यूं ही --
यूं क्यूं ,
मुँह छिपाकर आते जाते हैं ,
जब कन्नी काटकर निकलना हो मुश्किल
बस मुस्करा कर निकल जाईये ,
मुँह छिपाकर आते जाते हैं ,
जब कन्नी काटकर निकलना हो मुश्किल
बस मुस्करा कर निकल जाईये ,
यूं ही ,
मोहब्बतें कामयाब नहीं होतीं ,
फ़साने लाख बनने के बाद
जिंदगी एक अफसाना बनती है ,
मोहब्बतें कामयाब नहीं होतीं ,
फ़साने लाख बनने के बाद
जिंदगी एक अफसाना बनती है ,
अरुण कान्त शुक्ला -
2 comments:
aap bhi kavitayen karane lage hain. aur theekthaak kar rahe hain. shabdon ki klatmak duniyaa mey aap sakriy rahen, yahi shubhkamna hai. kavitaa achchhee hai.
गिरीश जी , बहुत बहुत धन्यवाद |
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