अहं, अक्खड़पन और अति
महत्वाकांक्षाओं की भेंट चढ़ा लोकपाल आंदोलन-
जीटीव्ही सहित देश के अनेक चैनल अब सर्वे कर
रहे हैं। जिस
मीडिया को टीम अन्ना कल तक कोस रही थी, वही चैनल अब टीम अन्ना की मेहरबानी से
टीआरपी बटोर रहे हैं।
देश का अब तक का सबसे बड़ा सर्वे हो रहा है। लोगों से कहा जा रहा है कि वो अन्ना टीम को
राजनीतिक पार्टी बनाना चाहिए या नहीं, इस पर अपनी राय हाँ या नहीं में दें। लोग दे भी रहे हैं और पूरी
संभावना इस बात की है कि कल शाम को अन्ना टीम के नींबू पानी पीने तक तीन चार लाख
लोग निकल आयें, जो समर्थन में मेसेज कर दें। कम हों तो भी चलेगा क्योंकि राजनीतिक विकल्प
देने का निर्णय तो हो ही चुका है। बस देखना यह है कि इस नए
राजनीतिक दल का नाम क्या होगा? दक्षिण भारत की तर्ज पर ऑल इंडिया एंटी करप्शन
अन्ना पार्टी या अन्ना पार्टी फॉर सिविल सोसाईटी। वैसे अभी एक चैनल पर एक दर्शक ने सुझाया
है कि अन्ना को अपनी राजनीतिक पार्टी का नाम भारतीय अन्ना पार्टी (बाप) रखना चाहिए। खैर, नाम में क्या रखा है, जैसा कि शेक्सपियर ने
भी कहीं कहा है कि गुलाब, गुलाब ही रहेगा, जब तक उसमें गुलाब की खुशबू रहेगी। पूंजीवादी लोकतंत्र में,
जिसमें भ्रष्ट राजनीति के ऐसे दौर हमेशा आते हैं, अन्ना टीम अपनी खुशबू को, जिसे
वह अपनी विशेषता बताती है और जिसे अभी तक सूंघा नहीं गया है, कब तक बचा पायेगी, यह
भविष्य ही बताएगा।
अन्ना का भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन जो
वर्त्तमान दौर के पहले तक भ्रष्टाचार के खिलाफ आम लोगों के जहन में बसे गुस्से का
पर्याय बन चुका था और काफी भीड़ भी अपने साथ जुटा रहा था, इस बार शुरू से उखड़ा उखड़ा
नजर आ रहा था।
अन्ना और उनके साथ अनेक लोगों को ऐसा लग रहा था कि जब अन्ना पांचवें दिन से अनशन
पर बैठेंगे तो पूरा आंदोलन पहले के समान गति पकड़ लेगा। पर, सोचने और होने में जो अंतर होता है,
वह आज नौवें दिन तक साफ नजर आता रहा।
टीम अन्ना की पूरी रणनीति पहले ही दिन मात खा गयी, जब उन्होंने तय किया कि जिस दिन
प्रणव मुखर्जी राष्ट्रपति के लिए शपथ लेंगे, उसी दिन पन्द्रह मंत्रियों के साथ
उनके ऊपर हल्ला बोला जाएगा।
वे भूल गए कि ये भारत है और राष्ट्रपति यहाँ संवैधानिक प्रमुख होने के चलते सभी
तरह के आरोपों और आलोचनाओं से उपर होता है और खासकर उस अंदाज में और उस भाषा में
तो राष्ट्रपति की आलोचना की ही नहीं जा सकती, जिस अंदाज में बात करने की अन्ना टीम
की आदत है।
उसके बावजूद टीम अन्ना के एक सदस्य अपने पर काबू नहीं रख पाए और उन्होंने नव
निर्वाचित राष्ट्रपति के खिलाफ उस भाषा का इस्तेमाल कर ही दिया, जिसके लिए वो जाने
जाते हैं और अन्ना को इसके लिए मंच से माफी मांगना पड़ी। अन्ना का माफी माँगने का ये सिलसिला एक
बार शुरू हुआ तो फिर चलता ही गया।
प्रधानमंत्री के घर की दीवारों पर चोर लिखने के लिए माफी माँगी। उसके बाद, मीडिया कर्मियों
के उपर हमला किये जाने के लिए माफी माँगी गयी। याने, सरकार के उपर दबाव बनाने की जिस
