Wednesday, March 16, 2011

नाभकीय ऊर्जा , शैतान के हाथों भलाई का सौदा -


नाभकीय ऊर्जा , शैतान के हाथों भलाई का सौदा –
इतिहास से सबक नहीं लेने वालों के सामने इतिहास खुद को दोहरा देता है | जो लोग रूस के चेर्नोबिल , थ्री-माईल आईसलेंड जैसी दुर्घटनाओं को भुलाकर , ऊर्जा से संबंधित सारी समस्याओं के लिए नाभकीय शक्ति को ही रामबाण हल बता रहे थे , उनके लिए जापान में , फुकुशिमा स्थित रिएक्टरों में हुए विस्फोटों के बाद रेडिएशन का फैलाव एक सबक के रूप में सामने आया है | पिछले साठ वर्षों में केवल रेडिएशन से संबंधित गंभीर किस्म के एक दर्जन से ज्यादा हादसे हो चुके हैं , जिनमें मरने वालों और प्रभावितों की संख्या लाखों में है | भारत और अमेरिका के मध्य हुए नाभकीय समझौते के समय जोरशोर से समझाया जा रहा था कि नाभकीय ऊर्जा से भारत की तेल और कोयले जैसे ऊर्जा के स्रोतों पर निर्भरता ही नहीं खत्म होगी बल्कि विशेषकर बिजली उत्पादन के मामले में भारत आत्मनिर्भर हो जाएगा | पर , पिछली दुर्घटनाओं और जापान में हो रहे वर्त्तमान रिसाव से होने वाले नुकसान की भयंकरता सोचने को मजबूर करती है कि नाभकीय ऊर्जा का इतने बड़े पैमाने पर इस्तेमाल दरअसल शैतान के हाथों भलाई करवाने का सौदा है , जो कभी भी अभिशाप में बदल सकता है |
यह सच है कि हाल फिलहाल विश्व में नाभकीय ऊर्जा के इस्तेमाल के प्रति रुझान में तेजी आई है और अनेक देशों , विशेषकर , विकासशील और अविकसित देशों की सरकारों , वैज्ञानिकों और उद्योगपतियों ने अपने अपने देशों में नाभकीय उर्जा के इस्तेमाल की तरफ ठोस कदम बढ़ाये हैं | विश्व के जाने माने पर्यावरणविद और भौतिकशास्त्री , विशेषकर , ग्लोबल वार्मिंग को ध्यान में रखते हुए , नाभकीय ऊर्जा के इस्तेमाल के पक्ष में तनकर खड़े हुए हैं | भारत में भी तात्कालीन राष्ट्रपति अब्दुल कलाम से लेकर अनेक अन्य नामचीन हस्तियाँ नाभकीय ऊर्जा को प्राप्त करने के लिए अमेरिका के साथ किये गये समझौते के पक्ष में थीं | ऐसे लोग , चाहे वे भारत में हों या दुनिया में कहीं भी , आज भी नाभकीय ऊर्जा के इस्तेमाल के पक्ष में ही हैं और उनके पास मजबूत दलील है कि फुकुशिमा में यह सब कुछ हुआ क्योंकि वहाँ इतना बड़ा भूकंप आया जो इससे पहले कभी नहीं देखा गया और इस भूकंप के कारण ज्ञात इतिहास की सबसे बड़ी सुनामी आयी , जिसने अकल्पनीय विनाश मचाया | यदि यह नहीं होता तो फुकुशिमा का हादसा भी नहीं होता | भविष्य में इतनी बड़ी प्राकृतिक आपदा आने पर भी ऐसा नहीं होगा | इसे आश्वस्त कराने के लिए वे कह रहे हैं कि फुकुशिमा के रिएक्टर बहुत पुरानी तकनीक और डिजाइन के थे और भविष्य में एहतियात बरतते हुए ऐसे न्यूक्लियर प्लांट बनाए जा सकते हैं , जो इतने बड़े भूकंपों और सुनामी को झेल पायेंगे | ऐसे तर्कों पर , जो केवल सम्भावनाओं पर ही टिके हों , कोई विवाद न करते हुए , केवल प्रार्थना ही की जा सकती है कि ऐसा ही हो | किन्तु , इसे कैसे अनदेखा करेंगे कि जापान के टेक्नीशियन्स और प्लांट में काम करने वाले अन्य स्टाफ , इस महाविपत्ति को अधिक फ़ैलने से रोकने के लिये जो जद्दोजहद कर रहे हैं , उसमें , उन्हें नाममात्र की भी सफलता नहीं मिल रही है और विश्व के न्यूक्लियर विशेषज्ञ सांस रोककर कामना कर रहे है कि विनाश कम से कम हो | यही दो बातें , यह जताने के लिए काफी हैं कि नाभकीय विखंडन की तकनीकि बहुत विषैली है और इसकी स्वयं अकेले ही विनाश करने की क्षमता असीमित है , जिस पर काबू पाना अत्यंत दुरूह कार्य है |
पृथ्वी हमेशा से तेज भूगर्भीय हलचलों , ज्वालामुखियों , और प्रचंड मौसमों के साथ अपनी धुरी पर घूमती है | मनुष्य ने विज्ञान और तकनीकि का विकास करके पृथ्वी के अंदर और बाहर होने वाली इन हलचलों का अनुमान लगाने की प्रक्रियाओं को विकसित किया है , पर रोजमर्रा जीवन का अनुभव बताता  है कि पृथ्वी की इन हलचलों का केवल पूर्वानुमान लगाया जा सकता है  और सबसे सटीक गणनाएं भी मात्र संभावनाएं हैं , वे अटल नहीं हैं | ऐसे कम्प्युटर विकसित हुए हैं , जो ठीक होने की अकल्पनीय हद तक जाकर परिणाम देते हैं , किन्तु , इन परिणामों का विश्लेषण भी अंततः मानव मस्तिष्क को ही करना होता है | जब कोई संकट खडा होता है , विशेषज्ञों को न केवल ठीक गणना करनी होती है बल्कि उनके ऊपर शीघ्र निर्णय पर पहुँचने का दबाव भी बेतहाशा होता है | सामान्यतः वे गल्ती नहीं करते , किन्तु जब उनसे गल्ती होती है , तब !
