Wednesday, November 12, 2014

निशांत की मौत के लिए कालेज प्रबंधन, लेक्चरार, प्रोफेसर्स, माँ-बाप सभी दोषी हैं -




 
रायगढ़ की घटना बुरी तरह बैचेन किये हुए है| रायगढ़ में आज एक चिकित्सा छात्र ने फांसी लगाकर अपनी जान दे दी| वाराणसी से आये उसके माता-पिता और अन्य रिश्तेदारों ने बताया कि मेडिकल कालेज के उसके सीनियर्स रेगिंग के नाम पर उसे बहुत परेशान कर रहे थे| निशांत उपाध्याय (मृतक) ने यह बात फेसबुक पर भी लिखी थी| रेगिंग शायद सबसे घिनोनी घटना है और इसकी पूरी जिम्मेदारी न केवल कालेज प्रशासन की है बल्कि कालेज के लेक्चरार, प्रोफेसर्स के साथ साथ  रेगिंग लेने वाले छत्रों के माँ-बाप और अन्य रिश्तेदारों की भी है, जो यदि चाहें तो अपने बच्चों को ऐसे कार्यों को करने से रोक सकते हैं, पर ऐसा करते नहीं हैं| वे इसे (रेगिंग को) भी शायद साधारण सी बुराई समझकर हंसी-खेल में लेने की वकालत करेंगे और रेगिंग लेने वाले अपने बच्चों के बचाव में खड़े होंगे| जबकि वास्तविकता यह है कि किसी भी कालेज में सभी सीनियर विद्यार्थी रेगिंग लेने से नहीं जुड़ते हैं| यह काम केवल उन खाते-पीते (अधिकाँश काली कमाई वाले नव धनाड्य) परिवारों के बच्चे करते हैं, जिन्हें मालूम है कि एक बार कालेज में भर्ती होने के बाद वे उनके बाप के पैसे की बदौलत डाक्टर या इंजीनियर बनकर ही निकलेंगे| याने दोष कालेज प्रशासन के साथ साथ पेरेंट्स का भी है जो अपने बच्चों को मेडिकल कालेज जैसे कालेजों में भर्ती कराने के बाद ये खोज खबर नहीं लेते कि उनकी औलाद कर क्या रही है और अपनी औलादों की हर नाजायज मांग पूरी करते रहते हैं|

करीब एक वर्ष पूर्व मोटर साईकिल पर स्टंट करने वाले युवाओं की दुर्घटना से होने वाली मौतों और गाड़ी तेज चलाने वाले युवाओं की होने वाली मौतों पर मैंने अफ़सोस व्यक्त करने के बजाय यह कहा था कि इन युवाओं की मौतों के जिम्मेदार उनके माँ-बाप हैं, जो उन्हें स्पोर्ट्स या अन्य तरह की गाड़ियां खरीदकर दे रहे हैं| इन्हें क़ानून में प्रावधान करके कड़ी से कड़ी सजा देना चाहिए(मेरा लेख-बेटा करेगा स्टंट डैडी जाएंगे जेल)| इतना ही नहीं, यदि कोई युवा तेज मोटर साईकिल या अन्य कोई व्हीकल चलाते पकड़ा जाता है या स्टंट करते पकड़ा जाता है तो उसके माँ-बाप को भी सजा देना चाहिए| तब अनेक लोगों को बहुत बुरा लगा था और मेरे उन विचारों का बहुत विरोध हुआ था|

