Friday, February 10, 2023

बजट के बारे में : बजट से इतर

बजट के बारे में बजट से इतर बात यह है कि देश के आम लोगों की प्राथमिकताएं नीति आयोग में बैठे अर्थशास्त्रियों और वित्त मंत्रालय में बैठे उन उच्च अधिकारियों की प्राथमिकताओं से एकदम भिन्न हैं जो साल दर साल यह तय करते हैं कि सरकार के पास रुपया आयेगा कहाँ से और रुपया बटेगा किसे? याद करें कि बजट के ठीक पहले जब खबरिया चैनल्स के एंकर हाथ में माईक लेकर बाजार हाट में लोगों से पूछ रहे थे कि वे बजट में क्या चाहते हैं तो गृहणियां मंहगाई कम होनी चाहिए बोल रही थीं तो युवा रोजगार के अवसर बढ़ने चाहिये कह रहे थे वृद्धजनों को दवाईयों की कीमतों और स्वास्थ्य सेवाओं के सस्ते होने की फ़िक्र थी पर, क्या यह बजट जिसे अपने भाषण के दौरान वित्तमंत्री निर्मला सीथारमण ने अनेक बार अमृतकाल का पहला सप्तऋषी बजट कहकर पेश किया गया है, आम लोगों की उन प्राथमिकताओं को पूरा करता है?

वित्तमंत्री ने जिन वस्तुओं के सस्ते होने की संभावना व्यक्त की है उनमें से किसी का भी आम आदमी के रोजमर्रा जीवन से कोई सीधा संबंध नहीं है मसलन, मोबाईल पार्ट्स और टेलीविजन के ओपन सेल के कलपुर्जों पर कस्टम ड्यूटी घटाई गयी है टीव्ही पर आयात शुल्क कम होगा, उसके सस्ते होने की संभावना है रबर पर ड्यूटी कम होने से खिलौने, साईकिल, आटोमोबाईल सस्ते हो सकते हैं वैसे यदि अभी तक के बजटों में जब कभी भी इस तरह कस्टम ड्यूटी या आयात शुल्क या अन्य कोई भी टेक्स कम करके चीजों के सस्ते होने का सब्जबाग दिखाया गया है तो अनुभव तो यही कहता है कि वह सब्जबाग ही होता है और उसका कोई भी लाभ उपभोक्ता तक नहीं पहुँच पाता है स्वयं नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार हमारे देश की 25% आबादी गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करती है याने हर चौथा भारतीय गरीब हैपर, समय समय पर आने वाली वैश्विक रिपोर्ट और नीति आयोग की रिपोर्ट की बात को छोड़ भी दें तो स्वयं हमारे प्रधानमंत्री गर्व से बार बार बताते हैं कि वे देश के 81 करोड़ गरीब लोगों को मुफ्त 5 किलो राशन पिछले 2 साल से दे रहे हैं और यह विश्व की सबसे बड़ी खाद्यान सहायता योजना है अब जिस महंगाई के कम होने की राह यह देख रहे होंगे, उसे तो इस बजट में छुआ भी नहीं गया है

भारत में मध्यम वर्ग कितना विशाल है, जिसका उदाहरण अनेक बार प्रधानमंत्री और वित्तमंत्री सहित सरकार से लगभग सभी जनता से दो चार होने वाले नुमाइंदे करते रहते हैं और उसके बारे में कितनी चिंतित यह सरकार है, वह भी जान लेते हैं पिछले वर्ष लगभग मई माह के अंत में ‘प्रधानमंत्री को सलाह देने वाली आर्थिक सलाहकार परिषद’ के अध्यक्ष बिबेक देबरॉय ‘भारत में असमानता की दशा’ पर एक रिपोर्ट प्रधानमंत्री कार्यालय को सौंपी थीरिपोर्ट के अनुसार यदि कोई भारतीय 25000/- रुपया प्रति माह या वर्ष भर में 3 लाख रुपया कमा रहा है तो वह उन 10% भारतीयों में से एक है जो उच्चतम वेतन अर्जित करते हैं इसका सीधा मतलब था कि देश के 90% लोग 25000/- रूपये प्रतिमाह भी नहीं कमाते हैं यह रिपोर्ट लोगों के आय विवरण, बाजार में श्रम की उपयोगिता, लोगों के स्वास्थ्य, शिक्षा और घरेलू सुविधाओं और स्थिति के आधार पर समाज में कितनी आर्थिक असमानता मौजूद है उस पर न केवल प्रकाश डालती है, अंत में यह भी बताती है कि वर्ष 2017-2018 से 2019-2020 के मध्य किस तरह समाज के उच्चतम 1% की आय 15% बड़ी, जबकि उसी दौरान नीचे के 10% की आय 1% कम हुई रिपोर्ट में अंत में सुझाव दिया गया था कि इस असमानता को कम करने के लिये एक शहरी रोजगार योजना और सार्वभौम आधार आय योजना का लाना बहुत जरुरी है

