Tuesday, May 7, 2024

इस देश में पढ़े लिखे होने का एक ही मतलब रह गया है, प्रत्येक गलत के आगे सर झुकाओ और पढ़े लिखे होने का सबूत दो

 

इस देश में पढ़े लिखे होने का एक ही मतलब रह गया है, प्रत्येक गलत के आगे सर झुकाओ और पढ़े लिखे होने का सबूत दो

कारण...

मैं व मेरी पत्नी रायपुर नगर उत्तर लोकसभा क्षेत्र के निवासी हैं व अनेक विधानसभा, लोकसभा चुनावों में उपरोक्त मतदान केंद्र में मत देते आये हैं| इस बार भी हम हमेशा की तरह मतदान करने उपरोक्त केंद्र में पहुंचे| वहां पहुंचकर ज्ञात हुआ कि मेरा नाम तो सरल क्रमांक 913 पर है पर मेरी पत्नी, सरल क्रमांक 914, के नाम के उपर Deleted का ठप्पा लगा है| जबकि वह जीवित भी हैं और न ही हमारे पते में कोई परिवर्तन हुआ है| हम आधार कार्ड और मतदाता पहचान पत्र दोनों लेकर गये थे| वहां उपस्थित और बाद में आये कोई भी अधिकारी मेरी पत्नी को मत डालने की स्वीकृति तो दूर की बात है, यह बताने को भी तैयार नहीं थे कि उसका नाम, नलिनी शुक्ला, सरल क्रमांक 914, बूथ क्रमांक 113, किस तरह और किस कारण से डिलीट किया गया है| बाद में मेरी बात श्रीमान कलेक्टर महोदय से फोन पर मेरे ही प्रयासों से हुई, जिसमें उन्होंने वोट डलवाने में तो असमर्थता दिखाई पर हुई असुविधा के लिए खेद प्रगट किया|

एक नागरिक को भी वंचित कर संपादित चुनाव प्रक्रिया अधूरी और अवैध ही मानी जानी चाहिए...

प्रश्न यह है कि विधानसभा और लोकसभा के लिए होने वाले इन चुनावों को लोकतंत्र का पर्व, मत देने को नागरिक का सर्वोच्च अधिकार और न जाने कितनी उपमाओं के साथ आम लोगों के समक्ष रखा जाता है| वहीं एक बेसिरपैर के नियम के जरिये नागरिक को उस अधिकार से वंचित भी किया जाता है| मतदाता पत्र या जिसे वोटर आई डी कहते हैं, नागरिक घर में स्वयम नहीं बनाता| यह निर्वाचन आयोग के द्वारा ही पूरी तसल्ली के बाद दिया जाता है| नागरिक की पहचान के लिए आधार कार्ड व अनेक उपाय हैं, जो वह लेकर ही मतदान केंद्र पहुँचता है| जब उसका नाम वोटर लिस्ट में है, भले ही किसी की भी गलती ( नागरिक की नहीं) की वजह से उस पर डिलीट का ठप्पा लग गया हो, पर यदि नागरिक अपने मौजूद होने के पर्याप्त सबूत दे रहा है तो उसे मताधिकार से वंचित करना न केवल गलत है, उस बूथ के बाकी चुनाव पर भी सवालिया निशान है| एक नागरिक को भी वंचित कर संपादित चुनाव प्रक्रिया अधूरी और अवैध ही मानी जानी चाहिए| इस मामले में मैंने भी विरोध के तौर पर अपने मत का प्रयोग नहीं किया|

आश्चर्यजनक बात....

मैंने करीब 3 घंटे मतदान केंद्र पर बिताये और राजनीतिक दलों के मान्य कार्यकर्ताओं/नेताओं, बीएलओ से लेकर बूथ क्रमांक 113 की पीठासीन अधिकारी व उसके द्वारा सम्पर्क कराये गए निर्वाचन प्रक्रिया से जुड़े सभी अधिकारियों, जो वहां पहुंचे, से बात की पर उनकी लकीर की फ़कीर चाल देखकर अचंभित ही रहा| सभी के समझाने का एक ही आशय निकल कर सामने आता था कि एक बार डिलीट का ठप्पा लगने के बाद कोई भी ( उन्होंने भगवान का नाम नहीं लिया पर आशय वही था) कुछ नहीं कर पायेगा| पर, मुझे आश्चर्यजनक बात बाद में पता चली| कलेक्टर महोदय से भी नकारात्मक उत्तर पाकर, मस्तिष्क में बोझ और सर तथा दिल में दर्द लिये, हम पति- पत्नी उदास, खीझे हुए लगभग 4 बजे के बाद घर वापस लौटकर आ गये| कुछ समय पश्चात, शायद लगभग साढ़े पांच बजे एक फोन मेरे मोबाईल पर कलेक्ट्रेट से आया और किसी अधिकारी ने ( उन्होंने अपना नाम बताया था पर मुझे तनाव के कारण स्मरण नहीं है, मुझसे पूरा मामला जानना चाहा| मैंने उन्हें पूरी विस्तृत जानकारी दी| उन्होंने बताया कि मेरी पत्नी की नाम रिपीट( दो जगह) होने की वजह से डिलीट हुआ है| मैंने उनसे कहा कि फिर कृपया बताएं कि दूसरी वह कौन सी जगह है, जहां उनका नाम दर्ज है| उन्होंने कुछ देर जांच करने के बाद बताया कि किसी अन्य जगह तो दिखाई नहीं दे रहा है| आप एक काम करें कि 4 जून के बाद तहसील कार्यालय जाकर उनका नाम पुन: जुडवा लें| यदि कोई दिक्कत हो तो उनसे कलेक्ट्रेट में सम्पर्क कर लें| हाँ, यदि मैं चाहूँ तो शिकायत कर सकता हूँ और उसके बाद जिसकी भी गलती होगी, उसे सजा मिलेगी| मैंने उनसे कहा कि उससे मुझे क्या फायदा होगा? मेरी पत्नी जो अधिकार छीन लिया गया, क्या वह पुन: वापस होगा? या सरकार (चुनाव आयोग) के पास इस बात की राजनेताओं के समान कोई गारंटी है कि वह हमें अगले लोकसभा चुनाव तक किसी भी हालत में जीवित ( हम दोनों क्रमश: 73 तथा 74+ हैं) रखेगी और फिर हम अपने अधिकार का प्रयोग कर पायेंगे?

हाँ, लगभग तीन घंटे के दौरान पीठासीन अधिकारी से लेकर जितने अन्य अधिकारी मतदान केंद्र पहुंचे, सभी ने एक बात सामान रूप से कही ..आप तो सर पढ़े लिखे हैं..हमारी मजबूरी समझिये| इस देश में पढ़े लिखे होने का एक ही मतलब रह गया है, प्रत्येक गलत के आगे सर झुकाओ और पढ़े लिखे होने का सबूत दो|

अरुण कान्त शुक्ला

7 मई 2024