इसमें छिपी है सीख ...
रामदेव जी का सत्याग्रह आज अपने हश्र को प्राप्त हो गया | निश्चित रूप से रामदेव के उन अनुयायियों के लिये यह एक सदमें से कम नहीं है , जो उनके योगा करतबों के चलते , यह विश्वास कर बैठे थे कि पूंजीवादी , अन्यतम शोषणकारी व्यवस्था के जबड़े से रामदेव अपना अभीष्ट छीनकर ले आयेंगे |
आज से करीब दो-तीन वर्ष पूर्व रामदेव ने एक त्रिदिवसीय सम्मलेन हरिद्वार में किया था , जिसके शायद आख़िरी दिन उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ एक सेमीनार रखा था | उस सम्मलेन में देश के अनेक बुद्धिजीवियों , पत्रकारों और राजनेताओं को बोलने के लिये बुलाया गया था | मुझे याद है , उस सम्मेलन में प्रसिद्ध स्तम्भकार वेदप्रताप वैदिक ने बोलते हुए कहा था कि बाबा को राजनीति से दूर रहना चाहिये | ऐसा ही उन्होंने कुछ दिनों पूर्व भी कहा , जब रामदेव जी पूरे जोश खरोश के साथ अपने तथाकथित सत्याग्रह का प्रचार करने में लगे थे | पर , जब व्यक्ति खुद को प्राप्त प्रशंसा और समर्थन से आत्ममुग्ध हो जाता है और उसकी गणना में वह स्वयं को औरों से श्रेष्ट ठहरा लेता है तो उसे किसी की सलाह याद नहीं रहती | रामदेव को भी यह याद नहीं रही |
रामदेव के सत्याग्रह का यही हश्र होना था | इसमें दुःखद यही रहा कि उनकी नासमझी का नतीजा , उनके भोले अनुयायिओं को भुगतना पड़ा , जो यह समझ बैठे थे कि योगाचार्य निडर हैं और एक लंबे समय तक अनशन को वे झेल जायेंगे | पर , जैसा कि पता चला है कि वे बीच के एक दो दिनों को छोड़कर , लगातार नीबूं पानी , शहद के साथ ले रहे थे | अनशन के पांचवें दिन से ही उनका स्वास्थ्य , उनका साथ छोड़ने लगा |
अपने जिस सत्याग्रह को वे अहिंसक बता रहे थे , वह कभी भी अहिंसक नहीं रहा | जिस भाषा का उपयोग उन्होंने किया और जैसी धमकियां वो सरकार को दे रहे थे , कोई भी गांधी की अहिंसा की अवधारणा को तनिक भी जानने वाला , उसे हिंसक ही कहेगा | इसकी पराकाष्टा हरिद्वार में हुई , जब उन्होंने ग्यारह हजार लोगों की फ़ौज तैयार करने की योजना सामने रखी | जिस देश की जनता , पहले ही नक्सलवाद , उल्फा उग्रवादियों और आतंकवाद से परेशान है , उसे , बाबा का योगाआतंकवाद भेंट करना , शायद ही किसी को पसंद आया हो |
जिस तरह से वे बीजेपी और आरएसस के चंगुल में फंसे दिखे , वह भी उनके उद्देश्यों और मंसूबों को उजागर करता था | खास बात कि उनके अनुसार , वे आम लोगों की लड़ाई लड़ रहे थे | पर , रामलीला मैदान में उन्होंने भारत के NRI भाईयों के लिये तालियाँ बजवाईं |
जूस पीने के बाद , उनके सहयोगी बालकृष्ण ने एक लिखित वक्तव्य पढ़ते हुए कहा कि रामदेव इस प्रण के साथ अनशन छोड़ रहे हैं कि वे इस सत्याग्रह को आख़िरी सांस तक चलाएंगे | वे क्या करेंगे , ये तो वे ही जानें , पर हमारी इच्छा तो यही है कि वे अपने पुराने प्रोफेशन में वापस हो जाएँ , इस देश के लिये वही उनका सबसे बड़ा उपकार होगा | समाज में परिवर्तन बाबाओं के चौन्चलों से और उनके अनुयायियों के उग्र तेवरों से नहीं , बल्कि , जनता के संघर्षों से आते हैं | बहरहाल , इसमें छिपी है सीख देशवासियों के लिये कि उन्हें ऐसे बाबाओं और धर्म की आड़ में राजनीति करने वाली ताकतों को पहचानना चाहिये और उनसे दूर रहना चाहिये |
अरुण कान्त शुक्ला
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