रोजगार सृजन वह क्षेत्र है जिस पर वित्तमंत्री को सबसे अधिक फोकस इसलिए करना चाहिए था कि बीता वर्ष बेरोजगार युवाओं के आंदोलनों से भरा हुआ वर्ष थारेलवे में भर्तियों को लेकर हुआ आन्दोलन और अग्निवीर योजना के नाम पर युवाओं के साथ रोजगार के नाम पर किया गया आन्दोलन भुला देने योग्य घटनाएं नहीं हैं यद्यपि जनवरी 2023 में बेरोजगारी की दर कम हुई है पर 7% से अधिक की यह दर उस देश के लिये बहुत अधिक है जहां के लिये देश के प्रधानमंत्री कहते नहीं थकते हैं कि यह दुनिया की सबसे बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है और विश्वगुरु बनने की राह पर है पर, अफ़सोस की बात है की निर्मला जी ने रोजगार सृजन के मुद्दे सरकारी और निजी दोनों क्षेत्र द्वारा किये जा रहे अवेहलनापूर्ण रवैय्ये पर कोई चिंता जाहिर करने का उपक्रम भी नहीं किया ये जो रोजगार मेला भरवाकर टीव्ही में प्रधानमंत्री से रोजगार पत्र देने का इवेंट आयोजित किया जा रहा है, उससे रोजगार के संकट को नहीं निपटा जा सकता है बजट में पूंजीगत व्यय 7.5 लाख से बढ़ाकर 10 लाख किया गया है इसे वित्तमंत्री ने वर्तमान बेरोजगारी संकट के लिये ब्रम्हास्त्र बताया है सरकार इससे कौशल प्रशिक्षण केंद्र खोलकर युवाओं को विश्वस्तरीय प्रशिक्षण देने का इरादा रखती हैमुझे याद है जब अटल जी प्रधानमंत्री थे तो उन्होंने एक बार कहा था कि हम युवाओं को प्रशिक्षित करेंगे और उन्हें देश में रोजगार नहीं मिलता है तो वे विदेश में रोजगार प्राप्त करने योग्य होंगे यदि इन कौशल केन्द्रों की स्थापना का उद्देश्य युवाओं की अंतर्राष्ट्रीय पहुँच बढ़ाने के लिये है तो हम पहले से प्रतिभा पलायन से पीड़ित मुल्क में प्रतिभाओं को पलायन का एक और मौक़ा देने की कगार पर बैठ रहे हैं

