Tuesday, September 13, 2011


नवउदारवादी साजिश और आक्रमण के घेरे में हिंदी --

जाने माने व्यंगकार और कवि गिरीश पंकज ने फेसबुक पर हिंदी के वर्त्तमान स्वरूप के ऊपर अपने परिचित अंदाज में एक टिप्पणी लिखी | मैंने उसी अंदाज में उस पर कमेन्ट भी कर दिया | टिप्पणी थी ,

हिंदी के ब्राईट फ्यूचर को लेकर मैं होपफुल हूँ . इस लेंगुएज में कुछ बात तो है . कल 14 सेप्टेम्बर को हिंदी डे सेलीब्रेट किया जायेगा . गवर्नमेंट के लोग खूब एंज्वाय करेंगे . आखिर आफिसियल लेंगुएज , बोले तो राजभाषा है हिंदी . आप क्या सोचते हैं , हिंदी सरवाईव करेगी न ..?

मेरा कमेन्ट था , यस , यस व्हायी नाटॅ , जरुर सरवाईव करेगी |    

बात शायद आई गयी हो गई होती , यदि शाम को मेरी तीन वर्षीय पोती ने अपने खिलौना कम्प्यूटर पर खेलते हुए मुझसे यह न कहा होता कि दद्दू इस बटन को कन्टिनुयस दबाने से गेम फिनिश हो जाता है | मैंने उससे कहा , हाँ बेटा बटन लगातार दबाने से गेम बंद हों जाता है | उसने तुरंत जबाब दिया , लगातार नहीं , कन्टिनुयस | जाहिर है , अंग्रेजी स्कूल के माध्यम से ही सही , नर्सरी में जाने वाली बच्ची को कन्टिनुयस और फिनिश जैसे शब्द घर से ही मिले होंगे | यह घटना हमारी बोलचाल में अंग्रेजी शब्दों के बढ़ते चलन को ही नहीं बताती है , इससे आगे यह है कि लोग उन अंग्रेजी शब्दों की जगह इस्तेमाल होने वाले शब्दों को ही पूरी तरह भूलते जा रहे हैं | ऐसा नहीं है कि बोलचाल में अंग्रेजी शब्दों का ज्यादा से ज्यादा प्रयोग करने की प्रवृति शहरी लोगों या अंग्रेजी स्कूल से शिक्षा प्राप्त या शिक्षा प्राप्त कर रहे लोगों में ही है | सुदूर ग्रामीण अंचलों तक में स्थानीय बोलियों और भाषाओं में अंग्रेजी शब्दों की घुसपैठ मजबूती से घर कर चुकी है | देश के किसी भी हिस्से में खेती से संबंधित खादों , दवाईयों , कीटनाशकों , बीजों और अनाज की किस्मों , ट्रेक्टर के उपकरणों के नाम ग्रामीण अंग्रेजी में सही उच्चारण के साथ लेते हुए दिखेंगे , जबकि उनका वास्ता अंग्रेजी स्कोऊल से कभी नहीं पड़ा हो | यह बोलचाल में भी दिखाई पड़ता है | छत्तीसगढ़ी में ही यह संवाद अक्सर सुनाई दे देगा , मैं मोर मदर ला हास्पिटल में एडमिट कराय हों | ओखरबर एपल लायेबर जावत हों | ते ह पेपर बनवा के एडवांस बिल जमा करवा दे |

देश के बुद्धु बक्से पर दिखाए जाने वाले सीरियलों और रियलिटी शोज तथा हिंदी फिल्मों ने भी हिंदी में अंग्रेजी मिश्रण को बेशुमार बढ़ाया है | एक सीरियल में सुहाना नाम की स्त्री किरदार को हिंदी के शब्द ही समझ नहीं आते | गिरफ्तार शब्द सुनकर वह बोलती है , गिरफ्तार , यू मीन अरेस्ट | ऐसा एक बार नहीं , प्रत्येक भाग में अनेक बार होता है | देश की आजादी के बाद अनेक हिंदी फिल्मों में हिंदी के साथ अंग्रेजी का प्रयोग अंग्रेजी की खिल्ली उड़ाने के लिये हुआ | पर , गाईड आते आते फिल्मकारों के लिये भी अंग्रेजी महत्वपूर्ण हो गयी | गाईड में दो पंडितों के शास्त्रार्थ में देवानंद अंग्रेजी का प्रयोग उन्हें हराने  के लिये करते हैं | जब पंडित देवानंद से कहते हैं कि तुम्हें संस्कृत नहीं आती , तो देवानंद का जबाब होता है कि तुम्हें अंग्रेजी नहीं आती | यह सुनकर गाँव के पूरे लोग देवानंद के साथ हो जाते हैं | यह सिलसिला बढ़कर अब आय एम तू सेक्सी फॉर यू , तेरे हाथ नहीं आनी और आई नो यू वांट इट , बट यू आर नेवर गोना गेट इट तक पहुँच चुका है , जिसमें हिंदी के बीच अंग्रेजी में पूरी अश्लीलता परोसी जा रही है | देश में यह गाना न केवल युवाओं के बीच लोकप्रिय होता है बल्कि छोटे छोटे बच्चे भी अंग्रेजी की पंक्तियों को सही उच्चारण के साथ घरों में गाते हैं और परिवार के लोग बैठकर मुस्कराते हैं | हमारे सामने जो चित्र है , वह हिंदी में अंग्रेजी की घुसपैठ को दिखाने के साथ साथ यह भी बता रहा है कि यह घुसपैठ हमारे जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में हो रही है |

