Tuesday, September 28, 2010

राजा नंद का संकट मगध का संकट नहीं -


 

कॉमनवेल्थ गेम्स फेडरेशन के सीईओ माईक हूपर का बयान कि उन्हें भारत की इज्जत से कोई मतलब नहीं है , उनका काम तो खेलों को सही तरीके से आयोजित कराना है , भारत के शासक वर्ग के सम्मान और प्रतिष्ठा का ताबूत बन चुके कॉमनवेल्थ खेलों पर आखरी कील है | जितना सख्त हूपर का बयान है , उतनी ही लीचड़ और बेबस प्रतिक्रिया दिल्ली की मुख्य मंत्री शीला दीक्षित ने दी कि हूपर साहब का बयान अनुचित और दुखद है | मैंने हूपर के उस बयान को कई बार पढ़ा , पर मुझे उसमें कुछ भी अनुचित या दुखद नहीं लगा | हूपर भारत में कॉमनवेल्थ गेम्स के आयोजन की देख रेख करने आये हैं और उनकी पूरी जिम्मेदारी और जबाबदेही कॉमनवेल्थ गेम्स फेडरेशन के प्रति है ,न कि भारत की प्रतिष्ठा बचाने की | यदि मनमोहन सिंह एंड कंपनी , शीला दीक्षित या कलमाड़ी एंड कंपनी की समझ यह रही कि ब्रिटेन की रानी के दूत उनकी (उनके भारत की) इज्जत रखेंगे तो इसे इनके दिमाग के दिवालियापन के अलावा और क्या कहा जायेगा ? मनमोहनसिंह , जो अब खेलों के आयोजन से सीधे जुड़ चुके हैं , को अभी तक यह तो समझ में आ गया होगा कि जी-20 , डबल्यूटीओ में बुश , ओबामा से अर्थशास्त्री होने का तमगा लेकर पीठ थपथपवाना अलग बात है और देश के अंदर भ्रष्टाचार रहित , पारदर्शी , जनोभिमुखी प्रशासन देना अलग बात है |

वैसे , वे सभी लोग जो भारत के शासक वर्ग की हरकतों में , भारत सरकार के कामों में और भारत के राजनीतिक नेताओं के हास्यास्पद क्रियाकलापों में से हास्य रस निकाल कर खुश रहने का मंत्र ढूँढ चुके हैं , पिछले लगभग दो माह से सुखी होंगे | मैं स्वयं भी उन्हीं सुखी इंसानों में से एक हूँ | दरअसल , कॉमनवेल्थ के खेलों के संकट हमारा संकट है ही नहीं और इन खेलों के साथ देश की प्रतिष्ठा या राष्ट्रप्रेम जैसी किसी भावना को जोड़ना कोरी भावुकता के अतिरिक्त और कुछ नहीं है | चाणक्य जब राजा नंद के शासन को उखाड़ने की चेष्टा में लगा था , नंद का महामंत्री अमात्य राक्षस ने चाणक्य को उन संकटों के बारे में बताया जिनसे नंद का राज घिरा हुआ था | पूरी बात सुनने के बाद चाणक्य ने अमात्य से कहा कि राजा नंद के संकट मगध ( मगध की प्रजा ) के संकट नहीं हैं | चाणक्य की उपरोक्त उक्ति भारत सरकार और भारत के शासक वर्ग के ऊपर पूरी तरह फिट बैठती है |

आज भारत के शासक वर्ग के सामने मौजूद संकट , देशवासियों के समक्ष मौजूद संकटों से एकदम जुदा हैं और कोढ़ में खाज की तरह शासक वर्ग राष्ट्रभक्ति , राष्ट्रीय सम्मान के नारों की आड़ में देशवासियों को तो अपने संकटों को बौझ उठाने कह रहा है लेकिन खुद देशवासियों के समक्ष मौजूद संकटों का संज्ञान भी नहीं लेना चाहता | कॉमनवेल्थ खेलों के सफल आयोजन से अगर देश की अंतर्राष्ट्रीय छवि में कोई इजाफा हुआ भी तो वह देशवासियों के लिये शेयर मार्केट में हुए इजाफे के समान ही होगा , जिसका आम लोगों के संकटों से कोई भी वास्ता नहीं होता | जो सरकार घोषित रूप से इन खेलों पर 40 हजार करोड़ रुपये खर्च कर रही है , जिसमें से हजारों करोड़ भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ चुका है और न जाने कितना चढ़ेगा , उसी सरकार के मुखिया को हम कुछ दिन पहले सुप्रीम कोर्ट को गरियाते देख चुके हैं क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने जो अनाज सड़ रहा है , उसे गरीबों को बांटने के लिये कहा था | इन खेलों की सफल मेज़बानी करके अपनी अंतर्राष्ट्रीय छवि में रौनक लाने के सपने देखने वाली सरकार को क्या कभी यह अपमान जनक लगता है कि उसके देश की एक अरब की आबादी में से आधी याने करीब पचास करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे हैं याने उन्हें रोज भर पेट भोजन भी नहीं मिलता | भोजन याने क्या ? हलवा , पूड़ी , माल , मिठाई या फल , फूल नहीं सिर्फ दाल रोटी और जिस दिन तेल घी में बघरी सब्जी हो गई तो उनकी दिवाली हो जाती है | रोज मंहगाई कम करने के लिये रिजर्व बैंक के जरिये बाजार में तरलता ( पैसे का प्रसार ) कम करने के उपाय करने वाली सरकार ने पचास हजार करोड़ रुपये खर्च करने के पहले एक दफे भी नहीं सोचा कि आर्थिक तौर पर पिछड़े लोगों को किन मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है | उनकी आमदनी का ज्यादातर हिस्सा खाने पीने की चीजों में खर्च हो जाता है | उनकी जेब में दवाई दारु के लिये भी पैसा नहीं बचाता है | यहाँ तक कि जरूरी भोजन याने दाल और सब्जियां उनकी पहुँच से दूर हो गईं हैं | इसीलिये मैं कहता हूँ , शासक वर्ग की चिंताएं अलग हैं और हमारी चिंताएं अलग | शासक वर्ग के संकट अलग हैं और हमारे संकट अलग | आपका संकट , हमारा मनोरंजन कर सकता है , हम उसे हमारा संकट नहीं बनाएंगे | आपका संकट राजा नंद का संकट है , वह मगध का संकट नहीं है |

अरुण कान्त शुक्ला "आदित्य"

1 comment:

गजेन्द्र सिंह said...

शानदार प्रस्तुति .......

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