Tuesday, November 1, 2022

‘भारतमाता’ जवाहरलाल नेहरू की नजर में

 

‘भारतमाता’ जवाहरलाल नेहरू की नजर में

देश एक ज़मीन का टुकड़ा ही नहीं है। कोई भी इलाका, कितना भी, खूबसूरत और हराभरा  हो अगर वह वीराना है तो देश कैसा? देश बनता है उसके नागरिकों से। पर नागरिकों की भीड़ से नहीं। एक सुगठित, सुव्यवस्थित, स्वस्थ, सानन्द और सुखी समाज से। एक उन्नत, प्रगतिशील और सुखी समाज, एक उदात्त चिंतन परम्परा और समरस की भावना से ही गढ़ा जा सकता है । देश को अगर मातृ रूप में हम स्वीकार करते  है, तो निःसंदेह, हम सब उस माँ की संताने हैं। स्वाधीनता संग्राम के ज्ञात अज्ञात नायकों ने न केवल एक ब्रिटिश मुक्त आज़ाद भारत की कल्पना की थी, बल्कि उन्होंने एक ऐसे भारत का सपना भी देखा थाजिसमे हम ज्ञान विज्ञान के सभी अंगों में प्रगति करते हुये, एक स्वस्थ और सुखी समाज के रूप में विकसित हों। इन नायकों की कल्पना और आज की जमीनी हकीकत का आत्मावलोकन कर खुद ही हम देखें कि हम कहां पहुंच गए हैं और किस ओर जा रहे हैं। भारत माता की जय बोलने के पहले यह याद रखा जाना जरूरी है कि, दुनिया मे कोई माँ, अपने दीन हीन, विपन्न, और झगड़ते हुए संतानों को देखकर सुखी नही रह सकती है। इस मायने में नेहरु की दृष्टि में भारतमाता की छवि एकदम साफ़ थी। भारत की विविधता को, उसमें कितने वर्ग, धर्म, वंश, जातियां, कौमें हैं और कितनी सांस्कृतिक विकास की धारायें और चरण हैं, नेहरु ने इसे बहुत गहराई से समझा था। प्रस्तुत है उनके आलेखों की माला ‘भारत एक खोज’ से एक अंश कि ‘भारत माता’ से नेहरु क्या आशय रखते थे।    


"अक्सर, जब मैं एक बैठक से दूसरी बैठक , एक जगह से दूसरी जगह , लोगों से मिलने के लिये जाता था, तो अपने श्रोताओं को हमारे इस इंडिया, इस हिंदुस्तान, जिसका नाम भारत भी है के बारे में बताता था भारत, यह नाम हमारे समाज के पौराणिक पूर्वज के नाम पर रखा गया है मैं शहरों में ऐसा कदाचित ही करता होउंगा, कारण साधारण है क्योंकि शहरों के लोग कुछ ज़्यादा सयाने होते हैं और दुसरे ही किस्म की  बातें सुनना पसंद करते हैं पर हमारी ग्रामीण जनता का देखने का दायरा थोड़ा सीमित होता है उन्हें मैं अपने इस महान देश के बारे में, जिसकी स्वतंत्रता के लिये हम लड़ रहे हैं, बताता हूँ उन्हें बताता हूँ कि कैसे इसका हर हिस्सा अलग है , फिर भी यह सारा भारत है पूर्व से पश्चिम तक, उत्तर से दक्षिण तक, यहाँ के किसानों की समस्याएं एक जैसी हैं उन्हें स्वराज की बात बताता हूँ, जो सबके लिये होगा, हर हिस्से के लिये होगा| मैं उन्हें बताता हूँ कि खैबर दर्रे से लेकर कन्याकुमारी तक की यात्राओं में हमारे किसान मुझसे एक जैसे सवाल पूछते हैं उनकी परेशानियां एक जैसी हैं गरीबी, कर्जे, निहित स्वार्थ, सूदखोर, भारी लगान और करों की दरें, पुलिस की ज्यादती, यह सब उस ढाँचे में समाया हुआ है जो विदेशी सत्ता द्वारा हमारे ऊपर थोपा हुआ है और जिससे सबको छुटकारा मिलना ही चाहिये| मेरी कोशिश रहती है की वे भारत को संपूर्णता में समझें कुछ अंशों में वे सारी दुनिया को भी समझें, जिसका हम हिस्सा हैं

मैं चीनस्पेनअबीसीनियामध्य यूरोपमिस्र और पश्चिम एशिया के मुल्कों में चल रहे संघर्षों की बात करता हूंमैं उन्हें रूस और अमेरिका में हुए परिवर्तनों की बात बताता हूंयह काम आसान नहीं हैपर इतना मुश्किल भी नहीं हैं जितना मुश्किल मैं समझ रहा थाहमारे प्राचीन महाकाव्योंहमारी पौराणिक कथाओं और किंवदंतियों से वे भली भांति परिचित हैं और इसके माध्यम से वे अपने देश को जानते समझते हैं| हर जगह मुझे ऐसे लोग भी मिले जो तीर्थयात्रा के लिये देश के चारो कोनों तक जा चुके थे या उनमें पुराने सैनिक भी थे जिन्होंने प्रथम विश्व युद्ध या अन्य अभियानों में विदेशी भागों में सेवा की थी। यहां तक ​​कि विदेशों के बारे में मेरे संदर्भों से भी उन्हें 'तीस के दशक' के महान मंदी के परिणामों की याद आई जिसने उन्हें घर वापस लाई थी।

कभी ऐसा भी होता कि जब मैं किसी जलसे में पहुंचता, तो मेरा स्वागत भारत माता की जयनारे के साथ किया जाता। मैं लोगों से पूछ बैठता कि इस नारे से उनका क्या मतलब है? यह भारत माता कौन है जिसकी वे जय चाहते हैं। मेरे सवाल से उन्हें कुतूहल और ताज्जुब होता और कुछ जवाब न सूझने पर वे एक दूसरे की तरफ या मेरी तरफ देखने लग जाते। आखिर एक हट्टे कट्टे जाट किसान ने जवाब दिया कि भारत माता से मतलब धरती से है। कौन सी धरती? उनके गांव की, जिले की या सूबे की या सारे हिंदुस्तान की?

इस तरह सवाल जवाब पर वे उकताकर कहते कि मैं ही बताऊँ। मैं इसकी कोशिश करता कि हिंदुस्तान वह सब कुछ है, जिसे उन्होंने समझ रखा है। लेकिन वह इससे भी बहुत ज्यादा है। हिंदुस्तान के नदी और पहाड़, जंगल और खेत, जो हमें अन्न देते हैं, ये सभी हमें अजीज हैं। लेकिन आखिरकार जिनकी गिनती है, वे हैं हिंदुस्तान के लोग, उनके और मेरे जैसे लोग, जो इस सारे देश में फैले हुए हैं। भारत माता दरअसल यही करोड़ों लोग हैं और भारत माता की जय से मतलब हुआ इन लोगों की जय। मैं उनसे कहता कि तुम इस भारत माता के अंश हो, एक तरह से तुम ही भारत माता हो और जैसे जैसे ये विचार उनके मन में बैठते, उनकी आंखों में चमक आ जाती, इस तरह मानो उन्होंने कोई बड़ी खोज कर ली हो।"

 

अरुण कान्त शुक्ला

1/11/2022              


 

      


      

 


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