यह भी एक संयोग ही था कि वित्तमंत्री के बजट के हलुआ वितरण के लगभग 13 दिनों पूर्व ही ऑक्सफैम की वह बहुचर्चित रिपोर्ट सरवाईवल ऑफ़ रिचेस्ट आई जिसमें पुरे विश्व के साथ भारत के अमीरों और भारत में व्याप्त असमानता पर भी बात की गई थी मैं उसके विस्तार में न जाकर केवल वही बात यहाँ उद्धृत करूंगा, जिसमें ऑक्सफैम के सीईओ अमिताभ बेहर ने बताया था कि भारत में हाशिये पर रहने वाले दलित, आदिवासी, मुस्लिम, और महिलाएं भारत के अमीरों के अस्तित्व को सुनिश्चित करते हैं बेहर ने भारत के वित्तमंत्री से अनुरोध करते हुए कहा था कि “ गरीब अमीरों की तुलना में अनुपातहीन रूप से उच्च करों का भुगतान कर रहे हैं, आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं पर अधिक खर्च कर रहे हैं समय आ गया है कि अमीरों पर कर लगाया जाये और यह सुनिश्चित किया जाये कि वे अपने उचित हिस्से का भुगतान करेंइसके लिये बेहर ने केंद्रीय वित्तमंत्री से धन कर और उत्तराधिकार कर जैसे प्रगतिशील कर उपायों को लागू करने की आग्रह किया जो असमानता को कम करने में ऐतिहासिक रूप से प्रभावी साबित हो चुके हैं

यह तय है की निर्मला जी किसी भी विदेशी रिपोर्ट और सलाह को तवज्जो नहीं देतीं| यह दीगर बात है की उसी सम्मेलन में पहले दिन प्रधानमंत्री अपना उद्बोधन देकर भारत युवाओं को कौशल प्रदान करने के लिये और उद्यमी बनाने के लिये क्या कर रहा है, विस्तार से बताते हैंबहरहाल, जिस पूंजीगत व्यय को बढ़ाकर रोजगार सृजन के लिये निर्मला जी ब्रम्हास्त्र बता रही हैं, उसका एक बड़ा हिस्सा महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी एक्ट में 29400 करोड़, ग्रामीण विकास आबंटन से 5113 करोड़, खाद्यान सबसीडी में 89,844 करोड़, बच्चों के मध्यान्ह भोजन और प्रधानमंत्री पोषण योजना में 1200 करोड़, प्रधानमंत्री किसान सम्मान योजना में 8000 करोड़ रुपये कम करके जुटाया गया है अर्थशास्त्री प्रभात पटनायक बताते हैं कि वित्तमंत्री ने चार बुनियादी बातों को नजरअंदाज कर दिया पहली, यदि बिलकुल उतनी ही राशी, यदि सामाजिक क्षेत्र पर खर्च की जाये, तो उतनी ही मात्रा में रोजगार सृजन होगादूसरी, यह राशी यदि सामाजिक क्षेत्र पर खर्च की जाती तो सीधे तौर पर कामकाजी लोगों के लिये फायदेमंद होती, जिनके मामले में, जैसा कि संसद में बजट से एक दिन पूर्व पेश किये गये आर्थिक सर्वेक्षण में स्वीकार किया गया है कि वास्तविक मजदूरी में गिरावट आई है तीसरा, सरकार जो राशी सामाजिक क्षेत्र में खर्च करती है उसका गुणात्मक प्रभाव प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मेहनतकश की क्रयशक्ति को बढाता है, यह सार्वजनिक पूंजीगत व्यय के प्रभावों से बहुत अधिक है बेरोजगारी पर प्रभाव डालने के लिये पूंजीगत व्यय अधिक करना होता है जबकि उतनी ही राशी सामाजिक क्षेत्र में खर्च करने से अधिक प्रभाव हासिल होता है और चौथा, पूंजीगत व्यय का अधिकाँश हिस्सा पूंजीगत वस्तुओं के आयात के रूप में “बाहर” निकल जाता है, जिससे कामकाजी लोगों की खपत सामर्थ्य में कोइ बढ़ोत्तरी नहीं होती

जैसा की वित्तमंत्री बजट पेश करने के काफी पहले से कहती रहीं कि वे मध्यमवर्ग से आती हैं और उसका ख्याल रखना उनकी प्राथमिकता में है, आयकर के नये रिजाईम में टेक्स से छूट की सीमा 7 लाख रूपये कर दी गई है ऐसी ही मेहरबानी पुरानी योजना वालों के लिये क्यों नहीं की, यह शोध का विषय है एक बात जो वित्तमंत्री ने नहीं बताई और उनसे पूछने का मन करता है कि 7 लाख से मात्र कुछ हजार, मान लीजिये 10,000 रूपये आय अधिक होने पर वह व्यक्ति मध्यम वर्ग से इतना बाहर हो जाता है कि उसकी आय पर कर लगना 3 लाख रूपये से शुरू हो जाएगा बहरहाल, 3 लाख से ऊपर कमाने वाले 10% में अडानी साहब भी हैं तो अम्बानी साहब भी, वे तो खुश हैं, बाकी 90% के लिये राष्ट्रवाद से लेकर हिज़ाब तक अनेक झुनझुने हैं, जिनसे वे बहल जाते हैं

