Saturday, September 18, 2010

आम जनता दंगा फसाद नहीं करती --


अयोध्या की विवादित भूमि पर 24 सितम्बर को आने वाले फैसले को टालने के लिये दी गई याचिका के खारिज होने के साथ यह पक्का हो गया है कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ 24 सितम्बर को ही मामले में अपना फैसला सुना देगी | यदि इस बात को सत्य माना जाये कि प्रत्येक देश और समाज को काल चक्र अतीत में की गई गल्तियों को सुधारने का अवसर अवश्य प्रदान करता है तो भारतीय समाज और विशेषकर हमारे
देश के राजनेताओं , संतों और इमामों के समक्ष यह अवसर इसी 24 सितम्बर को उपस्थित होने जा रहा है , जब विवादित भूमि पर अदालत का फैसला आयेगा |


यह देखते हुए कि अयोध्या विवाद भारत के हिन्दू और मुस्लिम समुदायों के बीच तनाव का एक प्रमुख मुद्दा रहा है , और देश की राजनीति को इसने न केवल प्रभावित किया है
बल्कि हमारे देश के राजकीय पक्षों ने इसका बेजा राजनीतिक इस्तेमाल भी अपने राजनीतिक स्वार्थों की पूर्ति के लिये किया है , एक चुनौती हमारे सामने मौजूद है कि पुनः ऐसा न हो पाये | अदालत के निर्णय के संबंध
में मुस्लिम पक्ष ने हमेशा कहा है कि वह अदालत का फैसला मानेगा , लेकिन विश्व हिन्दु परिषद का एक तबका यह कहता आया है कि यह उनकी धार्मिक आस्था का मामला है , जिसका फैसला अदालत नहीं कर सकती | भारतीय जनता पार्टी और विश्व हिन्दू परिषद के एक तबके सहित कई हिंदू संगठनों की मांग रही है कि सरकार संसद में कानून बनाकर विवादित जमीन उसे एक विशाल राम मंदिर बनाने के लिये दे दे , लेकिन देश के बहुसंख्यक लोगों के इससे सहमत नहीं होने के चलते भाजपा को भी सत्ता में आने के लिये इस मुद्दे को छोड़ना पड़ा था | यद्यपि आरएसएस प्रमुख मोहन राव भागवत कानून के दायरे में ही प्रतिक्रिया व्यक्त करने और शांति बनाये रखने का आश्वासन दे रहे हैं लेकिन उसके सहयोगी विश्व हिन्दू परिषद के तेवर कड़े हो रहे हैं | माहौल फिर से तनाव पूर्ण है | कानून व्यवस्था बिगड़ने की आशंका जताई जा रही है | आम देशवासी सहमे हुए हैं | यह सब तब है जब इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ के फैसले के बाद सभी पक्षों के लिये आगे और कानूनी कार्यवाही करने के रास्ते खुले हुए हैं |


बहरहाल ,एक बात , अयोध्या मामले के चारों पक्षकारों सुन्नी वक्फ बोर्ड , निर्मोही अखाड़ा , राम जन्म भूमि न्यास ,गोपाल सिंह व्यास के साथ साथ आरएसएस और उसके सहयोगी संगठनों तथा भाजपा और कांग्रेस
के नेताओं को समझना पड़ेगी , कि , पिछ्ले तीन दशकों में घटी तीन बड़ी घटनाओं , सिख विरोधी दंगे , बाबरी मस्जिद विध्वंस और गुजरात का नरसंहार , ने भारतीय समाज के मानस को तोड़कर रख दिया है | राष्ट्रीय एकता , सर्व धर्म समभाव , हजार से ज्यादा वर्षों की साझा विरासत जैसे नारों से समाज के अन्दर पैदा हुए अलगाव को ढाका तो जा सकता है लेकिन जरा सी हलचल से उस अलगाव के घाव फिर हरे हो जाते हैं | उपरोक्त घटनाओं में केवल निरीह देशवासी ही नहीं मारे गये थे , बल्कि अहिंसा का पाठ पढ़ाने वाले भारतीय दर्शन की भी हत्या हुई थी | समाज की उस सामूहिक सोच को नकारा गया था , जो किसी भी समाज की समरसता और समग्र विकास के लिये अत्यंत आवश्यक होती है | प्रसिद्ध दार्शनिक रामचंद्र गांधी के शब्दों में बाबरी मस्जिद पर हमला मस्जिद पर नहीं बल्कि भारतीय सोच पर था | सत्ता प्राप्त करने की राजनीति में सामाजिक अलगाव फैलाने से प्राप्त होने वाले फायदे कितने तुच्छ और अल्पकालिक होते हैं , यह सभी देख चुके हैं | घ्रणा और द्वेश की जमीन पर राजनीतिक फसल हमेशा नहीं लहलहा सकती , इस सबक को हमेशा याद रखने की जरुरत है |