रणनीति को लेकर अन्ना टीम मैदान में आयी थी और जिसके लिए उसने लोकपाल की अपनी मांग
को ताक पर रख दिया था, जिसके चलते ही लोग उससे जुड़े थे, वही रणनीति उसे जनता से
दूर ले गयी।
जैसे इतना पर्याप्त न हो, भीड़ के लिए तरस रही
अन्ना टीम के पास रामदेव भीड़ लेकर आये तो, पर, आने के पहले चैनलों पर अन्ना के
आंदोलन को फ्लाप शो बताकर आये।
दो आन्दोलनों के दो दिग्गज, उस दिन जमाने के सामने गले तो मिले, पर, एक दूसरे को
समर्थन देने नहीं, भीड़ जुटा पाने के अपने अहं और प्रतिद्वंदिता के साथ, मन में रार
रखकर। दो
दिनों के बाद जब रामदेव ने अहमदाबाद में नरेंद्र मोदी को भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने
वाला धर्मयोद्धा बताया तो अन्ना टीम ने उनके खिलाफ आरोपों की बौछार लगा दी। मोदी को मानवता का हत्यारा
बताने वाली अन्ना टीम आसानी से भूल गयी कि कुछ माह पहले इन्हीं मोदी की तारीफ़
स्वयं अन्ना ने की थी।
पूरे नौ दिन अन्ना टीम के सभी महत्वपूर्ण शूरवीर मंच से भाषण देते रहे और प्रत्येक
दिन के साथ उनके अंदर का कनफ्यूजन भी देश के सामने बाहर आता रहा। राजनीतिक विकल्प देने की
बातें पहले दिन से बाहर आती रहीं तो साथ में बलिदान देने की शपथें भी ली जाती रहीं। सरकार को भी सुध नहीं लेने
के लिए कोसा जाता था तो यह भी कहा जाता था कि सरकार अरविन्द केजरीवाल को जान से
मारने का षड्यंत्र रच रही है।
सरकार में प्रधानमंत्री सहित किसी भी भ्रष्ट मंत्री के साथ बात नहीं करने के
संकल्प को दोहराया जाता था तो यह भी कहा जाता था कि सरकार किसी को बात करने नहीं
भेज रही है। यह
तो पहले दो दिनों में ही तय हो गया था कि इस बार सरकार किसी भी तरह की बात नहीं
करेगी। सभी
राजनीतिक दलों को कोसने, भ्रष्ट कहने के चलते सभी ने आंदोलन के इस दौर से पर्याप्त
दूरी बनाये रखी।
आज नौवें दिन अनशन तुड़वाने के लिए जुटे सिविल सोसाईटी के लोग भी आज ही दिखे।
स्वयं यह तय कर लेना कि वे ही अकेले है, जो
सार्वजनिक जीवन में पवित्रता और सचाई के प्रतीक हैं। और, यह तय करने के बाद, बाकी सभी से धमकाने,
चमकाने और डांटने, डपटने के लहजे में डील करने को मानो टीम अन्ना ने अपना अधिकार
समझ लिया था।
इस प्रवृति का खामियाजा, उन्हें ऐन आंदोलन के समय उसी सिविल सोसाईटी से कम समर्थन
के रूप में चुकाना पड़ेगा, जिसका तमगा लेकर वो घूमते हैं, ये वे नहीं समझ पाए थे। यहाँ तक कि सिविल सोसाईटी के
जिन 23 लोगों की अपील पर वो अनशन खत्म करने जा रहे हैं, उनमें से कोई भी सामने
नहीं आया और उन्हें एक अभिनेता से प्रस्ताव मिला। एक वृहद आंदोलन का एक दुखद समापन है ये। यह देश के लोगों के बड़े
हिस्से के लिए वेदनामय होगा कि भ्रष्टाचार जैसे अहं मुद्दे पर शुरू किया गया
आंदोलन, आंदोलन के नेतृत्व के अहं, अक्खड़पन और अति महत्वाकांक्षाओं के चलते
राजनीतिक दलदल में फंसने जा रहा है।
अरुण कान्त शुक्ला
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