सचाई तो यह है कि हिंदी का खाने वाले टेलीविजन और फिल्मों में आज कहानी , पटकथा अंग्रेजी में ही लिखी जाती है | यहाँ तक कि कलाकारों के संवाद भी लेटिन अंग्रेजी में लिखे जाते हैं | देश के टेलीविजन और फिल्मों के कलाकारों को भी , अन्य अंग्रेजी दां भारतीयों की तरह , हिंदी को अंग्रेजी में ही पढ़ना आसान लगता है | फेसबुक और ट्वीटर जैसे माध्यम तो रोमन अंग्रेजी से भरे पड़े रहते हैं , क्योंकि उनका की बोर्ड अंग्रेजी में होता है और हिंदी टाईपिंग सीखना पड़ता है | जबकि यदि लोग चाहें तो एक साफ्टवेयर डलवाकर उसी अंग्रेजी से हिंदी में टाईप कर सकते हैं |

अमूमन सभी विज्ञापन पटलों पर विज्ञापन अंग्रेजी में होते हैं | देश में कोई भी अच्छा वेतन देने वाली नौकरी या रोजगार बिना अंग्रेजी ज्ञान के नहीं मिलता | उच्च शिक्षा पूरी तरह से अंग्रेजी के कब्जे में है | देश में अंग्रेजी का प्रभाव इतना गहरा है कि ग्रामीण इलाकों में भी कंपनियां बेचने के लिये सामान का ब्रांड नाम अंग्रेजी में रखती हैं , क्योंकि उनके अनुसार ग्रामीण उपभोक्ता उससे प्रभावित होता है |

पूछने पर प्रत्येक भारतवासी यही बतायेगा कि देश की राष्ट्रभाषा हिंदी है | पर , सचाई यही है कि हिंदी राजकाज चलाये जाने की दो भाषाओं में से एक है और दूसरी भाषा , जिसमें वास्तव में राजकाज चलता है , अंग्रेजी है | आजादी के बाद राष्ट्रभाषा के रूप में हिंदी की प्रस्तावना और अन्य स्थानीय भाषाओं के बीच हुए टकरावों का नतीजा यह निकला कि शासक वर्ग और देश के संपन्न तबके ने अंग्रेजी को अघोषित रूप से राष्ट्रीय भाषा जैसा ही दर्जा दे दिया है |इसका नतीजा यह निकल रहा है कि देश के 80 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या का भारत की प्रशासनिक व्यवस्था , नीतियों के निर्माण और देश के लिये कुछ सोचने की प्रक्रिया में कोई भी योगदान नहीं है क्योंकि इस 80 प्रतिशत जनता के बहुत बड़े हिस्से की पहुँच ही शिक्षा तक नहीं है और जो शिक्षित होते भी हैं , चूंकि वे प्राथमिक स्तर से अंग्रेजी से परिचित नहीं होते , प्रतियोगिता और चयन में उस स्तर तक नहीं पहुँच पाते , जहां निर्णय लिये जाते हैं | देश के सामाजिक वातावरण में व्याप्त इस कमी का गंभीर दुष्प्रभाव अब स्पष्ट रूप से सामाजिक और आर्थिक क्षेत्र के साथ साथ देश की लोकतांत्रिक प्रणाली पर भी दिखाई पड़ रहा है |

भारत के शासक वर्ग में ऐसे लोगों की कमी नहीं है , जो दबे स्वर में ही सही , पर यह मांग करने लगें कि यदि भारत के दलितों और पिछड़ों को मुख्यधारा में जोड़ना है तो अंग्रेजी को ही राष्ट्रभाषा बना दिया जाये ताकि इस तबके के उस हिस्से को जो सरकारी स्कूलों से शिक्षा प्राप्त करता है , प्राथमिक स्तर से ही अंग्रेजी की शिक्षा मिलने लगे | हो सकता है , आज ये बात कपोल कल्पित लगे , पर , नवउदारवाद के रास्ते पर चल रही सरकारों और संपन्न वर्ग के तौर तरीकों को इस संभावना को नकारा नहीं जा सकता है | विदेशी तकनीक , विदेशी धन कभी , अकेले नहीं आता उसके साथ विदेशी संस्कृति , विदेशी भाषा और सबसे ऊपर विदेशी सोच भी आती है जो देश के बारे में सोचने से रोकती है | हमारा देश उस दौर से गुजर रहा है , जिसमें प्रत्येक चीज को अमेरिका , विश्वबैंक और विश्व व्यापार संगठन के नजरिये से देखा जा रहा है | आज केवल यह प्रश्न नहीं है कि हिंदी अपने स्वरूप को बनाए रख पायेगी या नहीं | हिंदी नवउदारवादी संस्कृति के एक बड़े हमले और साजिश की जद में है | इसे बचाने के लिये भावनात्मक लगावों के साथ साथ राजनैतिक संघर्ष भी जरूरी है |             
        

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