खुदा से भी बड़ा शैतान
बागीचे
में फूलों को जब मनाही है खिलने की,
तो कमबख्तों,
तुमने ये पौधे रोपे क्यों हैं,
राजा
को एतबार होता है, अपने जिस पैदल पे,
खजाने
से उसी को विकलांगता वजीफा मिलता है,
रोका
जिसने हमारे घरों की तरफ, हवा पानी का बहना,
वो
कमबख्त, खुदा से भी बड़ा शैतान है,
हमने
जब भी माँगा है, सबकी खैरियत माँगी है,
खुदा
उन्हें खैर बख्शे, जो हमारी खैर नहीं चाहते,
वो
आये कि जिंदगी गुजारेंगे, लोगों का आज बदलने में,
उन्होंने
‘आदित्य’ जिंदगी गुजार दी, खुद के हालात बदलने में,
अरुण
कान्त शुक्ला
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