कहाँ खो गये सारे सपने
तेरे सपने मेरे सपने
कहाँ खो गये सारे सपने
गगन से बरसती है काली राख
तारे मुँह चिढ़ाते हैं
फूल खिले हैं बँगलों की बगियों में
हमें कूड़े की बदबू सताती है
नदियाँ सूखी पड़ी हैं
कैद आँखों में है पानी
पवन में घुला है जहर
चिडियाँ अब कम नजर आती हैं
तेरे सपने मेरे सपने
कहाँ खो गये सारे सपने
अरुण कान्त शुक्ला -
1 comment:
शानदार पोस्ट ...
मेरी कुंठा
रेशम के कीड़ों-सी
ताने-बाने बुनती,
तड़प तड़पकर
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