न्यूक्लियर विखंडन के साथ समस्या यह है कि एक बार दुर्घटना होने पर जो कुछ दांव पर लगता है , वह मानव का वर्तमान ही नहीं होता बल्कि आने वाली अनेक पीढ़ीयों का जीवन भी दांव पर लग जाता है | इसमें कोई शक नहीं कि ऐसे न्यूक्लियर पावर प्लांट बनाए जा सकते है , जिनमें चेर्नोबिल या जापान जैसी दुर्घटनाओं की संभावनाएं ना के बराबर हों | किन्तु , क्या ऐसे ना का मतलब पूर्ण सुरक्षा हो सकता है ? अभी तक जितने बड़े बड़े भूकंप और सुनामी आये हैं , जिनमें लाखों लोगों की मृत्यु हुई है और करोड़ों बेघरबार हुए हैं , बताते हैं कि हम इन्हें भी ठीक समय पर नहीं पढ़ पाए थे | और जब सवाल रेडिएशन के संकट का आता है तो विनाश सोचने की शक्ति से बाहर तक अकल्पनीय होता है | यही कारण है कि जर्मनी में रविवार , 13 मार्च को हजारों लोगों ने स्वतःस्फूर्त परमाणु – विरोधी प्रदर्शन किया है और वहाँ के चांसलर एंजेला मेर्केल ने फौरी तौर पर परमाणु कार्यक्रमों पर रोक लगाई है | विश्व के जनांदोलनों , पर्यावरणविदों और विशेषज्ञों ने परमाणु ऊर्जा पर रोक लगाने की मांग की है | जर्मनी के चांसलर ने इस पर विचार करने के लिए एक सेमीनार बुलाया है |
भारत अभी न्यूक्लियर एनर्जी उत्पादित करने के रास्ते पर है | अमेरिका से समझौते के बाद , जिन परमाणु केन्द्रों को विकसित करने की तैय्यारी भारत में चल रही है , उनमें से अधिकतर समुद्र के किनारे ही बनेंगे | बंगाल में हरिपुर , आंध्र में कोवाडा , गुजरात में मीठीविरडी और महाराष्ट्र में जैतपुर | महाराष्ट्र में रत्नागिरी जिले के किसान , मछुआरे और आम नागरिक पिछले चार वर्षों से जैतापुर परियोजना के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं | पर , सरकार दमनकारी रवैय्या अपनाए है | हमारे देश में न्यूक्लियर ऊर्जा के बारे में समझ कम है और प्रतिबद्धता ज्यादा है क्योंकि सरकार ने अमेरिका के साथ समझौता किया है , इसलिए उसका बचाव करना ही होगा , चाहे उसका परिणाम झेलने की ताकत देश के अंदर हो या न हो | इसका उदाहरण है कि जब सोमवार , 14 मार्च को सुबह जापान से दूसरे विस्फोट की खबर आयी थी , उसी दिन , भारतीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के भूतपूर्व अध्यक्ष डा. अनिल काकोडकर महाराष्ट्र की विधानसभा में जैतापुर अणु ऊर्जा योजना को जरूरी ठहरा रहे थे | दूसरी तरफ , जर्मनी में वहाँ के चांसलर कह रहे थे कि हम असंभावनाओं के आधार पर आगे नहीं बढ़ सकते | न्यूक्लियर विखंडन से प्राप्त बिजली सस्ती पड़ेगी या महंगी इस लेख का विषय नहीं है क्योंकि वह सस्ती भी पड़े तो मानवता के विनाश की कीमत पर वो मंहगी ही है |
अंत में , यह हो सकता है कि न्यूक्लियर एनर्जी समर्थक लाबी भारी पड़े और लोगों को यह विश्वास  दिलाए कि न्यूक्लियर प्लांट की नयी जेनरेशन में सभी सुधार कर लिए जायेंगे और वो दावे के साथ  कहें कि उन्होंने फुकुशिमा के सभी सबक सीख लिए हैं किन्तु वे स्वयं को तथा विश्व समुदाय को मूर्ख बना रहे होंगे क्योंकि फुकुशिमा का सबसे बड़ा सबक यह है कि असंभाव्य का मतलब असंभव नहीं होता है | प्रकृति से पैदा होने वाली या मानव जनित किसी भी तरह की कोई भी घटना , गल्ती , न्यूक्लियर विखंडन रिएक्टरों के साथ मिलकर या न्यूक्लियर विखंडन स्वयं अकेले महाविनाश कर सकता है , इसे हमेशा याद रखना होगा | विश्व की ऊर्जा समस्याओं से निपटने के लिए रामबाण बतायी जा रही न्यूक्लियर एनर्जी शैतान के हाथों भलाई का सौदा है |
अरुण कान्त शुक्ला                   

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