यह फैसला एक ऐसे समय आ रहा है , जब देश में संकटकालीन परिस्तिथि मौजूद है | एक तरफ कश्मीर का मामला है , जहाँ अलगाव वादी ताकतें पूर्ण उग्रता के साथ सक्रिय हैं तो दूसरी ओर कामन वेल्थ के खेल हैं , जिनकी तैय्यारियों पर अनेक प्रश्न खड़े हैं और आने वाले अतिथियों और खिलाड़ियों की सुरक्षा का बहुत बड़ा दायित्व केंद्र और दिल्ली की सरकार पर है | मामले की नजाकत को देखते हुए ही केंद्र सरकार ने सभी लोगों से शांति बनाये रखने की अपील की है | पर कांग्रेस को भी साम्प्रदायिकता और धर्मनिरपेक्षता के सवाल पर अपने समझौता वादी रुख में सुधार करना होगा | कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस दोनो ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में वायदा किया था कि सत्ता में आने पर वे श्रीक्रष्ण आयोग की रिपोर्ट
को लागू करेंगे लेकिन ऐसा हुआ नहीं | रिपोर्ट में जिन अफसरों और नेताओं की आलोचना हुई , उनमें से किसी को भी सजा नहीं हुई | यदि ऐसा हुआ होता तो आज जैसे अन्देशे वाली स्थिति का निर्माण नहीं हुआ होता |


हमारे देश के राजनेताओं के सोच का दायरा इतना संकीर्ण और सत्तालोलुप है कि वे समझ ही नहीं पाते कि सिख विरोधी दंगे , बाबरी मस्जिद विध्वंस और गुजरात नर संहार जैसी घटनाएं समाज के लोगों की मानसिकता पर कितना विपरीत प्रभाव डालती हैं | पिछले तीन दशकों में भारतीय समाज में जिस बढ़ी हुई असहनशीलता और क्रूरता को हम देख रहे हैं , उसमें पिछले तीन दशकों के दौरान अपनाई गईं आर्थिक नीतियों के परिणामस्वरुप पैदा हुए असंतोष के अलावा उपरोक्त तीनो घटनाओं का भी बड़ा हाथ है | स्वयं जस्टिस श्रीकृष्ण ने हाल ही में दिये गये एक साक्षात्कार में यह पूछने पर कि कमीशन की बैठकों के दौरान जब लोग अपनी कहानियाँ बयान करते थे तो एक इंसान के नाते आप पर क्या प्रभाव पड़ा , बताया कि , इस कमीशन में काम करने से पहले मैं बहुत शांत व्यक्ति था | मुझे कभी गुस्सा नहीं आता था| कमीशन में लोगों की कहानियाँ सुनते सुनते मुझे बहुत गुस्सा आने लगा , मैं तेज मिजाज का हो गया | ये मेरे परिवार का कहना है | जस्टिस श्रीकृष्ण ने आगे कहा कि अगर आप सुनते रहें कि इसे जला दिया गया , उसे मार दिया गया , इससे मानसिक व्यथा होती है और इसके
अंतरंग परिणाम होते हैं |


जब एक जस्टिस जिसे रोज तनावपूर्ण परिस्थितियों से गुजरना पड़ता है , उद्वेलित हो जाता है तो साधारण जनों के उपर पड़े प्रभाव का संकेंद्रित सामाजिक प्रभाव तथा उसके सामाजिक परिणाम कितने घातक होते होंगे , समझा जा सकता है | देश के राजनियकों को सोचना पड़ेगा कि वे किस तरह का भारतीय समाज चाहते हैं | आम जनता दंगा फसाद में नहीं पड़ती , उनको भड़काने वाले लोग होते हैं , जो उन्हें उद्वेलित करते हैं | जब व्यक्ति भड़क जाता है तो भटक भी जाता है | उम्मीद करें इस बार ऐसा न हो |


अरुण कान्त शुक्ला

1 comment:

संगीता पुरी said...

हिंदी ब्‍लॉग जगत में आपका स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!