की गईं थीं | एक ऐसा व्यक्ति , जिसने अपने कार्यकाल के पहले साल में अमेरिका के चेहरे पर लगे बदनुमा दागों को धोने की कोशिशें की थीं और पूरी दुनिया को यह सन्देश देने की कोशिश की थी कि अमेरिका जैसे हठीले , गर्वीले और दुनिया को अपने इशारों पर नचाने की इच्छा रखने वाले राष्ट्र के अंदर भी अपनी गलतियों को सुधारने और उनसे सीख लेने का माद्दा है | एक ऐसा व्यक्ति , जो टर्की से लेकर त्रिनिदाद तक यह सन्देश दे रहा था कि वह अपने पूर्ववर्तियों से इस लिहाज से अलग है कि उसके अंदर राष्ट्र के प्रति गहन जिम्मेदारी के साथ साथ विश्व के नागरिक होने के दायित्व का बोध भी था |

पर , यह बराक हुसैन ओबामा , जो मुम्बई के रास्ते भारत आया और जिसने आते ही दस अरब डालर का माल भारत को बेचा , जिसने बच्चों के साथ मय पत्नी नृत्य किया , जिसने मुम्बई में आतंकीयों के शिकार लोगों को श्रद्धांजली दी और फिर सेंट जेवियर्स की क्षात्रा के सवाल के जबाब में न केवल भारत और पाकिस्तान को एक ही तराजू पर तोल दिया बल्कि पाकिस्तान में स्थायित्व भारत के नौजवानों के भी हित में है , यह भी कहा , वह ओबामा निश्चित रूप से नहीं था , जिसने दो वर्ष पहले अमरीका का राष्ट्रपति पद संभालते समय अमेरिका के बाहर भी करोड़ों लोगों के दिल में खुशनुमा ख्याल पैदा किये थे | दिल्ली पहुंचते ही ओबामा का असली चरित्र बाहर आ गया | दुनिया के सबसे शक्तिशाली राष्ट्र के राष्ट्राध्यक्ष होने के गुमान को प्रदर्शित करने वाला चरित्र | दिल्ली के अंदर हैदराबाद हाऊस में हुई पत्रकार वार्ता के बाद ओबामा ने जिस तरह मनमोहनसिंह की पीठ थपथपाई , वह क्या प्रदर्शित करता है ? इस थपथपाहट से मनमोहनसिंह भले ही गदगद हो गए हों , लेकिन , भारत की अमेरिका परास्त लाबी को छोड़कर , शेष करोड़ों भारतीयों को यह थपथपाहट काटों से कम नहीं चुभी होगी | यही वह क्षण था जब मुझे बराक हुसैन ओबामा का चेहरा पहचाना हुआ लगा | लगा यही तो बुश है | यही क्लिंटन , यही कार्टर ,यही आईजनहावर है | हमारे देश की यह राष्ट्रीय विडम्बना है कि देश में राष्ट्रीय शर्म नहीं है | यदि है भी तो उसे राष्ट्रीय नहीं कह सकते , क्योंकि वह केवल आम  देशवासियों के पास है ,राजनेताओं के पास नहीं |

 अरुण कान्त शुक्ला "आदित्य"  

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