Monday, July 5, 2010

Left Right Left

लेफ्ट राईट लेफ्ट

पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों में व्रद्धि की खिलाफत करने के लिये विपक्ष के द्वारा की जा रही कवायद का असर यह हुआ है कि 5 जुलाई को विपक्ष के दोनों धड़ों वाम और गैर-बीजेपी विपक्ष तथा बीजेपी-एनडीए विपक्ष ने हड़ताल की घोषणा की है | बिना इस बात पर चर्चा किये की विपक्ष के अन्दर विपक्ष के इस तौर तरीके ने हमेशा सत्तापक्ष की कितनी मदद की है , मैं चर्चा इस बात पर करुंगा कि भारतीय राजनीति में आज विपक्ष जैसा कोई पक्ष है भी क्या ?

एनडीए के सयोंजक शरद यादव तालमेल की इस कार्रवाई को अदभुत बताते हैं | उनके अनुसार जेपी आन्दोलन और 1989 में विपक्ष की एकता के बाद विपक्ष की एकजुटता की यह सबसे बड़ी कवायद है | विपक्ष के दोनों धड़ों के अनुसार इस कार्रवाई से सरकार की यह गलतफहमी दूर हो जायेगी कि विपक्ष बंटा हुआ है और सरकार जो चाहे मनमानी कर सकती है | मेरे अनुसार ईधन के बढ़े दामों के खिलाफ यह संयुक्त कार्रवाई विपक्ष की एकता कायम करने की कवायद कम और विपक्ष में बैठे राजनीतिक दलों के अस्तित्व को बतौर विपक्षी दिखाने की कार्रवाई ज्यादा है | यूपीए अपने दूसरे चक्र में जुलाई '2009 में और चालू वित्तीय वर्ष का बजट पेश करते समय पेट्रो उत्पादों के दाम बढ़ा चुका है | बजट सत्र के दौरान सीपीएम के द्वारा लाये गये कट मोशन पर वोटिंग के समय मुलायम और लालू ने अंतिम समय में ' साम्प्रदायिक ताकतों को मदद मिलेगी ' कहते हुए संसद से बहिर्गमन किया था , हम देख चुके हैं | ऐसा ही हमने तब भी देखा था , जब नाभकीय समझौते के सवाल पर वाम मोर्चे ने यूपीए प्रथम से समर्थन वापस लिया था |

नरसिम्हाराव की अल्पमत सरकार से लेकर अभी तक का इतिहास कांग्रेसी सरकारों को पांच वर्षों तक चलते ही रहने देने का रहा है | इस मध्य कांग्रेस के समर्थन से बनी सयुंक्त मोर्चा की सरकार 18 माह में ही कांग्रेस द्वारा समर्थन वापस लेने के कारण गिरी , तो दूसरी बार भाजपा गठबंधन की सरकार जयललिता के समर्थन वापस लेने के कारण गिरी | यह प्रयोग असफल हुए एक दीगर बात है ,पर , भारतीय राजनीति की दो बातें स्पष्ट होकर सामने आयीं , पहली , कि आजादी के बाद देश में हुए असमान आर्थिक विकास के फलस्वरुप पैदा हुई कुंठा से भारतीय राजनीति में उभर कर आये छोटे क्षेत्रिय दल देश के दो बड़े राजनीतिक दलों के समर्थन के बिना सरकार नहीं बना सकते और तुरंत चुनाव नहीं होने देने की मजबूरी के चलते वे समर्थन दे भी दें तो सरकार पांच वर्ष नहीं चलने देंगे | इसका फौरी फायदा भाजपा को मिला , जिससे अनेक ऐसे क्षेत्रिय दल जुडे , जो कुछ समय पहले तक भाजपा को साम्प्रदायिक कहकर उससे परहेज करते थे | भाजपानीत एनडीए की सरकार ऐसी ही सरकार थी जो पूरे पाँच साल चलती यदि अति उत्साह में उसने थोड़ा पहले चुनाव नहीं कराये होते |