दिल्ली में स्टंट करके भागते हुए जब एक युवा पोलिस की गोली से मारा गया तो मैंने पोलिस का समर्थन किया था| तब भी बहुत विरोध हुआ था| पर, जब इन युवाओं की तेज रफ़्तार की वजह से दुर्घटना होती है और अन्य किसी बच्चे-महिला या किसी अन्य की जान जाती है तब लोगों को इन्हीं युवाओं पर आपत्ति होने लगती है| जबकि इन युवाओं के गतिविधियों के लिए जितना जिम्मेदार युवा स्वयं हैं, उतने ही उनके माँ-बाप भी हैं जो उन्हें सामाजिक तौर समाज के प्रति जिम्मेदारी महसूस करके रहने की शिक्षा देने में असफल ही नहीं हैं, अपराध होने पर उन्हें बचाने भी आ जाते हैं और उन्हें बचाने में अपना पूरा रसूख और पैसा लगाते हैं| इसलिए सजा के हकदार युवाओं के माँ-बाप भी हैं| यही बात रेगिंग के मामले में लागू होती है| प्रत्येक माँ-बाप की जिम्मेदारी है कि वे अपने बच्चों को कालेज में प्रवेश दिलाने के समय सख्त हिदायत दें कि वह रेगिंग जैसी हरकत में शामिल न हो और इसका पता भी लगाएं कि उनका बेटा-बेटी ऐसी किसी गतिविधि में शामिल तो नहीं है| पर, ऐसा होता नहीं है, उल्टे यदि उन्हें पता चलता है कि उनका बेटा ऐसा कर रहा है तो वे खुश होते हैं कि उनके बच्चे का कालेज में अच्छा दबदबा है|

अभी कुछ दिन पूर्व मेरे बेटी-दामाद अपने बेटे के स्कूल पेरेंट्स मीटिंग में गए थे| आठवीं कक्षा में पढ़ने वाला मेरा नाती पढ़ने में अव्वल छात्र है पर माँ-बाप की इकलौती संतान होने के नाते प्रोटेक्टेड चाईल्ड है|  उसकी टीचर ने मेरे बेटी-दामाद से उसे थोड़ा चंट-चालाक बनाने की सिफारिश करते हुए कहा कि यह बहुत जरुरी है क्योंकि बड़े होकर वह कालेज में जाएगा और उसे रेगिंग जैसी घटना का सामना करना पडेगा| टीचर की सलाह बताती है कि रेगिंग एक अप्रत्यक्षत: सर्वविदित सर्वस्वीकृत बुराई बन चुकी है|

अब इसी बात का दूसरा पहलू देखें कि मेडिकल कालेज में पीएमटी जैसी परीक्षा को उतीर्ण करने के बाद एक छात्र प्रवेश पाता है और वहीं कुछ छात्र पैसे के बल पर प्रवेश पाते हैं| एक पढ़ाई लिखाई के प्रति गंभीर छात्र जरुरी नहीं कि रेगिंग से पैदा होने वाले मानसिक कष्ट या अपमान को सह ही पाए| वह घर वापस नहीं जाना चाहता क्योंकि उसके ऊपर अपने माँ-बाप की आशाओं-आकांक्षाओं और उनके द्वारा उसके ऊपर खर्च किये गए पैसे का बोझ है| वह तनावग्रस्त अवस्था में सुसाईड जैसा कदम उठाता है| यह स्पष्टत: आत्महत्या के लिए उकसाने वाला कार्य है और इसकी जिम्मेदारी रेगिंग लेने वाले छात्रों के साथ साथ कालेज प्रबंधन, वहां पढ़ाने वाले लेक्चरार, प्रोफेसरों के साथ साथ रेगिंग लेने वाले छात्रों के माँ-बाप की भी है| ऐसा हो ही नहीं सकता कि कालेज प्रबंधन, लेक्चरार, प्रोफेसर्स या माँ-बाप को इसके बारे में पता न हो| ये सभी दोषी हैं और इन सभी को सजा मिलनी चाहिए, वह भी फांसी, जैसी निशांत को मिली इनकी गैरजिम्मेदारी, लापरवाही और सामाजिक दायित्वों के प्रति उनके अज्ञान और उदासीनता के चलते| 

अरुण कान्त शुक्ला,
10 नवम्बर, 2014 

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