 अरुण कान्त शुक्ला             
10 फरवरी 2023
 
     
 
 
 
 
 
 
 
 
  
 

 

 

Monday, January 30, 2023

भारत जोड़ो यात्रा और बीबीसी के वृतचित्र

आज राहुल गांधी की 7 सितम्बर को कन्याकुमारी से प्रारंभ हुई भारत जोड़ो यात्रा श्रीनगर में कांग्रेस कार्यालय के समक्ष राष्ट्रीय ध्वज फहराने के साथ समाप्त हो गयी है। यात्रा राहुल गांधी ने अपने दिवंगत पिता राजीव गांधी, स्वामी विवेकानंद और तमिल कवी त्रिवल्लुवर को श्रद्धांजलि देने के बाद शुरू की थी। यात्रा के शुरू होने के साथ ही प्रथम आक्रमण उनकी अमेठी की प्रतिद्वंदी स्मृति ईरानी के आक्रमण के साथ हुआ था। जो बाद में हमेशा की तरह स्मृति ईरानी का बड़बोलापन ही निकला। उसके बाद तो वे सारे आक्रमण हुए, जिनका उल्लेख करना यहाँ मेरा मकसद कतई नहीं है।आज जब यह यात्रा समाप्त हो रही है इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि राहुल गांधी की जो छवि, जैसे भी, निर्मित की गयी थी अथवा बन गयी थी, उसमें एक जबरदस्त सकारात्मक परिवर्तन दिखाई पड़ रहा है।सफ़ेद टीशर्ट में सादे और दाढ़ी वाली यात्रा कर रहे राहुल गांधी, उस राहुल गांधी से नितांत अलग दिख रहे हैं, जिनके बारे में सूना जाता था की वे कांग्रेस अध्यक्ष होते हुए भी या लोकसभा का सत्र चलने के दौरान भी अचानक छुट्टियां मनाने बीच बीच में जाने कहाँ विदेश चले जाते हैं।

 

 भारत जोड़ो यात्रा का समापन एक ऐसे समय हो रहा है जो प्रधानमंत्री मोदी के लिये सहज नहीं है बीबीसी के उस वृत्त चित्र का दूसरा भाग भी यूनाईटेड किंगडम में रिलीज हो चुका है जो भारत सरकार ने देश में बेन कर रखी है और जिसका प्रदर्शन अनेक जगह करने के जुर्म में पुलिस विश्विद्यालयों सहित अनेक जगह छात्रों तथा नागरिकों की धरपकड़ में जुटी है हालांकि, जैसा की मीडिया या जानकारों से पता चल रहा है कि दोनों वृतचित्रों में ऐसा कुछ भी नहीं है जो पहले से ही सार्वजनिक डोमेन में नहीं था जब भी 2002 के गुजरात के दंगों की बात होती है तो बीजेपी 1984 के दिल्ली दंगों की याद दिलाती है इससे 2002 के दंगे न्यायपूर्ण नहीं हो जाते यह एक अलग बात है, पर, क्या बीजेपी स्वयं उन दंगों को कभी भुलाने के लिये तत्पर हुई है, इस पर हमेशा प्रश्नवाचक चिन्ह लगा रहा है वस्तुत: जब भी मौक़ा लगा, बीजेपी के बड़े नेताओं ने अप्रत्यक्ष रूप से ही सही उन दंगों की याद लोगों को दिलाई है, फिर चाहे वह समाज के एक वर्ग को धमकाने और बहुसंख्यक से वोट बटोरने के लिये ही क्यों न हो 