इस गठबंधन की राजनीति का नतीजा यह हुआ है कि पिछले दस वर्षों में करीब करीब सभी छोटे क्षेत्रिय राजनैतिक दल भाजपा या कांग्रेस के साथ केंद्र की सरकार में शामिल हो चुके हैं | दूसरी बात जो स्पष्ट हुई कि नरसिम्हाराव की सरकार में वित्तमंत्री रहते हुए जिस उदारीकृत अर्थव्यवस्था और भूमंडलीकरण की नींव मनमोहनसिंह रखी , बाद में आने वाली सभी सरकारें उन्हीं वर्ल्ड बैंक , आईएमएफ और डब्ल्यूटीओ निर्धारित नीतियों पर ही चलती रहीं | सभी सरकारों ने पीडीएस के दायरे को कम किया | उसके जरिये मिलने वाले राशन की मात्रा में कटौती की और पीडीएस के जरिये वितरित होने वाले अनाज के मूल्यों में व्रद्धि की | खाद , बीज , पेट्रो उत्पाद पर सबसीडी कम की | सरकारी और सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारयों की छटनी की तथा रोजगारों का ठेकाकरण किया |लघु उद्योगों में निवेश की सीमा बढ़ाकर उसमें बडे उद्योगपतियों के प्रवेश का मार्ग साफ किया | आयात पर से बंदिशें हटाकर विदेशी खिलाडियों के लिए भारत का बाजार खोला | पेटेंट एक्ट बनाया | कुल मिलाकर आर्थिक नीतियों के सवाल पर सत्तापक्ष और विपक्ष में कोई अंतर नहीं रहा | या , यूं भी कह सकते हैं विपक्ष , विपक्ष ही नहीं रहा | वाम मोर्चे को इस लिहाज से अपवाद में रखा जा सकता है कि उसके पास एक वैकल्पिक आर्थिक नीति थी और उसने कांग्रेस (भाजपा के साथ तो सवाल ही नहीं पैदा होता) के साथ सरकार में शामिल होने से परहेज किया , पर वर्ष 2004 में यूपीए की सरकार उसी के समर्थन से बनी थी और यह समर्थन चार साल से ज्यादा की अवधि तक यूपीए को मिलता भी रहा|

अब जरा ईधन के बढ़े मूल्यों के खिलाफ विपक्ष के भारत बंद के शोर का जायजा भी लें | भाजपानीत एनडीए गठबंधन ने 19 मार्च 1998 से 22 मई 2004 के बीच केंद्र की सरकार में रहते हुए छै वर्षों में पेट्रोल के मूल्यों में 10 रुपये 87 पैसे , डीजल में 11 रुपये 49 पैसे ,रसोई गैस में 105 रुपये 60 पैसे तथा केरोसिन में 6 रुपये की बढ़ोत्तरी की थी | अभी यूपीए के साथ जुड़ी , संपन्न मंत्रियों की बैठक से अनुपस्थित होकर विरोध जताने वाली रेल मंत्री ममता बनर्जी तब भाजपानीत एनडीए सरकार के साथ थीं | अभी गैरभाजापाई विपक्ष का हिस्सा बने चंद्राबाबू नायडू तब एनडीए सरकार के साथ थे |एक बात और पेट्रो उत्पादों को अंतरराष्ट्रीय बाजार के मूल्यों से जोड़ने की शुरुवात करने का श्रेय भाजपानीत एनडीए सरकार को ही है | वर्ष 2002 में भाजपाई एनडीए सरकार ने अमेरिका , डब्ल्यूटीओ और तेल कंपनियों के दबाव में पेट्रोलियम सेक्टर को सरकारी नियंत्रण से मुक्त किया था | एनडीए के समय से ही पेट्रो उत्पादों पर से सबसीडी कम करने की शुरुवात भी हुई थी | वर्ष 2004 में आसन्न आम चुनावों के मद्देनजर 2003 में भाजपा ने इस कदम को वापस लिया था | कांग्रेसनीत यूपीए ने पिछले छै वर्षों में पेट्रोल के मूल्यों में 17 रुपये 72 पैसे ,डीजल में 18 रुप्ये 36 पैसे , रसोई गैस में 103 रुपये 65 पैसे तथा केरोसिन में 3 रुपये की व्रद्धि की है | राष्ट्रीय जनता दल , लोकतांत्रिक जनशक्ति पार्टी यूपीए के प्रथम चरण में मंत्रीमंडल में थे और 4 वर्षों से ज्यादा तक वाममोर्चे का यूपीए को समर्थन था | सपा ने भी कांग्रेसनीत यूपीए को प्रथम चरण में भी समर्थन दिया था और अभी भी दिया हुआ है | राष्ट्रीय जनता दल का समर्थन यूपीए को आज भी प्राप्त है | एनडीए ने पेट्रोलियम सेक्टर को फ्री किया था और यूपीए उस परंपरा को आगे बढ़ा रही है | किसे विपक्ष कहें ?

याने , सरकारें बदलती रहीं पर नीतियां वही रहीं | साम्प्रदायिकता , जातिवाद जैसे कुछ सरोकारों को छोड़ दिया जाये तो आर्थिक मुद्दों , विदेश नीति , अमेरिका के साथ सहयोग जैसे मुद्दों पर , कम्युनिस्टों को छोड़कर किसी का कोई विरोध नही है | जो भी लड़ाई है , कुर्सी पर बैठकर मलाई खाने की है | भारत के गैरसंपन्न तबके के लिये चल रहा बुरा वक्त और भी बुरा होने वाला है | विडम्बना यह है कि भारत के आम आदमी के पक्ष में जो अपने आप को दिखाना चाहते हैं , वो भी उसके विपक्ष में ही हैं | यह सारा लेफ्ट राईट लेफ्ट अपने राजनीतिक वजूद को अलग दिखाने की कवायद से अधिक कुछ नहीं है |


 

अरुण कान्त शुक्ला

1 comment:

आचार्य उदय said...

सुन्दर लेखन।