वास्तव में 2002 की यादों को दोहराना बीजेपी को कभी भी राजनीतिक रूप से हानिकारक लगा ही नहीं फिर बीजीपी को बीबीसी के उन दो वृतचित्रों से डर क्यों लगा? दोनों वृतचित्रों के खिलाफ बीजेपी सरकार की भारी-भरकम प्रतिक्रिया से, जेएनयू में की गयी बिजली कट से, जामिया में दंगा पुलिस भेजने के कार्य से और अजमेर में राजस्थान के केन्द्रीय विश्वविद्यालय में 10 छात्रों को निलंबित करने की प्रतिक्रिया से स्पष्ट प्रतीत होता है कि उस वृतचित्र के प्रदर्शन से केंद्र सरकार ने न केवल तिलामलाई हुई है बल्कि स्वयं को घिरा भी महसूस कर रही है


समझा जा सकता है कि जब प्रधानमंत्री सहित बीजेपी का हर छोटा-बड़ा नेता भारत के जी-20  के अध्यक्ष बन जाने के गुणगान करने में लगा हो तथा इस हर वर्ष किसी अन्य देश के बारी बारी से मिल जाने वाली अध्यक्षता को देश के लोगों को भारत के विश्वगुरु बन जाने के रास्ते पर पड़ने वाले कदम के रूप में देखने के लिये प्रेरित कर रहे हों तब आवश्यकता ऐसी बातों को होती है जो इन सब की चापलूसी में कही जाये, उस समय बीबीसी के वृत्त चित्र, राहुल की यात्रा का पूर्ण होना, लाल चौक पर राष्ट्रीय ध्वज लहराना कतई दिल खुश करने वाली या बीजेपी के मनोबल को बढ़ाने वाली बातें तो नहीं हैं संपूर्ण यात्रा के दौरान और अब उसके समापन पर राहुल गांधी के व्यक्तित्व में आये परिवर्तन उन सबने महसूस तो किये ही हैं जो यात्रा पर थोड़ी भी नजर रख रहे थेउनके अंदर की विनम्रता बाहर आई है, उन्हें अपने वक्तव्यों पर और अधिक नियंत्रण हासिल हुआ है और वे एक मोहब्बत से भरे ऐसे इंसान के रूप में खुद को पेश क्र सके हैं जो हंसता है, गले मिलता है और जन से जुड़ने की इच्छा रखता है यह उस छवि के ठीक विपरीत है जो राहुल से ज्यादा समय देकर और मेहनत करके प्रधानमंत्री ने बनाई है वे एक अधिनायकवादी व्यक्ति के रूप में दिखते हैं जिनका सिर केवल अपने आदेश के पालन के लिये इशारा करते ही दिखता है 


यहाँ मेरा उद्देश्य भारत जोड़ो यात्रा से कांग्रेस को कितना लाभ होगा या बीजेपी को कितना नुकसान होगा, उस पर चर्चा करना नहीं हैमैं केवल यह बताना चाहता हूँ कि राहुल गांधी के लिये चुनौती तो अभी शुरू हुई हैये चुनौतियां दो हैं प्रथम, आज मोदी जी की जो कसी हुई पकड़ देश की संस्थाओं तथा देश के एक वर्ग में है, उसमें किसी भी मोदी विरोधी संदेश अथवा लहर को गढ़ने का मतलब उन संस्थाओं और उनके समर्थकों की नाराजगी को आमंत्रित करना है दूसरी चुनौती यह है कि बीबीसी के दोनों वृतचित्र केवल यह नहीं बताते कि वर्ष 2002 में क्या हुआ थावे यह भी बताते हैं कि मोदी जी ने अपने राजनीतिक जीवन की गुजरात में कहाँ से शुरुवात की थी और उसे किस तरह उसका पुनर्निर्माण किया और उसे किस तरह पुन: ढाला हैकहने का तात्पर्य है कि 2024 के चुनावी समर में एक बदले हुए राहुल गांधी का मुकाबला उस विरोधी से होगा जिसे 2002 से अपने व्यक्तित्व को परिस्थिति अनुसार बदलते रहने में महारत हासिल है

 
अरुण कान्त शुक्ला 
30 जनवरी 2023